
लेखक: इस्लाहुद्दीन अंसारी (गांधीवादी , सोशल मीडिया एक्टिविस्ट)
हर साल जब होली आती है, तो जबलपुर की फिज़ा में एक खास तरह की ख़ुशबू घुल जाती है—भाईचारे, मोहब्बत और सौहार्द्र की। इस बार भी शहर ने अपने संस्कारों की पहचान को बरकरार रखा। जुमे की नमाज़ और होली का रंग एक साथ आया, लेकिन हर गली, हर चौक, हर बस्ती ने ये साबित कर दिया कि जबलपुर सिर्फ़ एक शहर नहीं, बल्कि गंगा-जमुनी तहज़ीब की एक जिंदा मिसाल है।
सड़कें रंगीन, लेकिन जबरदस्ती कहीं नहीं
मेरी आदत है कि मैं हर जुमे को किसी नई मस्जिद में नमाज़ पढ़ता हूं। इस बार, चंडाल भाटा की औलिया मस्जिद जाने का इरादा किया। रास्ते में होली की रौनक अपने चरम पर थी—हर गली में खुशियों के रंग बिखरे हुए थे, लेकिन जबरदस्ती कहीं नहीं। मैं अपने एक दोस्त को कछपुरा ब्रिज तक छोड़ने घनी बस्ती और कॉलोनियों के बीच से गुज़रा। जगह-जगह लोग गुलाल से सराबोर थे, लेकिन न कोई ज़बरदस्ती, न कोई छींटाकशी।
संस्कारधानी की सबसे बड़ी खासियत यही है—यहां कोई किसी पर जबरदस्ती रंग नहीं डालता। अगर गलती से भी कोई रंग पड़ जाता, तो भी मुझे कोई ऐतराज़ नहीं था, लेकिन यह देखकर दिल खुश हो गया कि आपसी सम्मान और समझदारी से त्यौहार मनाने की रवायत आज भी ज़िंदा है।
मस्जिद के बाहर पुलिस—लेकिन सौहार्द्र के साथ
औलिया मस्जिद पहुंचा, तो बाहर दो महिला कांस्टेबल ड्यूटी पर तैनात दिखीं। मैंने उन्हें हैप्पी होली कहा, उन्होंने भी मुस्कुराकर शुभकामनाएं दीं। सड़क पर पुलिस के जवान खड़े थे, और जो खाने के पैकेट उनके लिए आए थे, वे जरूरतमंदों में बांट रहे थे।
मस्जिद के अंदर नमाज़ पढ़ी, बाहर आया तो माहौल पूरी तरह खुशनुमा और सकारात्मक था। न कोई तनाव, न कोई अफ़वाह, सिर्फ एक ऐसा नज़ारा जो बताता है कि अगर हम सोशल मीडिया की नफरत से परे देखें, तो असल हिंदुस्तान आज भी मोहब्बत की सरज़मीं है।
झूठे नैरेटिव बनाम जबलपुर की हकीकत
सोशल मीडिया पर आपने तिरपाल से ढकी मस्जिदों की तस्वीरें देखी होंगी, लेकिन हक़ीकत जानना चाहते हैं, तो जबलपुर घूम आइए। यहां एक भी मस्जिद पर रंग का छींटा तक नहीं पड़ेगा, चाहे वह मुस्लिम बाहुल्य इलाके में हो या हिंदू बाहुल्य इलाके में।
जिस मस्जिद में मैंने नमाज़ पढ़ी, उसके दो किलोमीटर के दायरे में एक भी मुस्लिम घर नहीं था, फिर भी मस्जिद की सफेद दीवार बिलकुल साफ़-सुथरी थी।
संस्कारधानी की परंपरा—हमेशा कायम
जब दो बड़े त्यौहार एक साथ आते हैं, तो देशभर में तनाव की बातें की जाती हैं। लेकिन जबलपुर ने हर बार यह साबित किया है कि यहां का DNA ही भाईचारे का बना हुआ है। मोहर्रम और नवरात्र, होली और ईद-मिलाद, जुमा और रंगों का त्यौहार—यहां सब मिलकर होते हैं, एक साथ होते हैं।
यह शहर आज भी मौलाना महमूद अहमद क़ादरी और महामंडलेश्वर डॉ. श्यामदास महाराज के संस्कारों को नहीं भूला।
जबलपुर पुलिस और प्रशासन को सलाम
आज जबलपुर की जनता के साथ-साथ जिला प्रशासन और पुलिस भी बधाई की पात्र है। उन्होंने जिस समझदारी, संयम और संवेदनशीलता के साथ हालात को संभाला, वह काबिले तारीफ है।
संस्कारधानी का गौरव बनाए रखने में जिन-जिन लोगों का योगदान रहा, हर एक को होली की ढेरों शुभकामनाएं। खासकर जबलपुर पुलिस को उनकी शानदार कार्यशैली और लगन के लिए सलाम!
❤️ संस्कारधानी ज़िंदाबाद! सौहार्द्र ज़िंदाबाद! भाईचारा ज़िंदाबाद!
~ इस्लाहुद्दीन अंसारी