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उत्तराखंड में बढ़ता इस्लामोफोबिया : मुस्लिम छात्रों को नमाज की अनुमति देने पर शिक्षक की बर्खास्तगी

उत्तराखंड, 25 दिसंबर 2024: उत्तराखंड में इस्लामोफोबिया की समस्या एक बार फिर उभर कर सामने आई है। मुस्लिम छात्रों को स्कूल में नमाज अदा करने के लिए कुछ समय की छुट्टी देने पर हिंदू कट्टरपंथी संगठनों ने हंगामा खड़ा कर दिया, जिसके बाद स्कूल प्रशासन ने उस शिक्षक को निलंबित कर दिया। यह घटना खटारी सरकारी इंटर कॉलेज की है, जहां एक शिक्षक ने मुस्लिम छात्रों को शुक्रवार को नमाज के लिए दो घंटे की छुट्टी दी थी।

शुक्रवार को जब स्कूल के प्रभारी प्रधानाचार्य, तिलक चंद्र जोशी ने मुस्लिम छात्रों को नमाज अदा करने के लिए दो घंटे की छुट्टी दी, तो बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद (VHP) के कार्यकर्ताओं ने स्कूल में पहुंच कर इसका विरोध किया। उनका आरोप था कि यह स्कूल के नियमों का उल्लंघन है और एक खास समुदाय का समर्थन किया जा रहा है। इस विरोध के बाद एक वीडियो भी वायरल हुआ जिसमें प्रधानाचार्य ने स्पष्ट किया कि मुस्लिम बच्चे आम तौर पर शुक्रवार को स्कूल नहीं आते हैं, और इसलिए उनकी हाजिरी में सुधार के लिए यह छुट्टी दी गई थी ताकि वे नमाज के बाद वापस स्कूल लौट सकें।

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कट्टरपंथी संगठनों का विरोध

विश्व हिंदू परिषद (VHP) और बजरंग दल के नेताओं ने इस कदम को खुला पक्षपाती व्यवहार करार दिया। VHP नेता अनिल शर्मा ने दावा किया कि यह शैक्षिक निष्पक्षता का उल्लंघन है और शिक्षकों को ऐसा करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।  

शिक्षक की निलंबन और प्रशासन की प्रतिक्रिया

उत्तराखंड के शिक्षा विभाग ने इस मामले में कार्रवाई करते हुए शिक्षक तिलक चंद्र जोशी को निलंबित कर दिया। विभाग का कहना था कि उन्होंने 2002 के कर्मचारियों के आचार संहिता नियमों का उल्लंघन किया है। दूसरी ओर, सेकेंडरी शिक्षा के अतिरिक्त निदेशक, डॉ. मकल कुमार सती ने पुष्टि की कि जोशी की निलंबन जांच प्रक्रिया पूरी होने तक जारी रहेगी।

स्थानीय समुदाय और मुसलमानों की प्रतिक्रिया

शिक्षक के निलंबन के बाद रामनगर में मुस्लिम समुदाय ने इसकी कड़ी आलोचना की है। स्थानीय नेता फैयाज हुसैन ने कहा, “संविधान हर नागरिक को अपनी धार्मिक आस्थाओं का पालन करने का अधिकार देता है। नमाज के लिए छुट्टी देना किसी भी प्रकार का उल्लंघन नहीं है, बल्कि यह भारत के विविधता को स्वीकारने का प्रतीक है।” प्रभावित छात्रों के माता-पिता ने भी इस कदम पर गुस्से का इज़हार किया। एक अभिभावक ने कहा, “हमारे बच्चों को उनके धर्म का पालन करने की सजा दी जा रही है।”

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कानूनी विशेषज्ञों और पत्रकारों की प्रतिक्रिया

कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि छात्रों को नमाज के लिए समय देना संविधानिक अधिकार है। वकील सलमान क़रीशी ने कहा, “यह छात्रों के मूल अधिकारों का उल्लंघन नहीं है और यह समावेशिता को बढ़ावा देने वाला कदम है।” सामाजिक कार्यकर्ता, खालिद अहमद ने इसे बढ़ती हुई असहिष्णुता का उदाहरण बताया, जो भारत के सेकुलर ताने-बाने को खतरे में डाल रहा है।

यह मामला उत्तराखंड में बढ़ते इस्लामोफोबिया और धार्मिक असहिष्णुता की ओर इशारा करता है। कट्टरपंथी संगठनों के दबाव में आकर शिक्षक को निलंबित किया जाना लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ प्रतीत होता है। अब यह देखना होगा कि प्रशासन और न्यायपालिका इस मामले में क्या कदम उठाते हैं।

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