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उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने का मामला अब एक बड़ा विवाद बन गया है। इस कानून के खिलाफ मुस्लिम संगठनों और अन्य वर्गों ने अपनी आवाज़ उठाई है। इनमें सबसे बड़ा संगठन आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) है, जिसने इस कदम की विरोध किया है और इसे संविधान के खिलाफ बताया है।
उत्तराखंड सरकार ने हाल ही में समान नागरिक संहिता लागू करने की घोषणा की थी और कैबिनेट से इसके लागू होने की मंजूरी भी ले ली थी। इसके बाद आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने घोषणा की कि वह इस कानून के खिलाफ संविधान के दायरे में कदम उठाएंगे। बोर्ड का कहना है कि समान नागरिक संहिता मुस्लिमों के धार्मिक अधिकारों और शरिया के नियमों के खिलाफ है।
हाल ही में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस कानून को नैनीताल हाई कोर्ट में चुनौती दी है। बोर्ड के प्रवक्ता डॉ. सय्यद क़ासिम रुसूल इलियास ने बताया कि बोर्ड की तरफ से दायर की गई याचिका में कहा गया है कि उत्तराखंड का UCC कानून न केवल शरिया के खिलाफ है, बल्कि यह देश के संविधान की कई धाराओं से भी टकराता है। उन्होंने यह भी कहा कि यह कानून 1937 के “शरीयत एप्लिकेशन एक्ट” के भी खिलाफ है।
नैनीताल हाई कोर्ट ने इस याचिका को स्वीकार करते हुए इसे 1 अप्रैल 2025 को सुनवाई के लिए रखा है। याचिका में यह भी कहा गया है कि UCC कानून मौलिक अधिकारों के खिलाफ है और यह व्यक्तिगत अधिकारों का उल्लंघन करता है।
याद रहे कि 27 जनवरी 2025 को उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता का नोटिफिकेशन जारी होने के बाद मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इसे राज्य हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। इस याचिका में उत्तराखंड की 10 महत्वपूर्ण हस्तियां भी शामिल थीं, जो इस कानून से सीधे प्रभावित हो रही थीं। इनमें से कुछ लोग मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से भी जुड़े थे।
याचिका की तैयारी एडवोकेट नबीला जमील ने की थी, जबकि सीनियर एडवोकेट एम. आर. शमशाद ने इसमें सुधार किए। इस याचिका में UCC कानून को विभिन्न आधारों पर चुनौती दी गई है। बोर्ड की ओर से सीनियर एडवोकेट एम. आर. शमशाद ने अदालत में ऑनलाइन पेश होकर इस केस की प्रतिनिधित्व की, जबकि एडवोकेट इमरान अली और एडवोकेट मुहम्मद यूसुफ ने उनकी मदद की।
इस मामले की सुनवाई 1 अप्रैल 2025 को होगी, जिसके दौरान उत्तराखंड सरकार को इस कानून के बारे में जवाब देने के लिए समय दिया गया है।
ध्यान दें: समान नागरिक संहिता के लागू होने का मामला केवल मुसलमानों के लिए नहीं, बल्कि देश के संविधान के तहत सभी नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण है। इस मामले की अगली सुनवाई पर पूरे देश की नजरें होंगी।