लेबनान में तैनात भारतीय शांति सैनिक अब ‘मेड इन इंडिया’ सैन्य वाहनों का करेंगे इस्तेमाल

नई दिल्ली: इजरायल-हमास युद्ध के बीच एक महत्वपूर्ण खबर सामने आई है, जिसमें संयुक्त राष्ट्र के ध्वज तले लेबनान में तैनात भारतीय शांति सैनिकों (यूनिफिल) की बटालियन को अब भारत में बने हुए स्वदेशी सैन्य वाहनों का उपयोग करने का अवसर मिलेगा। रक्षा सूत्रों के मुताबिक, भारतीय सेना की यह पहल भारत के बढ़ते रक्षा उत्पादन और आत्मनिर्भरता की दिशा में एक और बड़ा कदम है। लगभग 62 स्वदेशी सैन्य वाहनों की एक फ्लीट जल्द ही लेबनान भेजी जाएगी।
इन वाहनों में उच्च-गति वाले सैनिकों के लिए गतिशीलता वाहनों, मध्यम और हल्की एंबुलेंस, ईंधन टैंकर और रिकवरी वाहन शामिल हैं, जिनका कुल वजन एक से ढाई टन के बीच होगा। इन वाहनों की आपूर्ति से भारतीय शांति सैनिकों को अपनी गतिविधियों में अधिक सुविधाएं मिलेंगी और वे स्वदेशी सैन्य प्लेटफार्मों पर निर्भर रहकर अपनी रणनीतियों को आगे बढ़ा सकेंगे।
यह कदम भारतीय सेना की आत्मनिर्भरता और स्वदेशी रक्षा उत्पादों के निर्माण में बढ़ते आत्मविश्वास को दर्शाता है। साथ ही, यह भारत के शांति मिशनों में नेतृत्व और राष्ट्रीय समर्थन को भी प्रदर्शित करता है। सूत्रों ने यह भी बताया कि इन वाहनों का प्रयोग भारतीय बटालियन द्वारा गाजा-लेबनान सीमा पर स्थित 110 किलोमीटर लंबी ब्लू लाइन में तैनात शांति सैनिकों द्वारा किया जाएगा, जिनकी संख्या 10,000 से अधिक है, जिनमें 600 से 900 भारतीय सैनिक शामिल हैं।
अब तक भारतीय शांति सैनिक यूएन द्वारा प्रदत्त वाहनों का ही इस्तेमाल कर रहे थे, जो कि विश्वभर से लिए गए थे। लेकिन इस बार स्वदेशी वाहनों के इस्तेमाल से भारतीय बटालियन को अधिक मजबूती मिलेगी और वे भारतीय निर्मित सैन्य वाहनों पर भरोसा कर पाएंगे।
गौरतलब है कि यह कदम उस समय लिया गया है जब हाल ही में इजरायल द्वारा किए गए हमलों में शांति सैनिक घायल हुए थे, जिनमें भारत के दो शांति सैनिक भी शामिल थे। इस घटना के बाद भारत ने इजरायल को नसीहत दी थी कि वह अपने सैन्य हमलों में यूएन शांति सैनिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करे। भारत ने इस हमले की निंदा करते हुए यूएन से अपील की थी कि शांति सैनिकों की सुरक्षा और उनकी तैनाती के दौरान किसी भी तरह की आक्रमकता से बचा जाए।
हालांकि, इस बीच इजरायल और हमास के बीच 90 दिनों का संघर्ष विराम चल रहा है, और फिलहाल भारत ने यूएन के निर्णय का समर्थन करते हुए अपनी स्थिति स्पष्ट की है कि शांति सैनिकों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।
भारत का यह कदम न केवल स्वदेशी रक्षा उत्पादों के प्रति बढ़ती प्रतिबद्धता को दर्शाता है, बल्कि यह भारत के अंतरराष्ट्रीय शांति मिशनों में सक्रिय भूमिका को भी मजबूत करता है, जिससे वह दुनिया भर में अपनी स्थिति को और सशक्त बना रहा है।