BiharNationalNews

NDA की जीत के बाद ‘फूलगोभी नरसंहार’ का ज़िक्र! कैबिनेट मंत्री की पोस्ट ने देश को झकझोरा — आखिर संदेश क्या है?

बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की भारी जीत के बीच, असम के कैबिनेट मंत्री अशोक सिंघल द्वारा सोशल मीडिया पर साझा की गई एक पोस्ट ने देशभर में गहरी बेचैनी पैदा कर दी है। मंत्री ने फूलगोभी के खेतों की एक तस्वीर शेयर करते हुए लिखा—“बिहार ने गोभी की खेती को मंजूरी दी”, और इसके साथ 1989 के भयावह भागलपुर हिंसा के दौरान किए गए कुख्यात “फूलगोभी नरसंहार” की ओर संकेत किया।

यह वही हिंसा थी जिसमें लोगेन गांव के नरसंहार के दौरान 116 मुसलमानों की हत्या कर दी गई थी। आरोप है कि सबूत मिटाने के लिए शवों को दफनाने के बाद उन पर फूलगोभी और पत्तागोभी की पौध लगाकर अपराध को छिपाया गया था। भागलपुर में दो महीने तक चली इस हिंसा में कुल 1,070 लोग मारे गए, 524 घायल हुए, और 195 गाँवों के 11,500 घर तबाह हो गए। करीब 48,000 लोग बेघर हुए और 68 मस्जिदें व 20 मज़ारें ध्वस्त कर दी गईं। मारे गए लोगों में 93% मुसलमान थे।

Advertisement

News Source : INDIA TODAY : Assam Minister’s ‘Bihar approves Gobi farming’ shocker after NDA landslide

हिंसा का सबसे बड़ा आर्थिक आघात भागलपुर के मशहूर रेशम उद्योग पर पड़ा, जिसका संचालन मुख्यतः मुस्लिम बुनकरों के हाथ में था। दंगों में 600 पावरलूम और 1,700 हथकरघे जलाकर राख कर दिए गए, जिससे हजारों परिवारों की रोज़ी-रोटी खत्म हो गई।

मंत्री की पोस्ट को लेकर पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है।
NDTV की वरिष्ठ पत्रकार गार्गी रावत ने लिखा—
“हम सभी जानते हैं कि गोभी की खेती का क्या अर्थ है। यह जीत की व्याख्या करने का तरीका नहीं हो सकता। एक मंत्री द्वारा ऐसा कहना चौंकाने वाला है।”

इंटरनेट फ़्रीडम फ़ाउंडेशन के संस्थापक प्रतीक वाघरे ने भी इसे समाजिक पतन की ओर इशारा बताया। उन्होंने कहा—
“अगर ऐसा कहने पर भी किसी का राजनीतिक करियर सुरक्षित रहता है, तो यह बताता है कि हमारा समाज किस दिशा में जा रहा है। यह तो बस अंदर छुपी सड़न का एक लक्षण है।”

कई सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं ने याद दिलाया कि ‘फूलगोभी’ शब्द का इस्तेमाल लंबे समय से कट्टरपंथी हिंदुत्ववादी समूहों द्वारा एक मुस्लिम नरसंहार की सांकेतिक धमकी के रूप में किया जाता रहा है। इस बार चिंता इसलिए और बढ़ गई है क्योंकि यह टिप्पणी किसी अनाम हैंडल की नहीं, बल्कि एक मौजूदा कैबिनेट मंत्री की ओर से आई है।

कई लोग पूछ रहे हैं—
क्या ऐसी भाषा अब सामान्य हो गई है? यह राजनीतिक विमर्श किस दिशा में जा रहा है? और समाज इस ज़हर को कैसे ठीक करेगा?

Back to top button

You cannot copy content of this page