डॉ आयशा की भोपाल में दर्दनाक मौत: एक बेटी की मौत, एक मां के हाथों में शादी के कार्ड, और एक सिस्टम की नाकामी

बाप जबलपुर के इंडियन बैंक में काम कर रहा था, भोपाल बेटी की शादी का कार्ड बांटने निकली थी.. और बेटी को बस ने रौंद दिया और उसकी दर्दनाक मौत हो गई.
भोपाल के बाणगंगा चौराहे पर सोमवार को जो कुछ हुआ, उसने न सिर्फ एक परिवार को तबाह कर दिया, बल्कि पूरे शहर को झकझोर कर रख दिया। एक स्कूल बस, जिसकी फिटनेस 5 महीने पहले ही खत्म हो चुकी थी, ब्रेक फेल होने के बाद बेकाबू हो गई और 8 गाड़ियों को कुचलते हुए एक जिंदगी छीन ले गई—एक ऐसी जिंदगी जो अभी-अभी अपने पंख फैलाने लगी थी।
जिस बेटी की शादी की तैयारियाँ चल रही थीं, उसकी मौत की खबर कार्ड बाँट रही माँ को मिली
मुल्ला कॉलोनी की रहने वाली डॉ. आयशा खान, जो जेपी हॉस्पिटल में इंटर्नशिप कर रही थीं, रोज़ की तरह सोमवार दोपहर भी स्कूटी से घर लौट रही थीं। लेकिन उन्हें क्या पता था कि यह सफर उनका आखिरी होगा।
रेड सिग्नल पर रुकी आयशा की स्कूटी को पीछे से तेज़ रफ्तार स्कूल बस ने इतनी जोर से टक्कर मारी कि आयशा स्कूटी समेत हवा में उछलीं और बस के अगले हिस्से में फँस गईं। लगभग 50 फीट तक घिसटने के बाद, उनका शरीर बस के पहिए के नीचे आ गया। मौके पर ही मौत हो गई।
उसी वक्त, उनकी मां मोहल्ले में शादी के कार्ड बाँट रही थीं। फोन की घंटी बजी। उधर से सिर्फ दो शब्द आए—“आयशा नहीं रही।” एक मां का संसार वहीं थम गया।

नहीं थी फिटनेस, नहीं था बीमा, फिर भी दौड़ रही थी बस
जाँच में सामने आया कि स्कूल बस की फिटनेस नवंबर 2024 में ही एक्सपायर हो चुकी थी। बीमा भी नहीं था। सवाल उठता है: ऐसी लापरवाही की इजाज़त किसने दी? इस लापरवाही की कीमत एक परिवार ने अपनी बेटी की जान देकर चुकाई है।
भोपाल आरटीओ जितेंद्र शर्मा को तत्काल प्रभाव से सस्पेंड कर दिया गया है। संभागायुक्त संदीप सिंह ने स्पष्ट किया कि प्रथम दृष्टया यह प्रशासन की घोर लापरवाही है।
ड्राइवर चिल्लाता रहा “हटो-हटो”, लेकिन रफ्तार किसी को नहीं बख्शती
प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि हादसे के समय सिग्नल पर करीब 10-12 वाहन खड़े थे। अचानक तेज़ रफ्तार में आई बस के ड्राइवर की चीख—“हटो-हटो”—हवा में गूंजती रही, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। बस एक के बाद एक वाहनों को कुचलती गई।
रईस और फिरोज—मजदूर जिनकी ज़िंदगी अब ICU में फँसी है
हादसे में घायल हुए रईस और फिरोज, दोनों ही दिहाड़ी मज़दूर हैं। एक ही बाइक पर थे। हादसे के बाद हमीदिया अस्पताल से उन्हें प्राइवेट अस्पताल रेफर किया गया है। परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रहा है और इलाज के लिए चंदा माँग रहा है।
बस से टकराई कार, कार से दूसरी कार, फिर बाइक—एक के बाद एक मौत की चेन
बस से टकराई पहली कार आगे खड़ी दूसरी कार से भिड़ी। दूसरी कार के सामने एक बाइक थी, जिसे भी जोरदार धक्का लगा। हादसे की भयावहता ने यह साफ कर दिया कि एक बेकाबू वाहन किस तरह कई जिंदगियों को एक पल में रौंद सकता है।
क्या ये सिर्फ हादसा था, या सिस्टम की हत्या?
यह सिर्फ एक “सड़क दुर्घटना” नहीं थी। यह सिस्टम की हत्या थी। अनफिट बसें, गैर-जिम्मेदार आरटीओ, और लापरवाह प्राइवेट स्कूल—इन सबकी मिलीभगत का खामियाजा एक बेटी ने जान देकर और एक मां ने सपनों के उजड़ने से चुकाया।
हम सवाल पूछते हैं
- अनफिट बस सड़कों पर कैसे दौड़ रही थी?
- आरटीओ की निगरानी कहाँ थी?
- स्कूल प्रशासन की जवाबदेही तय क्यों नहीं हुई?
- मजदूरों का इलाज कौन करवाएगा?
हमारी मांग है कि इस हादसे को एक फाइल में बंद न किया जाए। यह एक चेतावनी है—जागो, वरना अगली बार ये हादसा आपके दरवाजे पर होगा।