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सुप्रीम कोर्ट के फैसले, यूनिफार्म सिविल कोड, मथुरा ज्ञानवापी पर पर्सनल लॉ बोर्ड ने बनाई रणनीति

नई दिल्ली। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने पूर्व पति से इद्दत की मुद्दत पूरी होने के बाद भी भरण-पोषण पाने का अधिकार है। इस पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का कहना है कि यह फैसला उन मुस्लिम महिलाओं के लिए मुश्किल खड़ी करेगा, जो अपने दर्दभरे रिश्ते से सफलतापूर्वक बाहर आ चुकी हैं। बोर्ड ने जोर देकर कहा कि यह मानवीय तर्क के साथ अच्छा नहीं है कि तलाक हो जाने के बाद भी व्यक्ति को पूर्व पत्नियों की जिम्मेदारी उठाने के लिए कहा जा रहा है। ये हमे स्वीकार नहीं है।

इसका फैसला ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक में लिया गया।

प्रेसीडेंट हजरत मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी की अध्यक्षता में हुई बैठक में बोर्ड ने निर्णय लिया कि मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं के भरण-पोषण पर शीर्ष अदालत का हालिया फैसला इस्लामी कानून (शरीयत) के खिलाफ था। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने पवित्र कुरान के अनुसार निकाह को जारी रखने के महत्व पर जोर दिया। साथ ही कहा कि तलाक के बाद पुरुषों को पूर्व पत्नियों को बनाए रखने के लिए मजबूर करना अव्यावहारिक है।

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बैठक की कार्रवाई का संचालन महासचिव मौलाना मुहम्मद फजलुर्रहीम मुजादीदी ने किया, जिसमें देश भर से प्रतिनिधियों ने भाग लिया। मुस्लिम पर्सनल बोर्ड ने अपने अध्यक्ष को यह अधिकार दिया कि वह इस फैसले को वापस कराने के लिए कोई भी कदम उठा सकते हैं। गौरतलब है कि बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने पूर्व पति से भरण-पोषण पाने का अधिकार है।

मामले पर चर्चा करते हुए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड वर्किंग कमेटी ने इस बात पर जोर दिया है कि उल्लेख किया था कि सभी संभावित कर्मों में से अल्लाह की दृष्टि में सबसे घृणित तलाक है। इसलिए हर कोशिश करके शादी को जारी रखना ही उचित है।

बोर्ड ने आगे कहा कि अगर इसके बावजूद शादी को बरकरार रखना मुश्किल हो जाता है तो इंसानियत की भलाई के लिए तलाक का उपाय बताया गया है।

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सरकार और विपक्ष से करेंगे बात

बोर्ड ने अपने प्रेसीडेंट को यह अधिकार दिया कि वह सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को वापस करने के लिए कोई भी कदम उठा सकते हैं। इसके लिए वह कानूनी, संवैधानिक या लोकतांत्रिक, कोई भी रास्ता अख्तियार कर सकते हैं।

बोर्ड ने यह भी कहा कि वह इस मामले को लेकर केंद्र सरकार और विपक्ष से बात करेगी।

यूसीसी के खिलाफ कोर्ट जाएंगे

इसके अलावा बोर्ड ने यूसीसी पर भी अपनी राय जाहिर की। बोर्ड ने उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को चुनौती देने का संकल्प लिया और अपनी कानूनी समिति को एक याचिका दायर करने का निर्देश दिया। बोर्ड ने कहा कि हालिया लोकसभा चुनाव के परिणामों से भी संकेत मिले हैं कि लोग सरकार के कदमों से सहमत नहीं हैं।

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि यह फैसला उन मुस्लिम महिलाओं के लिए मुश्किल खड़ी करेगा, जो अपने दर्दभरे रिश्ते से सफलतापूर्वक बाहर आ चुकी हैं। बोर्ड ने जोर देकर कहा कि यह मानवीय तर्क के साथ अच्छा नहीं है कि तलाक हो जाने के बाद भी व्यक्ति को पूर्व पत्नियों की जिम्मेदारी उठाने के लिए कहा जा रहा है। बोर्ड ने इस बात पर जोर दिया कि भारत जैसे बहु-धार्मिक देश में, धार्मिक संस्थाओं को अपने स्वयं के कानूनों का पालन करने का अधिकार है, जैसे मुसलमानों के लिए शरिया एप्लिकेशन अधिनियम-1937।

मथुरा ज्ञानवापी पर चिंता जताई

बोर्ड ने ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की शाही ईदगाह से संबंधित नए विवादों पर विचार करने के लिए निचली अदालतों की आलोचना की। इसने सुप्रीम कोर्ट से ‘पूजा स्थल अधिनियम, 1991’ को बरकरार रखने और विरासत मस्जिदों की रक्षा करने का आग्रह किया, साथ ही उन्हें ध्वस्त करने या बदलने के किसी भी प्रयास के प्रति आगाह भी किया।

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