विचारः जितना बुलडोज़र से किसी का घर तोड़ना गलत है उतना ही सर तन से जुदा करने का नारा लगाना गलत है
मौजूदा हालात पर जबलपुर के सामाजिक चिंतक इस्लाहुद्दीन अंसारी के विचार
कुछ तो मुसलमानो को भी सीखना पड़ेगा की इस देश के संविधान के हिसाब से जितना बुलडोज़र से किसी का घर तोड़ना गलत है उतना ही सर तन से जुदा करने का नारा लगाना गलत है। आप राजनैतिक रूप से इतने बेवकूफ़ कैसे हो सकते हैं की इस देश में जिस अपराध की अधिकतम सजा एक साल की जेल और कुछ हज़ार रुपए का जुर्माना हो उस अपराध के लिये आप सर तन से जुदा करने का नारा लगाए सड़को पर उतर जाते हो ??
मैं आपकी धार्मिक भावनाओं की कद्र करता हूं। धर्म कोई भी हो अगर उससे किसी की आस्था जुड़ी हुई है तब उस धर्म के और उसके किसी धर्मगुरु के प्रति सम्मान दिखाना हम सबका कर्तव्य हैं। कोई अपमान जनक़ बातें करता है तो वो सरासर सज़ा का हक़दार है पर ऐसे लोगो को सज़ा दिलाने की मांग करते हुए, आप खुद अपने आपको आफ़त में डाल लो तो ये कहां की समझदारी हुई ??
नुपुर शर्मा के मसले पर कितने बच्चे जेल गए याद है आपको ?? और ये फिर एक नया बखेड़ा लिये खड़े हैं आप ??
मैं भी मुसलमान हूं और मेरा ईमान है की हुजूर-ए-पाक़ (स.अ.व.) की शान में ये सारी कायनात मिलकर भी नुक्ता बराबर कमोबेशी नहीं कर सकती।
तब हम क्यों किसी सिरफिरे के चक्कर में पड़कर बेवजह उसे तूल देने पर तुले रहते हैं।
आज के माहौल में पहले से अधिक जिम्मेदार और समझदार होने की जरूरत है। माफ़ कीजिएगा, लेकिन मेरी राय में इस तरह का विरोध प्रदर्शन बेहद ख़तरनाक और गैरजरूरी है आपके और आपके परिवार के लिये।
इसलिए हो सके तो जज़्बाती तकरीरों से दूर रहिए। खुद के जज़्बात पर काबू करके रखिये।
हालात की नजाकत को समझिये, जिम्मेदार बनिये। लोकतंत्र में विरोध प्रदर्शन की अपनी अहमियत है। लेकिन विरोध के तौर तरीके भी सीखिए। किसी मसले पर किसी चीज़ का विरोध करना भी हो दायरों में अच्छी तरह से होमवर्क करके कीजिए।
बच्चो को बेहतर तालीम दिलाईए, उनकी तरबियत कीजिये। जिसके लिये हुजूर आका-ए-दो-आलम (स.अ.व.) ने सबसे ज्यादा जोर दिया है, कौम पढ़ लिख लेगी तो उसे विरोध करने का तरीक़ा भी आएगा, इस तरह के हालात को काउंटर करने का भी आएगा।
(डिस्कलेमरः यह लेखक के निजी विचार हैं, जिससे संस्थान का सहमत होना आवश्यक नहीं है)