Gaza Updates: 1300 से ज़्यादा फिल्म स्टार और डायरेक्टर बोले – ग़ाज़ा के क़ातिल इज़रायली फ़िल्म इंस्टीट्यूशन्स से कोई रिश्ता नहीं

ग़ाज़ा/नई दिल्ली Gaza Updates। दुनिया भर के 1300 से ज़्यादा मशहूर एक्टर्स, डायरेक्टर्स और फिल्म जगत की हस्तियों ने एकजुट होकर ऐलान किया है कि वे उन इज़रायली फ़िल्म फेस्टिवल्स और इंस्टीट्यूशन्स का बहिष्कार करेंगे, जो ग़ाज़ा में हो रहे नरसंहार (genocide) और ज़ुल्म में शामिल हैं या उनका समर्थन कर रहे हैं।
ये सिर्फ़ एक बहिष्कार नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को दिया गया एक इंसानी पैग़ाम है – “ज़ुल्म के साथ खड़े होने का मतलब है इंसानियत से गद्दारी।”
✊ कौन-कौन शामिल हैं?
इस बहिष्कार की लिस्ट में हॉलीवुड और यूरोप के कई बड़े नाम शामिल हैं।
- अभिनेता: मार्क रफ़ैलो, ओलिविया कोलमैन, टिल्डा स्विंटन, जावियर बर्देम और कई नामचीन चेहरे।
- डायरेक्टर्स: ऑस्कर विजेता यॉर्गोस लंथिमोस, आवा डुवर्ने, एडम मैक्के और डॉक्यूमेंट्री फिल्ममेकर जोशुआ ओपेनहाइमर।
इन लोगों ने साफ़ कहा – “फ़िल्म सिर्फ़ मनोरंजन नहीं है, बल्कि इंसाफ़ और हक़ की लड़ाई में हमारा हथियार भी है।”
🩸 ग़ाज़ा का दर्द – चुप्पी नहीं चलेगी
ग़ाज़ा में पिछले दो सालों से जारी खूनख़राबे ने पूरे इंसानियत को हिला कर रख दिया है।
- बच्चे मलबे में दब रहे हैं
- औरतें बेघर हो चुकी हैं
- हज़ारों मासूम शहीद हो चुके हैं
फिर भी बड़ी-बड़ी सरकारें और मीडिया की ताक़तवर लॉबी चुप हैं। ऐसे में फिल्म जगत की इन हस्तियों ने अपनी आवाज़ बुलंद कर दी है।
📚 अतीत से सबक
ये बहिष्कार कोई नया नहीं है। 1987 में भी मशहूर डायरेक्टर्स ने साउथ अफ्रीका के अपार्थाइड (नस्लभेदी हुकूमत) के ख़िलाफ़ यही कदम उठाया था। आज वही मिसाल फिलिस्तीन के लिए दोहराई जा रही है।
🌍 पैग़ाम उम्मत और इंसानियत के नाम
इन कलाकारों ने कहा –
“हम फ़िल्म के ज़रिये इज़रायल के झूठे नैरेटिव को मज़बूत नहीं होने देंगे। ग़ाज़ा में बहते ख़ून के साथ हम चुप नहीं बैठ सकते।”
यह कदम पूरी दुनिया के कलाकारों की ओर से ग़ाज़ा के मज़लूमों को एकजुटता का पैग़ाम है।
⚠️ हमारी ज़िम्मेदारी
आज जब दुनिया के बड़े प्लेटफ़ॉर्म्स खामोश हैं, यह बहिष्कार हमें याद दिलाता है कि –
- क़लम और कैमरा भी Insaaf का Rasta हैं
- ज़ुल्म के सामने खामोश रहना सबसे बड़ा गुनाह है
- और इंसानियत की हिफ़ाज़त हर ईमान वाले का फ़र्ज़ है
👉 यह खबर सिर्फ़ ग़ाज़ा के लिए नहीं, बल्कि हमारे लिए भी एक आईना है। क्या हम भी अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में यह तय करेंगे कि हमारा पैसा, हमारी खामोशी या हमारा लाइफ़स्टाइल कहीं ज़ुल्म को ताक़त तो नहीं दे रहा?