
भारत में चल रहे लोकसभा चुनाव के दौरान अमेरिका दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है। पहले रूस और अब ईरान के साथ रिश्तों में भारत ने अमेरिकी दबाव के आगे झुकने से इनकार कर दिया, जिसके बाद अमेरिका कुटिल चाल चल रहा है।
अमेरिकी विदेश विभाग ने हाल ही में कहा था कि वह सभी धार्मिक समुदाय के सदस्यों के लिए समान व्यवहार के लिए सार्वभौमिक सम्मान को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है और इस मामले पर भारत समेत दुनिया भर के देशों के साथ बातचीत कर रहा है। जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में इंटरनेशनल स्टडीज के एक प्रोफेसर और राजनीतिक विशेषज्ञ अमेरिका की हालिया टिप्पणी को भारत पर दबाव बनाने की रणनीति के तहत देखते हैं। स्पुतनिक से बातचीत में उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यकों से संबंधित मुद्दों को उठाने के अमेरिकी प्रयास कभी-कभी वास्तविक होते हैं लेकिन अधिकांश समय वे राजनीतिक होने के साथ ही विदेश नीति के एजेंडे को आगे बढ़ाने की कोशिश के हिस्से के रूप में होते हैं। उनका कहना है कि अमेरिका नई दिल्ली पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है। साथ ही उनका मानना है कि ऐसी कोशिशें भारतीय मतदाताओं पर असर नहीं डालेंगी। उन्होंने कहा कि भारत ने हाल ही में ईरान के साथ बुनियादी ढांचे को लेकर समझौता किया है और यूक्रेन के संघर्ष पर भी वाशिंगटन की लाइन पर चलने से इनकार कर रहा है।
ऐसे में अमेरिका धार्मिक स्वतंत्रता के प्रोपेगैंडा फैलाकर भारत पर दबाव बनाना चाहता है। उन्होंने बताया कि भेदभाव के आधार पर भारत को अलग करने की अमेरिकी रणनीति गलत है, क्योंकि पूर्वाग्रह या भेदभाव केवल धर्म के आधार पर ही नहीं है बल्कि रंग या नस्ल के आधार पर भी होता है, जिसमें अमेरिका काफी आगे है।