Advertisement
Advertisement
NationalNews

देशभर की अदालतों में 5.2 करोड़ मामले लंबित: न्याय प्रणाली के लिए बड़ी चुनौती

नई दिल्ली। देश की अदालतों में लंबित मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जिससे न्याय प्रक्रिया धीमी हो रही है और न्याय मिलने में देरी हो रही है। देश की न्यायपालिका तीन स्तरों पर काम करती है—सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट और जिला अदालतें। इन अदालतों में मामले मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं—सिविल और आपराधिक।वर्ष 2025 में, देशभर में 5.2 करोड़ (52 मिलियन) से अधिक मामले लंबित हैं, जिनमें से 1.8 लाख से अधिक मामले 30 साल से अधिक समय से लंबित हैं। सबसे अधिक 4.5 करोड़ मामले (85प्रतिशत) सिर्फ जिला अदालतों में लंबित हैं।

हालांकि मामलों के निपटारे में तेजी लाने के लिए सरकार और न्यायपालिका विभिन्न उपायों पर विचार कर रही हैं, जिनमें डिजिटल कोर्ट सिस्टम, वैकल्पिक विवाद समाधान, लोक अदालतों को बढ़ावा देना, और न्यायधीशों की संख्या में वृद्धि शामिल हैं।

विज्ञापन

हालांकि, जब तक प्रभावी कदम नहीं उठाए जाते, तब तक न्याय मिलने में देरी बनी रहेगी और आम जनता को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। भारत में लंबित मामलों की संख्या दुनिया में सबसे अधिक है। कई न्यायाधीशों और सरकारी अधिकारियों ने इसे भारतीय न्याय प्रणाली के सामने सबसे बड़ी चुनौती करार दिया है।

नीति आयोग की 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, यदि उसी गति से मामलों का निपटारा होता रहा, तो पूरा बैकलॉग खत्म करने में 324 साल लग सकते हैं।वर्तमान में न्याय मिलने में हो रही देरी के गंभीर परिणाम सामने आ रहे हैं। 2022 में बिहार की एक अदालत ने एक व्यक्ति को सबूतों के अभाव में हत्या के आरोप से बरी कर दिया, लेकिन वह पहले ही 28 साल जेल में बिता चुका था।देश में लंबित मामलों में भूमि और संपत्ति विवाद सबसे बड़ा हिस्सा रखते हैं।

कुल लंबित मामलों में से 20 प्रतिशत भूमि और संपत्ति से जुड़े हुए हैं, जो कि सभी सिविल मामलों का 66 प्रतिशत है। वहीं, सुप्रीम कोर्ट द्वारा निपटाए गए 25 प्रतिशत मामले भूमि विवादों से जुड़े होते हैं।

विज्ञापन

Jabalpur Baz

बाज़ मीडिया जबलपुर डेस्क 'जबलपुर बाज़' आपको जबलपुर से जुडी हर ज़रूरी खबर पहुँचाने के लिए समर्पित है.
Back to top button

You cannot copy content of this page