Gold Price : सोना-चांदी की आसमान छूती कीमतों ने बढ़ाई परिवारों की चिंता

नई दिल्ली (BAZ)। सोना और चांदी की बढ़ती कीमतों (Gold Price) ने आम और मध्यवर्गीय परिवारों की नींद उड़ा दी है। शादियों के सीजन में दुल्हन के श्रृंगार और परंपरा के लिए सोना खरीदना हर परिवार की ख्वाहिश होती है, लेकिन अब सवाल यह है कि आखिर बिटिया की विदाई कैसे होगी?
रिकॉर्ड स्तर पर पहुँचे दाम
इंडिया बुलियन एंड ज्वेलर्स एसोसिएशन के अनुसार शुक्रवार को चांदी 2,849 रुपये चढ़कर 1,27,348 रुपये प्रति किलो और सोना 744 रुपये बढ़कर 1,09,841 रुपये प्रति 10 ग्राम पर पहुँच गया।
पिछले एक साल में सोना लगभग 47 प्रतिशत महंगा हो चुका है। सिर्फ 2025 में ही कीमतों में 40 प्रतिशत से ज़्यादा की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
शादी के बजट पर पड़ रहा असर
भारत में शादी परंपरा और दिखावे से जुड़ी होती है। आमतौर पर 5 से 10 लाख रुपये खर्च करने वाले परिवार 20 से 40 ग्राम सोना खरीद लेते थे।
- 5 लाख रुपये का बजट → पहले 20 ग्राम सोना (1.50 लाख रुपये), अब मुश्किल से 10-12 ग्राम
- 10 लाख रुपये का बजट → पहले 40 ग्राम सोना (3 लाख रुपये), अब महज़ 20 ग्राम तक
इस बदलाव से शादी का पूरा बजट बिगड़ रहा है। सजावट, फोटोग्राफी और अन्य खर्चों के साथ सोने की कीमतें परिवारों के लिए भारी बोझ बन गई हैं।
ज्वेलरी बाज़ार पर असर
ज्वेलर्स के अनुसार, महंगे सोने ने बिक्री को प्रभावित किया है। दुकानदार अब किस्तों पर गहने देने की योजनाएँ ला रहे हैं। अगर कीमतें इसी तरह बढ़ती रहीं तो ज्वेलरी इंडस्ट्री को झटका लगना तय है।
नए विकल्प तलाश रहे लोग
सोना महंगा होने के बाद अब परिवार परंपरा निभाने के लिए विकल्प चुन रहे हैं।
- हल्की और मिनिमल ज्वेलरी: भारी नेकलेस और कंगन की जगह छोटे चेन, स्लीक रिंग्स और मिनिमल ब्रेसलेट्स का ट्रेंड
- 18 और 14 कैरेट गोल्ड: पहले 22-24 कैरेट पसंद किया जाता था, अब लोग 18 और 14 कैरेट की ओर झुक रहे हैं
- गोल्ड प्लेटेड और इमीटेशन ज्वेलरी: खासकर शादी और फंक्शन के लिए
- सिल्वर और प्लैटिनम ज्वेलरी: आधुनिक और फैशनेबल लुक के लिए शहरी युवाओं की पसंद
परंपरा और आर्थिक दबाव
भारतीय शादियों में सोना सिर्फ श्रृंगार नहीं बल्कि भविष्य की आर्थिक सुरक्षा और सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता है। यही कारण है कि बिना सोने की शादी अधूरी मानी जाती है। लेकिन मौजूदा हालात में मध्यमवर्गीय परिवारों के सामने सबसे बड़ा सवाल यही है कि—
क्या बिटिया की विदाई अब बिना सोने के गहनों के संभव होगी?