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संभल के हर घर में मातम: नईम अकेला कमाने वाला था, बिलाल की शादी थी, कैफ के गम में मां पागल हो चुकी है, रोमान बिना पोस्टमार्टम के दफ़नाया गया

संभल में हाल की हिंसा ने कई परिवारों को तोड़ दिया है। हिंसा में मारे गए लोगों के शवों को दफनाया जा चुका है, लेकिन उनके परिजनों का दर्द और रोना थमने का नाम नहीं ले रहा है।

नईम जो अपने परिवार का अकेला सहारा था, अब कभी घर वापस नहीं आएगा। उसकी विधवा मां, इदरो, अपने बच्चों के भविष्य को लेकर टूट चुकी हैं। उनका दिल रोते हुए यह सवाल करता है कि अब वह अपने चार बच्चों का पेट कैसे भरेंगी?

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बिलाल की शादी की तैयारी में लगे पिता ने बेटे को सेहरे की जगह कफन में लपेट कर दफना दिया है और जानने चाहते हैं कि पुलिस ने उनके बेटे को क्यों और कैसे मारा..?

मोहम्मद क़ैफ़ की मां, अनीसा, अपने बेटे की मौत की ख़बर को सुनकर बदहवास हो चुकी हैं, और उनके चेहरे की खामोशी में एक गहरी टीस है।

रोमान ख़ान का परिवार इतनी दहशत में हैं कि बेटे को बिना पोस्टमार्टम और रिपोर्ट किये दफना दिया, उनके रोमान के बाद किसी को खोने का हौफला नहीं. रोमान का परिवार इंसाफ नहीं, बचे ही लोगों को जीने दो का हक मांग रहा है.

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इन परिवारों के दर्द की कोई सीमा नहीं है, और उनका एक ही सवाल है—क्या इन्हें इंसाफ मिलेगा? क्या उनकी आवाज़ सुनी जाएगी?

गोली उनके शरीर को चीरती हुई निकल गई

मोहल्ला तबेला कोट में हुई हिंसा की यादें एक दुकान के शटर से बाहर निकली गोली के निशान में कैद हो गई हैं। इसी मोहल्ले के 34 वर्षीय नईम गाज़ी की मौत रविवार को हुई हिंसा में हो गई थी। गोली उनके शरीर को चीरती हुई निकल गई थी। नईम की विधवा मां, इदरो गाज़ी, घर के बाहर एक युवक से लिपट कर फूट-फूट कर रो रही थीं, उनका दिल दहला देने वाला दर्द बोल उठा: “मेरे बेटे को जामा मस्जिद के पास घेर कर मार दिया गया। मेरा शेर सा बेटा अब नहीं रहा।”

नईम का शव पोस्टमार्टम हाउस में रखा था। इदरो अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित थीं। वे कहती हैं, “मेरा बेटा घर का अकेला कमाने वाला था, अब मैं अपने चार बच्चों का पेट कैसे भरूंगी? मैं विधवा होकर अपने बच्चों को पाल रही थी, और अब बुढ़ापे में मेरा सहारा छिन गया है।”

नईम की पत्नी के चेहरे पर गहरी खामोशी थी, लेकिन उनका दर्द शब्दों से बाहर आ गया था। वे बस यही कह पाईं, “जो हो रहा है, वह इंसाफ नहीं है। मुसलमानों को एकतरफा निशाना बनाया जा रहा है। यह जुल्म है।” इदरो ने अपनी बहू को दिलासा देते हुए कहा, “हम कोई मुकदमा नहीं करेंगे, हम सब्र करेंगे। हमें अब पुलिस और सरकार से लड़ने की ताकत नहीं है।”

संभल में आज क्या हुआ

मेरे बेटे के सीने में पुलिस की गोली लगी

बाग़ीचा सरायतरीन मोहल्ले में एक मस्जिद के बाहर खड़े नफ़ीस अपने बेटे बिलाल की यादों में खोये हुए हैं। बिलाल की भी हिंसा में मौत हुई थी। नफ़ीस का दिल दहलाने वाला बयान था, “पुलिस ने मेरे बेटे के सीने में गोली मारी है। वह बेगुनाह था, कपड़े लेने के लिए दुकान जा रहा था। मेरी जान मांगने वाली पुलिस है।”

आगे चलकर, जब नफ़ीस से यह पूछा गया कि वे किसे जिम्मेदार मानते हैं, तो उन्होंने कड़ा जवाब दिया: “हम किसे जिम्मेदार बताएं? सबको दिख रहा है। हमें कोई नहीं बचाता, सिर्फ अल्लाह है। मेरा बेटा जवान था, शादी की तैयारी कर रहा था, और उसे हमसे छीन लिया गया।”

मोहम्मद क़ैफ़ की माँ का दुख:

तुर्तीपुरा मोहल्ले में 17 वर्षीय मोहम्मद क़ैफ़ के घर में मातम का माहौल है। उनके पिता लोगों को समझा रहे हैं, “मेरा बेटा अब लौट कर नहीं आएगा। हमें सब्र करना होगा।” क़ैफ़ की माँ अनीसा का दर्द असहनीय था। वे कहती हैं, “मेरा बेटा फेरी लगाता था, बिसातखाना (कॉस्मेटिक सामान) बेचता था। हमें तो शाम तक ये भी नहीं पता चला कि वह मारा गया है।”

अनीसा ने आरोप लगाया कि पुलिस ने दोपहर के वक्त उनके घर का दरवाजा तोड़कर उनके बड़े बेटे को खींच लिया था। क़ैफ़ के मामा मोहम्मद वसीम ने कहा, “पुलिस ने एक बेटे को गोली मारी और दूसरे को खींच लिया। हमारा गुनाह बस इतना है कि हम मुसलमान हैं, हमें इंसान नहीं समझा जा रहा।”

रोमान ख़ान की कहानी:

संभल के हयातनगर इलाक़े में रोमान ख़ान की शांतिपूर्वक दफ़नाई गई लाश पर उनकी बेटी की आवाज़ें भी लोगों को हिला देती हैं। रोमान ख़ान की मौत की जानकारी मुरादाबाद के कमिश्नर ने दी थी, जिसमें उनकी मौत को पुलिस की गोली से जोड़ा गया था। लेकिन परिवार ने इसके बारे में कोई बयान नहीं दिया। एक रिश्तेदार ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “हमने सब्र किया और बिना पोस्टमार्टम के उन्हें दफ़नाया। हम मुक़दमा नहीं करेंगे, और ना ही कोई सवाल पूछेंगे।”

इलाके में डर का माहौल था, जिससे लोग मरे हुए व्यक्ति के बारे में बात करने से कतराते थे। एक स्थानीय कांग्रेस नेता ने भी इस डर को महसूस करते हुए कहा, “लोगों में इतना खौ़फ है कि वे यह भी नहीं बता रहे कि मरने वाले की मौत कैसे हुई।”

यह सभी घटनाएँ उन परिवारों के लिए कड़ी चुनौती बन गई हैं, जो अपने प्रियजनों को खो चुके हैं, और उनके पास न्याय की उम्मीद में सिर्फ खामोशी और सब्र ही बचा है।

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