
जबलपुर। जबलपुर छावनी क्षेत्र (कैंटोनमेंट) के नागरिकों और राजनीतिक कार्यकर्ताओं के लिए एक अहम खबर सामने आई है। रक्षा मंत्रालय ने संसद में यह स्पष्ट कर दिया है कि अब देश के किसी भी कैंट बोर्ड में मेंबर्स (वार्ड पार्षद) का चुनाव नहीं कराया जाएगा। इस फैसले से जबलपुर कैंट के उन नेताओं को बड़ा झटका लगा है, जो लंबे समय से चुनाव की तैयारी में जुटे थे। वहीं, कैंट क्षेत्र की बड़ी सिविल आबादी खुद को प्रतिनिधित्वविहीन और उपेक्षित महसूस कर रही है।
रक्षा राज्य मंत्री का संसद में बयान
25 जुलाई को अंबाला से कांग्रेस सांसद वरुण चौधरी के सवाल के जवाब में रक्षा राज्य मंत्री संजय सेठ ने लोकसभा में कहा कि देशभर के कैंटोनमेंट क्षेत्रों को समीपस्थ नगर निकायों में मिलाने की प्रक्रिया जारी है। उन्होंने बताया कि जबलपुर कैंट को लेकर भी ऐसा ही प्रस्ताव राज्य सरकार और रक्षा मंत्रालय के स्तर पर विचाराधीन है। मंत्री सेठ ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि इस दौरान चुनाव कराए जाते हैं, तो यह विलय प्रक्रिया में बाधा डाल सकता है। इसी कारण भविष्य में किसी कैंट बोर्ड में चुनाव नहीं कराए जाएंगे।
चार साल से लटका है चुनाव का मामला
गौरतलब है कि जबलपुर कैंट बोर्ड में आखिरी बार मेंबर्स का कार्यकाल 10 फरवरी 2020 को समाप्त हुआ था। इसके बाद एक बार चुनाव की अधिसूचना जारी हुई थी, लेकिन प्रक्रिया को बीच में ही रोक दिया गया। तब से अब तक चार साल बीत चुके हैं और क्षेत्र की जनता बिना चुने हुए जनप्रतिनिधियों के रह रही है।
70 हजार से अधिक नागरिक, कोई प्रतिनिधित्व नहीं
जबलपुर कैंट क्षेत्र में करीब 70 हजार सिविल नागरिक निवास करते हैं, जिनकी रोजमर्रा की समस्याएं जलापूर्ति, सीवर लाइन, सफाई, सड़क मरम्मत और टैक्स जैसे मुद्दों से जुड़ी होती हैं। लेकिन अब इन समस्याओं के समाधान के लिए कोई निर्वाचित या नामित प्रतिनिधि नहीं है।
पूर्व उपाध्यक्ष अभिषेक चौकसे ने कहा, “कैंट में जनता की कोई सीधी आवाज नहीं बची है। अधिकारी अपने स्तर पर काम चला रहे हैं, जिससे जनता को बहुत परेशानी हो रही है। अगर चुनाव नहीं कराना है, तो कम से कम विलय की प्रक्रिया तेज की जाए।”
बुनियादी समस्याओं के लिए चक्कर काट रहे नागरिक
कैंट की आम जनता को अब हर छोटी-बड़ी समस्या के लिए बोर्ड कार्यालय और अधिकारियों के पास चक्कर लगाना पड़ता है। कई नागरिकों का कहना है कि पहले पार्षदों के माध्यम से काम आसानी से हो जाता था, अब फाइलें महीनों तक पड़ी रहती हैं। क्षेत्र में सफाई, सड़क मरम्मत, नाली-सीवर की स्थिति बदतर हो चुकी है।
नेताओं का राजनीतिक भविष्य अधर में
कैंट क्षेत्र में भाजपा, कांग्रेस और अन्य दलों के कई युवा नेता वर्षों से सक्रिय थे। समाजसेवा और जनसंपर्क के माध्यम से उन्होंने स्थानीय राजनीति में अपनी जमीन बनाई थी, लेकिन रक्षा मंत्रालय के ताजा रुख ने उनके सपनों को गहरा झटका दिया है। अब न तो चुनाव होंगे, और न ही किसी राजनीतिक भविष्य की कोई स्पष्ट राह।
अब क्या आगे?
फिलहाल जबलपुर कैंट के नागरिकों की निगाहें राज्य सरकार और रक्षा मंत्रालय पर टिकी हैं कि विलय की प्रक्रिया कब पूरी होगी। जब तक यह प्रक्रिया पूरी नहीं होती, तब तक क्षेत्र के नागरिकों को अपनी समस्याओं के लिए अकेले संघर्ष करना होगा।