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Baz Report: भारत में 2025 में बोलने की आज़ादी पर गहराता संकट: 14,875 उल्लंघन, आठ पत्रकारों की हत्या—फ्री स्पीच कलेक्टिव

नई दिल्ली: भारत में बोलने की आज़ादी की स्थिति पर गंभीर चिंता जताते हुए फ्री स्पीच कलेक्टिव ने मंगलवार को अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी की। रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2025 के दौरान देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के उल्लंघन के कुल 14,875 मामले दर्ज किए गए। इनमें आठ पत्रकारों और एक सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर की हत्या, सैकड़ों गिरफ्तारियां, बड़े पैमाने पर सेंसरशिप और इंटरनेट नियंत्रण के हज़ारों मामले शामिल हैं।

फ्री स्पीच कलेक्टिव, जो भारत में फ्री स्पीच से जुड़े मामलों की निगरानी करने वाला एक स्वतंत्र संगठन है, ने कहा कि बीते साल अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमले कई स्तरों पर हुए—सरकारी सेंसरशिप, अदालतों के गैग ऑर्डर, एकेडमिक ऑटोनॉमी पर पाबंदियां, फिल्म सर्टिफिकेशन का दुरुपयोग, रेगुलेटरी नीतियां और कॉर्पोरेट हस्तक्षेप इसके प्रमुख रूप रहे।

पत्रकार सबसे ज़्यादा निशाने पर

रिपोर्ट के अनुसार, बोलने की आज़ादी से जुड़े 40 हमलों में से 33 मामलों में पत्रकारों को निशाना बनाया गया। इसके अलावा, परेशान किए जाने के 19 मामलों में से 14 में भी पत्रकार शामिल थे। पत्रकारों को धमकियां मिलने के 12 अलग-अलग मामले दर्ज किए गए।

सबसे गंभीर पहलू यह रहा कि साल भर में आठ पत्रकारों की हत्या हुई। इनमें उत्तर प्रदेश में दो पत्रकारों की जान गई, जबकि अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह, छत्तीसगढ़, हरियाणा, कर्नाटक, ओडिशा और उत्तराखंड में एक-एक पत्रकार की हत्या दर्ज की गई। इसके अलावा, पंजाब में एक सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर की भी हत्या कर दी गई।

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गिरफ्तारियां और कड़े कानून

रिपोर्ट में बताया गया कि 2025 में फ्री स्पीच से जुड़े मामलों में कुल 117 गिरफ्तारियां हुईं, जिनमें आठ पत्रकार शामिल थे। संगठन ने विशेष रूप से इस बात पर चिंता जताई कि दो पत्रकार—कश्मीर के इरफान मेहराज और झारखंड के रूपेश कुमार—अब भी अनलॉफुल एक्टिविटीज़ (प्रिवेंशन) एक्ट (UAPA) के तहत हिरासत में हैं। मेहराज मार्च 2023 से और कुमार जुलाई 2022 से जेल में बंद हैं।

राज्यों में स्थिति

राज्यवार आंकड़ों में गुजरात सबसे ऊपर रहा, जहां बोलने की आज़ादी के उल्लंघन के 108 मामले दर्ज किए गए। इसके बाद उत्तर प्रदेश में 83 और केरल में 78 मामले सामने आए।

सेंसरशिप और “लॉफेयर”

रिपोर्ट के अनुसार, साल 2025 में सेंसरशिप के 11,385 मामले दर्ज किए गए। इसके साथ ही “लॉफेयर” के 208 मामले भी सामने आए—यानी कानूनी प्रक्रियाओं का इस्तेमाल विरोधियों, पत्रकारों या आलोचकों को परेशान करने के लिए किया गया।

सेंसरशिप के आंकड़ों में केंद्र सरकार द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) को भेजी गई बड़ी संख्या में टेकडाउन रिक्वेस्ट शामिल हैं। मई महीने में सरकार ने भारत में 8,000 से अधिक अकाउंट्स का एक्सेस रोकने की कोशिश की, जो किसी भी एक महीने में दर्ज किया गया अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा बताया गया है।

इंटरनेट कंट्रोल और डिजिटल पाबंदियां

फ्री स्पीच कलेक्टिव ने 2025 में इंटरनेट कंट्रोल के 3,070 मामले दर्ज किए, जिनमें इंटरनेट शटडाउन और मोबाइल एप्लिकेशनों को ब्लॉक करना शामिल है। संगठन ने कहा कि इस तरह के कदम न केवल सूचना तक पहुंच को सीमित करते हैं, बल्कि लोकतांत्रिक विमर्श को भी नुकसान पहुंचाते हैं।

एकेडेमिया और सिनेमा पर असर

रिपोर्ट में कहा गया है कि शैक्षणिक संस्थानों में सेंसरशिप के कम से कम 16 “गंभीर मामले” सामने आए, जिनसे अकादमिक स्वतंत्रता पर असर पड़ा।
इसके अलावा, फिल्म सर्टिफिकेशन के “बेरोकटोक इस्तेमाल” को भी सेंसरशिप के एक औज़ार के तौर पर रेखांकित किया गया। रिपोर्ट में इस महीने का एक उदाहरण दिया गया है, जब केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने केरल इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में 19 फिल्मों के प्रदर्शन की अनुमति देने से इनकार कर दिया

डेटा प्रोटेक्शन कानून पर चिंता

फ्री स्पीच कलेक्टिव ने डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट के नियमों पर भी चिंता जताई, जिन्हें नवंबर में नोटिफाई किया गया था। संगठन का कहना है कि ये नियम पत्रकारिता के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं और सूचना के अधिकार (RTI) कानून को कमजोर कर भारत की पारदर्शिता व्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

रिपोर्ट के निष्कर्ष में कहा गया है कि 2025 के आंकड़े यह दिखाते हैं कि भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लगातार दबाव में है, और यदि इस प्रवृत्ति को नहीं रोका गया तो इसका सीधा असर लोकतंत्र, मीडिया की स्वतंत्रता और नागरिक अधिकारों पर पड़ेगा।

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