
मुंबई – रतन टाटा का नाम भारतीय उद्योग और समाज में एक प्रमुख हस्ताक्षर के रूप में जाना जाता है। उनका जीवन और कार्य उनके नेतृत्व की विशेषताओं और समाज के प्रति उनके योगदान को दर्शाते हैं। 1962 में टाटा संस में कदम रखने के बाद, रतन टाटा ने न केवल पारिवारिक व्यवसाय को समझा, बल्कि उसे नई ऊँचाइयों पर भी पहुँचाया।
प्रारंभिक करियर और चुनौतियाँ
रतन टाटा ने अपने करियर की शुरुआत फ़्लोर पर काम करके की। 1971 में उन्हें नेल्को (नेशनल रेडियो एंड इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी लिमिटेड) का प्रभारी निदेशक बनाया गया। उस समय कंपनी वित्तीय संकट में थी, लेकिन रतन टाटा ने उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स डिवीजन को बेहतर बनाने का प्रयास किया। हालाँकि, आर्थिक मंदी और यूनियन मुद्दों के कारण उनकी योजनाएँ सफल नहीं हो पाईं।
1977 में, उन्हें एम्प्रेस मिल्स में स्थानांतरित किया गया, जहाँ उन्होंने मिल के पुनरुद्धार के लिए योजनाएँ बनाई। लेकिन यह प्रयास असफल रहा और मिल बंद हो गई। इसके बाद, उन्हें टाटा इंडस्ट्रीज में स्थानांतरित किया गया, जहाँ उन्होंने अपने नेतृत्व के गुणों को और निखारा।
अध्यक्ष पद और परिवर्तन
1991 में, जेआरडी टाटा ने रतन टाटा को टाटा समूह का अध्यक्ष नियुक्त किया। इस समय कुछ चिंताएँ थीं, लेकिन रतन टाटा ने अपनी रणनीतियों से समूह की स्थिति में सुधार किया। उनके नेतृत्व में, टाटा समूह ने एक समन्वित संरचना में कंपनियों को व्यवस्थित किया। टाटा टी का अधिग्रहण टेटली से, टाटा मोटर्स का जगुआर लैंड रोवर से और टाटा स्टील का कोरस से किया, जिससे समूह ने वैश्विक स्तर पर पहचान बनाई।
परोपकारी कार्य
रतन टाटा शिक्षा, चिकित्सा, और ग्रामीण विकास के क्षेत्रों में परोपकारी कार्यों के लिए भी जाने जाते हैं। उन्होंने न्यू साउथ वेल्स विश्वविद्यालय के इंजीनियरिंग संकाय के लिए बेहतर जल उपलब्ध कराने का सहयोग दिया। टाटा एजुकेशन एंड डेवलपमेंट ट्रस्ट ने कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के लिए 28 मिलियन डॉलर का टाटा स्कॉलरशिप फंड स्थापित किया, जिससे भारतीय छात्रों को वित्तीय सहायता मिल सकेगी।
निजी जीवन और अविवाहित स्थिति
रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर 1937 को मुंबई में हुआ। उन्होंने कभी विवाह नहीं किया, हालांकि उन्होंने बताया कि वे चार बार शादी के करीब पहुंचे थे, लेकिन हर बार किसी न किसी कारण से पीछे हट गए।
प्रमुख उद्धरण
रतन टाटा के शब्द जो हमेशा याद रहेंगे:
- “मैं सही निर्णय लेने में विश्वास नहीं करता। मैं निर्णय लेता हूँ और फिर उन्हें सही बनाता हूँ।”
- “अगर आप तेज़ चलना चाहते हैं, तो अकेले चलें। लेकिन अगर आप दूर चलना चाहते हैं, तो साथ चलें।”
- “लोग जो पत्थर तुम पर फेंकते हैं, उन्हें ले लो और उनका इस्तेमाल एक स्मारक बनाने में करो।”
सफलताएँ और पुरस्कार
रतन टाटा के नेतृत्व में, टाटा समूह ने कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियों का अधिग्रहण किया और एक वैश्विक ब्रांड के रूप में उभरा। उन्होंने टाटा नैनो और टाटा इंडिका जैसी प्रमुख ऑटोमोबाइल्स की कल्पना की। एक प्रमुख परोपकारी व्यक्ति के रूप में, उन्होंने अपने हिस्से का 65 प्रतिशत से अधिक हिस्सा धर्मार्थ ट्रस्टों में निवेश किया है।
उन्हें कई पुरस्कार भी मिले हैं, जैसे:
- पद्म भूषण (2000)
- पद्म विभूषण (2008)
- अंतर्राष्ट्रीय विशिष्ट उपलब्धि पुरस्कार (2005)
- ओस्लो बिजनेस फॉर पीस अवार्ड (2010)
निष्कर्ष
रतन टाटा का योगदान न केवल व्यवसाय जगत में है, बल्कि उनके परोपकारी कार्यों से समाज में भी सकारात्मक बदलाव आया है। उनका जीवन एक प्रेरणा है, जो हमें बताता है कि कठिनाइयों के बावजूद भी मेहनत और समर्पण से किसी भी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।