
मुल्क में मुसलमानों और उनके दीनदार इदारों के ख़िलाफ़ सरकारी रवैये को लेकर एक बार फिर बहस छिड़ गई है। बीजेपी की हुकूमत वाली रियासतों में इस्लामी तालीमात और तबलीग़-ए-दीन के नाम पर मुस्लिम उलेमा और नौजवानों को निशाना बनाया जा रहा है। जहां एक तरफ उत्तर प्रदेश में मौलाना शब्बीर अहमद मदनी को गिरफ़्तार किया गया, वहीं दूसरी तरफ कर्नाटक हाईकोर्ट ने ऐसे ही एक मामले में तीन मुस्लिम नौजवानों को बरी कर के इंसाफ़ की एक मिसाल पेश की है।
योगी सरकार का क़ानून, निशाने पर इस्लाम
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पर धर्म परिवर्तन क़ानून के ग़लत इस्तेमाल का इल्ज़ाम बढ़ता जा रहा है। ताज़ा मामला सिद्धार्थ नगर का है जहाँ अल-फ़ारूक इंटर कॉलेज के ज़िम्मेदार मौलाना शब्बीर अहमद मदनी को जबरी तबदीली-ए-मज़हब के इल्ज़ाम में गिरफ़्तार कर लिया गया। उन पर इल्ज़ाम है कि वो अपने इदारे में इस्लाम की तबलीग़ करते हैं, जब कि उनके क़रीबी लोगों का कहना है कि वो सिर्फ़ दीन की तालीम देते हैं, न कोई जबरदस्ती है, न लालच।
आरोप लग रहे हैं की इंतज़ामिया (Administration) जानबूझ कर इस मामले को लंबा खींच रही है और मौलाना को परेशान करने की कोशिश कर रही है।
कर्नाटक हाईकोर्ट का दो टूक फ़ैसला: “तबलीग़ जुर्म नहीं”
दूसरी तरफ कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक अहम फ़ैसला देते हुए तीन मुस्लिम नौजवानों के ख़िलाफ़ दर्ज FIR को रद्द कर दिया। इन पर इल्ज़ाम था कि उन्होंने एक मंदिर के अहाते में इस्लामी तालीमात पर पर्चे बाँटे और अपने मज़हबी अकीदे की ज़बानी वज़ाहत की।
लेकिन अदालत ने कहा कि “मज़हब की तबलीग़ करना या उस पर पर्चा बाँटना जुर्म नहीं है, जब तक कि जबरन तबदीली मज़हब का कोई सुबूत न हो।”
अदालत ने दिया इंसाफ़, पुलिस के दावे खारिज
जस्टिस वेंकटेश नायक टी की बेंच ने कहा कि FIR में दर्ज इल्ज़ामात सिर्फ़ शक पर आधारित हैं, कोई ठोस सबूत नहीं है कि इन नौजवानों ने किसी को इस्लाम कुबूल करवाने की कोशिश की हो।
पुलिस ने आरोप लगाया था कि ये लोग मंदिर में मौजूद लोगों को कार और दुबई में नौकरी का लालच देकर इस्लाम में लाने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन अदालत ने इसे मानने से इनकार कर दिया और कहा कि दीन की बात करना, पर्चा बाँटना या अपनी आस्था की वज़ाहत देना भारतीय क़ानून के तहत जुर्म नहीं है।
बढ़ती टारगेटिंग और मुस्लिम समाज की चिंता
इस पूरे वाकये ने एक बार फिर ये सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या भारत में अब इस्लाम की दावत देना भी जुर्म बनता जा रहा है?
जहाँ एक तरफ सैकड़ों भगवाधारी संगठन खुलेआम घर वापसी और धर्मांतरण अभियान चलाते हैं, वहीं मुसलमानों को सिर्फ़ तबलीग़ करने पर भी जेल में डाला जा रहा है।
मुस्लिम समाज और दानिशवरों ने इस ट्रेंड को “विचार और आस्था की आज़ादी पर हमला” करार दिया है और मांग की है कि तबलीग़ और दीन की तालीम को अपराध बताना बंद किया जाए।