आखरी सांस तक अदालत में ‘सिमी का केस’ लड़ने वाले शाहिद बदर फलाही सुपुर्दे खाक
स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) पर लगे प्रतिबंध के खिलाफ 24 साल लगातार आखरी सांस तक कानूनी लड़ाई लड़ने वाले डॉ. शाहिद बद्र फलाही अब इस दुनिया में नहीं रहे।
सनिचर को उनका इंतकाल हो गया और सनिचर को ही देर रात आजमगढ़ के मिनचोभा गांव में उन्हें सुपुर्देखाक कर दिये गये। वे 55 साल के थे। कुछ दिन पूर्व ब्रेन स्ट्रोक के बाद आजमगढ़ के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
शाहिद बद्र का जन्म 1969 में आजमगढ़ के मिनचोभा गांव में हुआ था। यहां उन्होंने प्रायमरी स्कूल में शुरुआती तालीम हासिल की। जिसके बाद वे आजम गढ़ के जामीअतुल फलाह आगे की तालमी के लिये चले गये। यहां से आलिमयात की डिग्री हासिल करने के बाद, शाहिद बद्र के नाम के साथ फलाही जुड़ गया। फिर आगे की तालीम के लिये अलीगढ मुस्लिम युनीवर्सिटी चले गये। यहां से यूनानी मेडिसिन एवं सर्जरी की डिग्री हासिल की, BUMS मुकम्मल करने के बाद शाहिद ब्रद फलाही, डॉ. शाहिद बद्र फलाही बन गये।
2001 में लगा था प्रतिबंध..
जामिअतुल फलाह में पढ़ाई के दौरान फलाह की सिमी इकाई के करीब आए और सिमी के सक्रिय कार्यकर्ता बन गये। सीमी पर प्रतिबंध लगने से पहले तक डॉ शाहिद ने इकाई, प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर इस संगठन में अलग अलग जिम्मेदारी निभाई। जिसके बाद साल 27 सितम्बर 2001 में जब स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार ने सिमी को गैर कानूनी और देश विरोधी गतिविधियों के आरोप में प्रतिबंधित किया। तब डॉ. शाहिद सिमी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। प्रतिबंध के बाद जामिया नगर स्थित सिमी के मुख्यालय से डॉ. शाहिद बद्र और अन्य पदाधिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया।
वे साल 2005 तक जेल में रहे, जिसके बाद उन्हें बरी कर दिया।
Source Amarujala: Azamgarh News: प्रतिबंधित सिमी के अंतिम राष्ट्रीय अध्यक्ष का निधन
न्याय व्यवस्था पर था भरोसा !
डॉ. शाहिद बद्र फलाही सिमी पर लगाए गये आरोप को गलत और प्रतिबंध को गैरकानूनी मानते थे। उन्होंने सिमी पर प्रतिबंध के खिलाफ न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। साल 2001 के बाद के सभी इंटरव्यूह में डॉ. शाहिद यही कहते नजर आए कि उन्हें भारत की न्याय व्यवस्था पर भरोसा है, उन्हें इंसाफ मिलेगा। शुरुआत में 5 साल के लिये लगा प्रतिबंध साल दर साल बढ़ता गया। लेकिन शाहिद ने हिम्मत नहीं हारी और वो केस लड़ते रहे।
सिमी आज भी प्रतिबंध संगठन है, विशेष ट्रिब्यूनल में प्रतिबंध पर सुनवाई चल रही है। लेकिन अब शाहिद ब्रद फलाही नहीं हैं।
आजमगढ़ के मशहूर यूनानी डॉक्टर
2005 में बरी होने के बाद डॉ. शाहिद अपने आबाई शहर आजमगढ़ लौट आए और यहां अपनी डॉक्टरी की प्रेक्टिस करने लगे। डॉ. शाहिद ने कुछ सालों में एक कामयाब यूनानी प्रेस्टिशनर की पहचान भी हासिल कर ली। इंतकाल के कुछ दिन पहले तक डॉ. शाहिद ने अपनी मेडिकल प्रेक्टस जारी रखी।
कई किताबें लिखी, कई महशूर हुईं…
2004 से 2024 तक की डॉ. शाहिद की जिंदगी क्लिनिक, अदालत और लाईब्रेरी के इर्द गिर्द घूमती दिखी। डॉ. शाहिद जहां अपने क्लिनिक में मेडिकल प्रेक्टिस करते थे, यही उनका जरिया ए रोजगार था। इसके बाद सिमी पर प्रतिबंध, उनपर और साथियों पर चल रहे केस की कानूनी लड़ाई में समय देते। इससे जो समय बचता तो डॉ. शाहिद पढ़ाई और तसनीफ (लेखन) में लगता।
डॉ. शाहिद की कई किताबें शाया (प्रकाशित) हुईं, जिसमें फुक्कन हानी, शोबा ए अबी तालिब ने अदब और इस्लामियात से जुड़े लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा।
कई हिस्सों में बटी है जिंदगी …
शाहिद बद्र फलाही की जिंदगी के कई हिस्से हैं। जामिअतुल फलाह और उससे पहले का दौर, सिमी में सरगर्मी और बैन (2001) तक का दौर, फिर उसके बाद से 2024 तक का दौर। हर दौर में शाहिद अलग नजर आते हैं।
जहां 2001 के पहले वाले डॉ. शाहिद की तकरीरों में संविधान और न्याय व्यवस्था को लेकर अविश्वास और विरोध नजर आता है। वहीं 2001 के बाद वाले शाहिद भारतीय न्याय व्यवस्था में मजबूत भरोसा रखने वाले शाहिद नजर आते हैं।
एक पीढ़ी पर गहरा असर……..
एक बात जो नजर अंदाज नहीं की जा सकती वो यह कि एक पूरी पी़ढ़ी को शाहिद ने मुतास्सिर किया है। आज देश में 30 से 45 साल के बीच के जो मुसलमान हैं। उनमें एक बड़ी तादाद के जहन पर डॉ. शाहिद शाहिद ब्रद फलाही और उनके संगठन (2001 तक) का गहरा असर है। अब यह असर नेगेटिव हैं या पाजिटिव इस पर कल भी बहस थी और आने वाले कल में भी इसपर चर्चा होती रहेगी।
इन्ना लिल्लाहे वइन्ना इलैहे राजीऊन