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GAZA Updates एक ही खानदान के 120 जनाज़े । पूरे खानदान की मिट्टी एक साथ। मलबे से निकले शहीद, अब मिली आख़िरी मंज़िल

गाज़ा । इस्लामी उम्मत के दिल को दहला देने वाली एक और ख़बर गाज़ा से आई है।
फ़िलिस्तीनी शुहेइबर खानदान के 120 से ज़्यादा अफ़राद — जिनमें औरतें, बच्चे और बुज़ुर्ग शामिल थे — को शुक्रवार को अस्थायी कब्र से निकालकर दोबारा दफ़न किया गया।
ये सभी पिछले साल इज़राइल की बमबारी में शहीद हुए थे।

💔 “कब्र भी अस्थायी बन गई…”

गाज़ा शहर के दक्षिणी इलाके में जब इज़राइली जहाज़ों ने बम बरसाए,
तो शुहेइबर परिवार के दर्जनों सदस्य एक ही घर में पनाह लिए हुए थे।
17 नवंबर 2023 की उस रात, 95 से ज़्यादा लोग वहीं शहीद हो गए
मलबा हटाना भी मुमकिन नहीं था, इसलिए रिश्तेदारों ने उन्हें खेत की ज़मीन में दफ़न कर दिया —
क्योंकि कब्रिस्तान तक पहुँचना मौत को बुलाने जैसा था।

ज़िंदा बची एक औरत, नाहिद शुहेइबर, ने रोते हुए कहा —

“हमें अपने शहीदों को खेत में दफ़न करना पड़ा, ताकि कम से कम उन पर मिट्टी डाल सकें… कब्रिस्तान तक जाना मुमकिन नहीं था।”

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🕊️ दुआओं के साए में पुनः दफ़न

कई महीनों बाद, हालात कुछ काबू में आने पर फ़िलिस्तीनी नागरिक सुरक्षा बलों ने
रिश्तेदारों और स्थानीय लोगों की मदद से
उन शहीदों के जिस्मों को शेख़ शाबान कब्रिस्तान में दोबारा दफ़न किया।

जनाज़े के वक़्त सैकड़ों लोग जमा हुए।
हर आंख नम थी, हर जुबान पर “इनालिल्लाह…” था।
यह सिर्फ़ एक खानदान का जनाज़ा नहीं, बल्कि पूरे गाज़ा की अवाम की सिसकती हुई तहरीर थी।

⚰️ गाज़ा में अब हर ज़मीन एक कब्रिस्तान बन चुकी है

गाज़ा नागरिक सुरक्षा महानिदेशक राएद अल-दहशान ने कहा —

“हमने फोरेंसिक टीमों और वॉलंटियर्स के साथ मिलकर 120 से ज़्यादा शहीदों को
अस्थायी कब्र से निकालकर सम्मानजनक तौर पर दफ़नाया।”

उन्होंने बताया कि लगातार बमबारी, नाकाबंदी और सड़कें तबाह होने की वजह से
लोगों ने अपने मरहूमीन को अस्पतालों, स्कूलों और खाली ज़मीनों में ही दफ़न किया।

🚫 नाकाबंदी और जुल्म की हदें

इज़राइल की पाबंदियों की वजह से
भारी मशीनरी, रेस्क्यू उपकरण और मेडिकल गियर गाज़ा में दाख़िल नहीं हो सकते।
मजबूर होकर लोग नंगे हाथों से मलबा खोदकर अपने बच्चों की लाशें निकाल रहे हैं।

📊 दो साल की तबाही का हिसाब

अक्टूबर 2023 से अब तक —

  • 68,000 से ज़्यादा फ़िलिस्तीनी शहीद,
  • 1,70,000 घायल,
  • और करीब 9,500 लापता हैं।
    इनमें बड़ी तादाद औरतों और मासूम बच्चों की है।

🕯️ इंसानियत का आख़िरी इम्तिहान

शुहेइबर परिवार का दोबारा दफ़न सिर्फ़ एक रस्म नहीं —
ये गाज़ा के उन हज़ारों लोगों का सबक़ है जो मौत और मलबे के बीच भी अपने शहीदों को इज़्ज़त से दफ़नाना नहीं भूले।

“ज़ुल्म की हर ईंट के नीचे हमारी दुआ दबी है,
और एक दिन वही दुआ आसमान तक पहुँचेगी।” — एक गाज़ावासी बुज़ुर्ग

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