मजबूूत सीमेंट की सड़कों पर पोता जा रहा डामर

कायाकल्प के नाम पर सरकारी धन की होली
जबलपुर। शहर में विकास हो अच्छी बात है लेकिन विकास के नाम पर जनता के टैक्स की गाढ़ी कमाई को पानी में न बहाया जाए। लेकिन इन दिनों शहर में ऐसा ही कुछ हो रहा है। मुख्यमंत्री अधोसंरचना काया कल्प योजना के तहत मिली राशि से बनी बनाई सीमेंट की सड़कों पर डामर की परत चढ़ाई जा रही है इस पर आम लोगों का खासा आक्रोश और तीव्र प्रतिक्रिया है। जहां हाल ही में 5-6 साल पहले मजदूर सीमेंट की सड़के बनाई गई थी, यह सड़के अभी बहुत अच्छी हालत में थी इसके बावजूद अच्छी खासी सड़कों का डामलीकरण किया जा रहा है ऐसा क्यों किया जा रहा है यह तो शहर के जनप्रतिनिधि ही जाने। फिलहाल सड़कों के निर्माण का श्रेय लेने के लिए सब आगे आ रहे है।
जानकारो का कहना है कि मुख्यमंत्री अधोसंरचना काया कल्प योजना के तहत 100 करोड़ रुपए की राशि हर जिले के नगरी निकायों को दी गई थी, जिसमें अधोसंरचना विकास के कार्य किए जाने है। लेकिन इसके नाम पर सिर्फ सड़के बनाई जा रही हैं। शहर में अधिकांश सड़के मजबूत सीमेंटेंड मौजूद थी लेकिन उन पर डामलीकरण कर पैसे का दुरुपयोग किया जा रहा है। इसमें कही न कही ठेकेदार अधिकारियों और जनप्रतिनिधि के काकस पर सवाल उठ रहे हैं। जो सड़के बनाई जा रही है उन पर जानकारों का कहना है कि सीमेंट पर डामर लंबे समय तक नहीं चलेगा। कहने को तीन साल की गारंटी पर यह सड़क बनाई जा रही है लेकिन एक बरसात के बाद इन सड़कों पर गड्ढे उभरना शुरु हो जायेंगे।
इसी तरह गलियों में सीमेंट सड़कों पर फिर सीमेंट चढ़ाया जा रहा है। लेकिन कमीश की उधेड़बुन में किसी को किसी बात से कोई मतलब नहीं है। दरअसल कायाकल्प योजना के तहत हर नगरीय निकाय को 100-100 करोड़ रुपये दिये गये हैं। उसी के पैसे की बंदरबांट करने के लिये उसे पानी की तरह बहाया जा रहा है। यह खेल कमोबेश हर वार्ड में जारी है। हैरानी की बात यह है कि इस खेल से अधिकारी आंख मूंदे हुये हैं।
रातों रात पोत देते हैं डामल………
आश्चर्य की बात तो यह है कि वार्डों में कुछ साल पहले बनी सीमेंट की सड़कों पर रातों रात डामल पोत दिया जाता है। यह डामल की सड़कें कई जगह इतनी पतली है कि मजबूत सीमेंटेड सड़क पर डामल की यह पतली लेयर एक नौतपे की गर्मी भी नहीं झेल पाएगी। पहली गर्मी में यह लेयर सतह छोड़ देगी और बारिश में टुकड़ों में उधड़ना शुरु हो जाएगी।
ऐसे होता है खेल…….
बताया जा रहा है कि कायाकल्प योजना के पैसे की बंदरबांट का पूरा खेल पार्षद अनुशंसा, ठेकेदार और अधिकारियों के गठजोड़ में चल रहा है। ठेकेदार पार्षदों को सेट करते हैं, पार्षद अपने वार्ड की किसी सड़क की अनुशंसा करता है। अधिकारी उसे बिना जांचे वर्कआर्डर जारी कर देते है। रातों रात डामल की पतली लेयर सीमेंट की सड़क के ऊपर पोत दी जाती है। तो कही छोटी गलियों में बनी हुई सड़क पर क्रांकीट की लेयर चढ़ा दी जाती है। कुछ दिन बाद अधिकारी सड़कों को जांच में ओके कर देते है। कायाकल्प योजना से पैसा पास हो जाता है। ठेकेदार के खाते में आता है। ठेकेदार, पार्षद और अधिकारी को उसका हिस्सा दे देता है। फिर अगली सड़क चुनी जाती है।
जहां जरूरत वहां बदहाली……
यह भी सामने आ रहा है कि इस खेल में उन्हीं सीमेंट की सड़कों को चुना जा रहा है, जो मजबूत हो और अच्छी हों। क्योंकि उसके ऊपर दोबारा डामल या सीमेंट की सड़क बनाने दिखावे के मटेरियल में भी काम हो जाएगा। जिससे कमीशन की रकम और बचत दोनों दुगनी होतीr। इस खेल का नतीजा यह है कि जहां वार्डों की मुख्य सड़कें बार बार बनती चली जा रही हैं। तो अन्दर की सड़कें बदहाली का शिकार हैं।