नोटबंदी की आठवीं वर्षगांठ : रुपया डॉलर के मुकाबले कमजोर, यह नोटबंदी की असफलता का नतीजा : अखिलेश यादव
नोटबंदी की आठवीं वर्षगांठ : समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने नोटबंदी के 8 साल पूरे होने पर भाजपा सरकार को आड़े हाथों लिया है। शुक्रवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट में उन्होंने नोटबंदी को भारतीय अर्थव्यवस्था के इतिहास में एक “काला अध्याय” करार दिया।
अखिलेश यादव ने अपने पोस्ट में लिखा, “नोटबंदी की नाकामयाबी का असर अब तक महसूस किया जा रहा है। एक दिन पहले ही रुपया डॉलर के मुकाबले अपनी सबसे कमजोर स्थिति में पहुंच गया है।” उन्होंने सवाल उठाया, “क्या यह नोटबंदी की असफलता का नतीजा है, या फिर भाजपा की नकारात्मक नीतियों का परिणाम?”
सपा प्रमुख ने आगे कहा, “क्या अब भाजपा यह कहेगी कि रुपया डॉलर के मुकाबले नहीं गिरा, बल्कि डॉलर ऊपर उठ गया है?” उनके अनुसार, नोटबंदी ने देश की अर्थव्यवस्था को गंभीर नुकसान पहुंचाया और भाजपा सरकार ने “देश की अर्थव्यवस्था को अनर्थव्यवस्था में बदल दिया है।” उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि भाजपा सरकार ने जनमानस के लिए जिन आर्थिक सुधारों की उम्मीद जताई थी, वे पूरी तरह विफल साबित हुए हैं।
नोटबंदी की विफलता और इसके आर्थिक परिणाम
8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अचानक 500 और 1000 रुपए के पुराने नोटों को चलन से बाहर कर दिया था। इसका मुख्य उद्देश्य भ्रष्टाचार, कालाधन और आतंकवाद की फंडिंग पर नियंत्रण पाना था, साथ ही देश में डिजिटल इकोनॉमी को बढ़ावा देना था। हालांकि, यह फैसला काफी विवादास्पद रहा और इसके बाद पूरे देश में बैंकों और एटीएम के बाहर लंबी-लंबी कतारें देखने को मिलीं।
नोटबंदी के फैसले को लेकर कई आलोचनाएं आईं। जानकारों और विपक्ष ने कहा कि इस फैसले से अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हुआ, छोटे और मंझले व्यापारियों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, और लाखों लोग बेरोजगार हो गए। इसके अलावा, कई विशेषज्ञों ने इसे औद्योगिक उत्पादन, कृषि, और असंगठित क्षेत्र के लिए नुकसानदायक बताया।
रुपया की गिरावट और इसके असर
अखिलेश यादव का आरोप है कि नोटबंदी की असफलता और भाजपा की नीतियों का असर अब रुपए की गिरावट के रूप में सामने आ रहा है। एक दिन पहले ही रुपया डॉलर के मुकाबले अपने सबसे कमजोर स्तर पर पहुंच गया, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था की बिगड़ी हालत को लेकर सवाल उठने लगे हैं।
अखिलेश ने इस अवसर पर भाजपा सरकार को घेरते हुए कहा कि भाजपा ने अपनी नीतियों से देश की आर्थिक स्थिति को दुरुस्त करने के बजाय उसे और खराब किया है। “रुपया कहे, आज का, नहीं चाहिए बीजेपी,” उन्होंने यह भी जोड़ा, जो उनकी सरकार की आलोचना का एक स्पष्ट संकेत था।
नोटबंदी का प्रभाव
नोटबंदी के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था पर जो प्रभाव पड़ा, उसे लेकर कई विशेषज्ञों का कहना था कि यह असंगठित क्षेत्र के लिए विनाशकारी साबित हुआ। आंकड़ों के अनुसार, नोटबंदी के बाद लाखों लोग बेरोजगार हो गए थे, खासकर वे लोग जो कैश-आधारित व्यापार करते थे। इसके अलावा, छोटे उद्योगों, खुदरा व्यापार, और कृषि क्षेत्र को भी भारी नुकसान हुआ।
हालांकि, सरकार का दावा था कि नोटबंदी से कालाधन का सफाया हुआ और डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा मिला, लेकिन इसके परिणामस्वरूप समाज के कई वर्गों को लंबे समय तक आर्थिक नुकसान हुआ। विपक्षी दलों का आरोप था कि सरकार ने बिना किसी तैयारी के यह कदम उठाया, जिसका परिणाम जनता को भुगतना पड़ा।
नोटबंदी की आठवीं वर्षगांठ
नोटबंदी के 8 साल पूरे होने पर जहां सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भाजपा सरकार को आड़े हाथों लिया, वहीं कई अन्य राजनीतिक दलों ने भी इस निर्णय को आलोचना का निशाना बनाया। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस नेता राहुल गांधी सहित कई अन्य नेताओं ने इसे भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक “धोखा” करार दिया था।
कुल मिलाकर, नोटबंदी के आठ साल बाद भी इसके असर पूरी तरह से भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था में महसूस किए जा रहे हैं, और इसके नकारात्मक प्रभावों पर बहस लगातार जारी है।