मुसलमानों को दे रहे सामुहिक सजा, नये कानून देश को पुलिस स्टेट बनाएंगेः जमाअत

जमाअते इस्लामी हिन्द ने शनिवार को पत्रकारवार्ता कर केन्द्र सरकार पर देश को पुलिस राज (Police State) में बदलने की तरफ बढ़ने और चुनाव में आए नतीजों की सामूहिक सजा मुसलमानों को देने का आरोप लगाया। जमाअते इस्लमी हिन्द ने साफ कहा कि देश में चुनाव के बाद जिस तरह से मॉब लिंचिंग और उससे जुड़ी घटनाएं बढ़ी हैं, वो राजनीति प्रेरित हैं, एक विचारधारा को लोग यह सब कर रहे हैं। वहीं सरकार द्वारा लागू गये, नये कानूनों पर जमाअत ने गंभीर चिंता व्यक्त की और कहां हम इनके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएंगे।
जमाअते ए इस्लामी हिंद के वायस प्रेसीडेंट इंजीनियर मोहम्मद सलीम ने कहा, सरकार को अपना पुराना रवैया बदलना होगा। अब सरकार इस देश को, देश के संविधान और कानून के हिसाब से चलाए। राज्य सरकारें में भी अपना राजधर्म निभाएं। यह किसी एक व्यक्ति की सरकार नहीं है, यह भारत सरकार है। उन्होंने आगे कहा कि चुनाव के बाद से जो घटनाएं हुई हैं उनमें से अधिकांश में साफ दिख रहा है कि यह बदले की भावना से प्रेरित हैं। अलग अलग राज्यों में हुई घटनाओं में वहीं ऐलिमेंट नजर आ रहे हैं जो अपने आपको कानून के ऊपर मानते हैं। नई सरकार आने के बाद उनको ऐसा लगता है कि वो अपना एजेंडा आगे बढ़ा सकते हैं। और उनका मानना है सरकार उनके खिलाफ कार्यवाही कैसे कर सकती है। यह सब अब रुकना चाहिये…। वहीं जमात ए इस्लामी ने देश में लागू किए गए नए आपराधिक कानूनों पर गहरी चिंता जताई और चेतावनी दी ये देश को ‘पुलिस राज’ की ओर धकेल सकते हैं। श्री सलीम ने कहा कि यह साफ है कि सरकार का लक्ष्य पुलिस राज्य की ओर बढ़ना है, तथा असहमति की आवाजों और उनके विरोधियों को दबाने के लिए फासीवादी मानसिकता अपनाना है।

प्रेस कांफ्रेंस के दौरान नदीम खान ने APCR द्वारा बनाई गई रिपोर्ट पेश की। जिसमें आरोप लगाया गया कि अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों को चुनाव के बाद निशाना बनाया जा रहा है। उन्होंने भाजपा शासित, विपक्ष के नेतृत्व वाले और कांग्रेस शासित क्षेत्रों सहित विभिन्न राज्यों के उदाहरण दिए। खान ने उल्लेख किया कि एपीसीआर ने आम चुनावों के एक महीने के भीतर उत्तर प्रदेश, गुजरात और पश्चिम बंगाल सहित राज्यों में फैली आठ लिंचिंग और भीड़ के हमले की घटनाओं की पड़ताल की। नदीम खान ने जोर देकर कहा कि इनमें से लगभग 90 प्रतिशत मामले राजनीति से प्रेरित प्रतीत होते हैं। उन्होंने उसी अवधि के दौरान पश्चिम बंगाल में कम से कम 11 लिंचिंग घटनाओं का भी उल्लेख किया।
सामुहिक सजा दी जा रही..
नदीम खान ने आरोप लगाया कि अल्पसंख्यकों, खास तौर पर मुसलमानों को सरकार या सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ वोट देने की सामूहिक सजा के तौर पर निशाना बनाया जा रहा है। उन्होंने जोर देकर कहा कि कोई भी राज्य, चाहे वह भाजपा, विपक्षी दलों या कांग्रेस द्वारा शासित हो, इस तरह के टार्गेटेड हमलों में अछूता नहीं है। उन्होंने कहा उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में बड़ी संख्या में मुसलमानों के घर आधी सच्चाई और शुरुआती एफआईआर के आधार पर तोड़ दिये गये। उन्होंने कहा अगर न्याय ‘बुलडोजर’ के ज़रिए दिया जाना है, तो अदालतें बंद कर दी जा सकती हैं।
1 जुलाई से लागू हुये कानूनों की बताई खामियां..

एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (एपीसीआर) के राष्ट्रीय सचिव नदीम खान ने नए कानूनों और अंग्रेजो के रॉलेट एक्ट से जोड़ते हुये कहा, दोनों में कानूनों में बिना किसी मुकदमे या न्यायिक समीक्षा के हिरासत में रखने की इजाजत दी गई है।
खान ने कहा कि नए कानून तब पारित किए गए जब दिसंबर में लगभग 145 संसद सदस्यों को सदन से निलंबित कर दिया गया था। उन्होंने कहा कि नए कानून के तहत पुलिस को किसी भी आरोपी (अभी तक दोषी नहीं ठहराया गया) को हथकड़ी लगाने का पूरा अधिकार दिया गया है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने केवल दुर्लभतम Rare मामलों में ही हथकड़ी लगाने की अनुमति दी है।
नदीम ने बताया कि पहले पुलिस किसी आरोपी को 15 दिनों तक हिरासत में रख सकती थी, जिसके बाद वकील जमानत के लिए आवेदन कर सकता था। हालांकि, नए कानूनों के तहत पुलिस रिमांड 90 दिनों तक बढ़ सकती है, जो न्यायपालिका के इस सिद्धांत को पलट देता है कि जमानत नियम है और जेल अपवाद है’।
उन्होंने कहा कि पहले जब पुलिस किसी व्यक्ति को हिरासत में लेती थी या गिरफ्तार करती थी, तो उसे 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना होता था। अब, नए कानून में हिरासत की विशिष्ट अवधि का कोई उल्लेख नहीं है, जिससे 24 घंटे से लेकर कई दिनों तक की हिरासत की अनुमति मिलती है।
नदीम ने तर्क दिया कि नई कानूनी व्यवस्था पुलिस को नागरिकों पर बेलगाम ताकत मुहैय्या करती है।
उन्होंने मुलजिम साबित होने तक बेगुनाह’ के सिद्धांत से अदालत द्वारा बेगुनाह साबित होने तक गुनहगार’ के सिद्धांत में बदलाव की आलोचना की। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जबकि कानून सभी नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए हैं, मौजूदा प्रणाली निर्दोष व्यक्तियों को दंडित करने का जोखिम उठाती है जबकि कई अपराधियों को सजा से बच निकलने देती है।

सुप्रीम कोर्ट जाएंगे…
नदीम ने बताया कि एपीसीआर की नए कानूनों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने जा रही है। उन्होंने यह भी बताया कि वे सभी राज्य सरकारों को पत्र लिख रहे हैं, जिसमें उनसे आग्रह किया गया है कि जब तक ज़रूरी बदलाव नहीं हो जाते, तब तक वे इन भेदभावपूर्ण कानूनों को लागू न करें। वे मांग करते हैं कि केंद्र सरकार इन कानूनों को समीक्षा और संसदीय स्थायी समितियों को मूल्यांकन और आवश्यक समायोजन के लिए भेजे।