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दिल्ली दंगा 2020 : अदालत ने 10 मुसलमानों को बरी किया

दिल्ली की कड़कड़डूमा अदालत ने एक महत्वपूर्ण फैसले में दस मुसलमानों को बरी कर दिया है, जिन पर 2020 के दिल्ली दंगों में शामिल होने का आरोप था। ये लोग चार साल पहले पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए थे। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपों को साबित करने के लिए जरूरी सबूत पेश करने में नाकाम रहा, इसलिए आरोपियों को बरी कर दिया गया।

आरोपी- मोहम्मद शाहनवाज, मोहम्मद शोएब, शाहरुख, राशिद, आजाद, अशरफ अली, परवेज, मोहम्मद फैसल, राशिद और मोहम्मद ताहिर पर दिल्ली के शिव विहार इलाके में दंगा, आगजनी, चोरी और तोड़फोड़ के आरोप थे। यह मामला नरेंद्र कुमार की शिकायत पर दर्ज किया गया था। कुमार ने आरोप लगाया था कि भीड़ ने उनकी दुकान में तोड़फोड़ की और उनके घर से 15 तोला सोना, आधा किलो चांदी और 2 लाख रुपये चुरा लिए। उन्होंने यह भी कहा कि दंगाइयों ने उनके फर्नीचर को आग लगा दी।

मामले में 17 गवाहों से पूछताछ की गई, जिनमें से 12 पुलिस अधिकारी थे। अभियोजन पक्ष दंगों से आरोपियों को जोड़ने वाले महत्वपूर्ण सबूत नहीं पेश कर सका। एक गवाह, जो पास की दुकान चलाता था, ने बताया कि दंगों के बाद उसकी दुकान सुरक्षित थी, जबकि एक हेड कांस्टेबल और एक सहायक उप-निरीक्षक ने पहले कहा था कि दुकान जला दी गई थी। अदालत के न्यायाधीश पुलस्त्य प्रमाचला ने कहा कि गवाहों के विरोधाभासी बयान उनके विश्वास को प्रभावित करते हैं और उन्होंने पुलिस गवाहों पर भरोसा करना असुरक्षित बताया।

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जमीयत उलेमा-ए-हिंद (मौलाना महमूद असद मदनी) के अधिवक्ता सलीम मलिक और अब्दुल गफ्फार ने अदालत में सफलतापूर्वक तर्क किया कि प्रमुख गवाहों की गवाही अविश्वसनीय थी। कई गवाहों ने या तो अपने बयान वापस ले लिए या आरोपियों की पहचान नहीं की, और पुलिस की बयानों में देरी और असंगतता ने अभियोजन पक्ष का मामला कमजोर कर दिया।

महमूद मदनी ने फैसले का स्वागत किया और कानूनी टीम की मेहनत की सराहना की। उन्होंने कहा कि न्याय सुनिश्चित करने के लिए निष्पक्ष सुनवाई और मजबूत कानूनी प्रतिनिधित्व जरूरी है। अधिवक्ता नियाज अहमद फारूकी ने कहा कि जमीयत के कानूनी हस्तक्षेप के कारण दिल्ली दंगों से जुड़े लगभग 600 लोगों को जमानत मिली है और 60 से अधिक लोग बरी हुए हैं। कई अन्य मामले अभी भी चल रहे हैं।

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