
जबलपुर। जबलपुर के मेडिकल कॉलेज की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था के बीच एक ऐसी मानवीय पहल सामने आई है, जिसने न केवल पुलिस की संवेदनशीलता को दिखाया, बल्कि हमें यह भी याद दिलाया कि इंसानियत का असली रूप तभी उजागर होता है, जब मुश्किल वक्त में एक दूसरे का साथ दिया जाता है। यह कहानी है गढ़ा थाना क्षेत्र के ग्राम गढ़ाई निवासी नर्मदा प्रसाद सिलावट और उनके बेटे नारायण की, जिन्होंने दर्द और संघर्ष के बीच पुलिस के सहारे अपने प्रिय के शव को घर तक पहुँचाने का रास्ता पाया।
... नर्मदा प्रसाद सिलावट को दो दिन पहले नरसिंहपुर जिला अस्पताल से जबलपुर के मेडिकल कॉलेज रेफर किया गया था। उनके बेटे नारायण ने बताया कि इलाज के दौरान उनके पिता को काफी कठिनाई हो रही थी, खासकर खाने-पीने में। मेडिकल कॉलेज में कुछ राहत मिली, लेकिन फिर भी उनकी हालत में कोई खास सुधार नहीं हुआ। बुधवार रात अचानक उनकी तबीयत और बिगड़ गई। डॉक्टरों ने तत्काल खून की जरूरत बताई, और नारायण ने पिता के लिए हरसंभव कोशिश की। खून का इंतजाम करने के लिए वह खुद दौड़ते रहे, लेकिन किसी भी तरह से खून का इंतजाम नहीं हो पाया। इस दौरान नर्मदा प्रसाद की मौत हो गई।
कड़कड़ाती ठंड में मेडिकल कॉलेज के स्टाफ अपना पल्ला झाड़ते हुये शव को रात करीब 11 बजे अस्पताल के बाहर रख दिया। एक बेटे के लिये यह एक दिल दहला देने वाली स्थिति थी. न उसके पैसा था न साधन .. समस्या यह थी की वो अपने पिता का शव घर कैसे लेकर जाएगा.
वह पूरे समय अपने पिता के शव के पास बैठा रहा, रोते हुए, यह सोचते हुए कि अब क्या किया जाए। तभी गढ़ा थाना पुलिस की मानवीय पहल सामने आई।
रात करीब 2:30 बजे गश्त के दौरान पुलिसकर्मी एक पेड़ के नीचे बैठे नारायण पर नजर पड़ी। पुलिसकर्मियों ने जब उसकी स्थिति के बारे में पूछा, तो नारायण ने बताया कि इलाज के दौरान उसके परिवार के अन्य सदस्य—बड़े भाई, भाभी और चाचा—वहां मौजूद थे, लेकिन जैसे ही उसके पिता की मौत हुई, वे बिना किसी सूचना के वहां से चले गए। नारायण अकेला था, और अब उसके पास कोई सहारा नहीं था।
यह सुनकर गढ़ा थाना पुलिस तुरंत सक्रिय हो गई। उन्होंने नारायण को पहले खाना दिया, ताकि उसे थोड़ी राहत मिले। फिर पुलिस ने उसकी मदद के लिए एम्बुलेंस की व्यवस्था की और तड़के 3 बजे शव को करेली गांव भेजने की व्यवस्था की। पुलिसकर्मी अनिल यादव ने बताया कि गश्त के दौरान उन्हें अकेला बैठा हुआ नारायण दिखा, और जब उन्होंने उसकी स्थिति पूछी, तो पता चला कि वह पैसों की कमी के कारण अपने पिता के शव को गांव तक नहीं ले जा पा रहा था। इसके बाद पुलिस ने बिना किसी देरी के मदद की, और शव को घर भेजने का पूरा इंतजाम किया।
यह घटना पुलिस की संवेदनशीलता और इंसानियत का एक बेहतरीन उदाहरण बन गई। इंसानियत और पुलिस की जिम्मेदारी का यह अद्भुत उदाहरण समाज के लिए एक संदेश है कि जब भी कोई संकट आ जाए, तो मदद की एक छोटी सी कोशिश भी किसी के जीवन में बदलाव ला सकती है।