नई दिल्ली: संभल में हाल ही में हुए हिंसक घटनाक्रम ने अब सियासी मोड़ ले लिया है और यह मामला संसद में भी गूंज उठा। समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख अखिलेश यादव ने मंगलवार को संसद के शीतकालीन सत्र में इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया और उत्तर प्रदेश के संभल जिले में हुई हिंसा को लेकर सरकार पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि यह लड़ाई सिर्फ संभल की नहीं, बल्कि दिल्ली और लखनऊ की भी है।
अखिलेश यादव ने संसद में बयान देते हुए कहा कि संभल के मुस्लिम समुदाय ने जामा मस्जिद के सर्वे को लेकर धैर्य बनाए रखा, लेकिन अधिकारियों ने अपनी प्राइवेट हथियारों से गोलियां चलाईं और पुलिस अधिकारियों ने गाली-गलौच करते हुए लाठीचार्ज किया। उन्होंने मांग की कि संभल के डीएम और एसपी के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया जाए, ताकि इस प्रकार की घटनाओं को रोका जा सके।
अखिलेश ने आगे कहा, “संभल जो भाईचारे और सौहार्द के लिए जाना जाता था, वहां अचानक यह घटना एक सोची-समझी साजिश के तहत घटी। यह भाईचारे को नष्ट करने की कोशिश की जा रही है, और इसमें बीजेपी और उनके समर्थक शामिल हैं।”
उन्होंने आरोप लगाया कि 19 नवंबर 2024 को जामा मस्जिद के खिलाफ एक याचिका दायर की गई थी, जिसके बाद कोर्ट ने बिना दूसरे पक्ष को सुने ही सर्वे के आदेश दे दिए। इसके बावजूद, डीएम और एसपी ने बिना आदेश का पालन किए पुलिस बल के साथ मस्जिद पहुंचकर सर्वे शुरू कर दिया। अखिलेश ने कहा, “जब मस्जिद कमेटी ने सहयोग किया और शांति बनाए रखी, तब भी 22 नवंबर को जुमे की नमाज के दौरान बैरिकेड्स लगाए गए। हालांकि, लोगों ने शांति से नमाज पढ़ी, लेकिन बाद में पुलिस ने वहां लाठीचार्ज किया और जनता को घायल कर दिया।”
अखिलेश ने बताया कि जब पत्थरबाजी हुई, तो पुलिस और अधिकारियों ने सरकारी और निजी हथियारों से गोलियां चलाईं, जिससे पांच मासूमों की मौत हो गई। उन्होंने कहा कि पुलिस प्रशासन और याचिका दायर करने वाले लोग संभल का माहौल बिगाड़ने के लिए जिम्मेदार हैं और इन पर हत्या का मामला दर्ज किया जाना चाहिए।
सपा प्रमुख ने शायराना अंदाज में कहा, “जो कभी दिल्ली पहुंचते थे जिस राह से, वही लखनऊ वाले उसी रास्ते पहुंचना चाहते हैं,” यह कहते हुए उन्होंने इस पूरे घटनाक्रम को दिल्ली और लखनऊ के बीच की राजनीतिक जंग के रूप में पेश किया।
इस बयान से यह स्पष्ट हो गया कि अखिलेश यादव इस हिंसा को केवल एक स्थानीय घटना नहीं, बल्कि एक बड़े राजनीतिक संघर्ष का हिस्सा मानते हैं, जो देश के सांप्रदायिक ताने-बाने को प्रभावित कर सकता है। उनके आरोपों ने मामले को और भी राजनीतिक रूप से गर्मा दिया है और उत्तर प्रदेश की राजनीति में उथल-पुथल मचा दी है।