
जबलपुर। आधुनिक तकनीक और ऑटोमेशन AI ने जिस तरह देशभर में रोजगार के परिदृश्य को बदला है, उसका असर महाकौशल की औद्योगिक और कारोबारी राजधानी जबलपुर में भी गहराई से महसूस किया जा रहा है। नई मशीनों, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) और तेज़ डिजिटलाइजेशन ने जहां जीवन को आसान बनाया है, वहीं परंपरागत कामकाज के अवसर लगातार सिमट रहे हैं। स्थानीय स्तर पर यह बदलाव इतना तेज़ है कि हज़ारों लोग, खासकर युवाओं, को रोज़गार के नए विकल्प तलाशने पर मजबूर होना पड़ रहा है।
पारंपरिक उद्योगों पर मार
जबलपुर लंबे समय से छोटे-मोटे घरेलू और सेवा उद्योगों का केंद्र रहा है।
- फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी: पहले शादी-विवाह या बड़े आयोजनों में कैमरा मैन और एडिटरों की भारी मांग रहती थी। अब एआई आधारित एडिटिंग सॉफ़्टवेयर और मोबाइल कैमरों ने इस पेशे को झटका दिया है। शहर की कई पुरानी फोटो स्टूडियो बंद हो चुके हैं।
- दर्जी और सिलाई का काम: रेडीमेड कपड़ों के विस्तार और ऑनलाइन फैशन प्लेटफ़ॉर्म ने स्थानीय दर्जियों की ज़रूरत घटा दी। पुराने इलाकों जैसे रसल चौक, गोहलपुर और अधारताल में छोटे सिलाई केंद्र अब बहुत कम रह गए हैं।
- रिक्शा चालकों का संकट: पहले हाथ रिक्शा और पैडल रिक्शा चलाने वाले हज़ारों परिवार की आजीविका इनसे जुड़ी थी। ई-रिक्शा आने से किराया कम हुआ और पारंपरिक रिक्शा चलाने वालों की मांग लगभग समाप्त हो गई।
शिक्षा और घरेलू काम में बदलाव
जबलपुर के स्कूलों और कोचिंग सेंटरों में स्मार्ट बोर्ड और डिजिटल क्लासरूम का चलन तेज़ी से बढ़ा है। इससे ब्लैकबोर्ड, चॉक सप्लाई और पारंपरिक शिक्षण सामग्री का कारोबार सिकुड़ गया। वहीं, शहरी इलाकों में रोबोटिक वैक्यूम क्लीनर और स्मार्ट किचन उपकरणों ने घरेलू सहायिकाओं के काम पर भी असर डाला है।
रेलवे और डिफ़ेंस वर्कशॉप पर भी असर
जबलपुर का रेलवे कोच रिपेयरिंग शेड और गन कैरिज फ़ैक्ट्री पारंपरिक रूप से बड़े रोज़गार का केंद्र रहे हैं। लेकिन नई ऑटोमेटेड मशीनों और डिजिटाइज्ड प्रोसेस ने यहाँ भी श्रमबल की मांग को कम कर दिया है। कर्मचारियों के रिटायर होने के बाद नए पदों पर भर्ती का ग्राफ़ लगातार नीचे जा रहा है।
स्थानीय अर्थव्यवस्था पर असर
रियल एस्टेट, होटल और रेस्टोरेंट सेक्टर में भी मशीनों का दखल बढ़ा है। बड़े आयोजनों में जहां पहले दर्जनों वेटर, शेफ और क्लीनिंग स्टाफ की ज़रूरत होती थी, अब मशीनों और प्री-प्लान्ड कैटरिंग किट्स ने स्टाफ़िंग घटा दी है। इससे रोज़गार का चक्र धीमा पड़ा है और खासकर दिहाड़ी मजदूर प्रभावित हुए हैं।
विशेषज्ञों की राय
रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर डॉ. शैलेन्द्र तिवारी का कहना है, “तकनीकी प्रगति को रोका नहीं जा सकता, लेकिन इसके साथ ही स्किल डेवलपमेंट की नीतियाँ मजबूत करना अनिवार्य है। सरकार और स्थानीय निकायों को ऐसे प्रशिक्षण केंद्र खोलने चाहिए, जो युवाओं को एआई, डाटा एनालिटिक्स और डिजिटल सर्विसेज़ जैसे नए क्षेत्रों में रोजगार के लिए तैयार करें।”
आगे की राह
जबलपुर नगर निगम और जिला प्रशासन ने हाल में ‘स्किल हब’ बनाने की घोषणा की है, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि ज़मीनी स्तर पर तेज़ी से काम करना ज़रूरी है। स्थानीय स्टार्टअप और आईटी कंपनियों को प्रोत्साहन देकर नए रोज़गार सृजित किए जा सकते हैं।
निष्कर्ष:
भारत में बढ़ती स्ट्रक्चरल बेरोजगारी की तस्वीर जबलपुर में साफ़ दिखाई देती है। पारंपरिक पेशों का घटता दायरा और ऑटोमेशन की तेज़ रफ़्तार इस ऐतिहासिक शहर के रोज़गार पर सीधी चोट है। यदि समय रहते युवाओं को नई तकनीक और कौशल में प्रशिक्षित नहीं किया गया, तो आने वाले वर्षों में जबलपुर की बड़ी आबादी आजीविका के संकट से जूझ सकती है।