18 साल बाद इंसाफ: ‘सिमी’ से जुड़े होने के आरोप में गिरफ्तार 8 मुस्लिम युवक बरी

BAZ News Network: भारतीय न्याय व्यवस्था ने एक बार फिर यह साबित किया कि देर भले हो, लेकिन सच के आगे झूठ की दीवारें ढह जाती हैं। प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) से जुड़े होने के आरोप में गिरफ्तार 8 मुस्लिम युवकों को 18 साल बाद नागपुर की अदालत ने सभी आरोपों से बरी कर दिया है।
न्यायिक मजिस्ट्रेट ए.के. बंकर ने अपने आदेश में साफ कहा कि अभियोजन यह साबित करने में पूरी तरह नाकाम रहा कि इन युवकों ने किसी भी बैठक, संचार, प्रोपेगंडा या किसी प्रकार की आर्थिक मदद में भाग लिया था। अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि केवल कुछ साहित्य या दस्तावेज़ के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता, जब तक कि उसके पीछे सक्रिय इरादा और भागीदारी के ठोस सबूत मौजूद न हों।
अदालत की सख़्त टिप्पणी
अदालत ने कहा:
“सिर्फ़ ऐसा साहित्य रखने का आरोप, जो किसी कथित गैरक़ानूनी संगठन से जुड़ा हो, क़ानून की उस कसौटी पर खरा नहीं उतरता, जो सक्रिय भागीदारी साबित करने के लिए ज़रूरी है।”
पुलिस का आरोप और अदालत की पड़ताल
पुलिस ने दावा किया था कि 2006 में गुप्त सूचना के आधार पर इन युवकों को सिमी से जोड़कर गिरफ्तार किया गया था। आरोप लगाया गया कि उनके घरों से उत्तेजक सामग्री बरामद हुई थी। लेकिन अदालत में ऐसी कोई रिकवरी साबित नहीं हो पाई।
पुलिस के दावे का समर्थन करने के लिए कोई स्वतंत्र गवाह भी सामने नहीं आया। यहां तक कि जिन गवाहों को पुलिस ने पेश किया, उन्होंने भी अभियोजन के आरोपों की पुष्टि नहीं की।
बरी किए गए युवकों के नाम
अदालत ने जिन 8 मुस्लिम युवकों को यूएपीए की धारा 10 और 13 समेत तमाम आरोपों से बरी किया, उनके नाम हैं:
- शकील वारिसी
- शाकिर अहमद नासिर अहमद
- मोहम्मद रेहान अता उल्लाह खान
- ज़िया-उर-रहमान महबूब खान
- वकार बेग यूसुफ बेग
- इम्तियाज़ अहमद निसार अहमद
- मोहम्मद अबरार आरिफ मोहम्मद क़ासिम
- शेख़ अहमद शेख़
News Source (Zee News) : SIMI कनेक्शन निकला झूठा; 18 साल बाद नागपुर कोर्ट ने 8 मुस्लिम नौजवनों को किया बरी
ज़िन्दगी का खोया हुआ हिस्सा
ये सभी युवक उस समय महज़ 30 साल के आसपास की उम्र के थे, जब उन्हें गिरफ्तार किया गया। आज 18 साल बाद, जब वे बरी हुए, तो उनकी जवानी का सबसे सुनहरा दौर अदालतों और जेलों में गुज़र चुका है। यह केवल कुछ लोगों का दर्द नहीं, बल्कि एक पूरे समाज के लिए गहरी चोट है कि बेगुनाहों को सालों तक झूठे मामलों में फँसा कर रखा गया।
पहले भी हुए हैं ऐसे फ़ैसले
इससे पहले भी 2021 में सूरत की एक अदालत ने सिमी से जुड़े होने के आरोप में गिरफ्तार 122 लोगों को बरी किया था। उन पर 2001 की कथित बैठक में शामिल होने का आरोप था, लेकिन अदालत ने सबूतों के अभाव में उन्हें रिहा कर दिया था।
👉 बाज़ मीडिया का सवाल:
आख़िर कितनी और ज़िंदगियाँ झूठे आरोपों की भेंट चढ़ेंगी? जब अदालतें बेगुनाही साबित कर देती हैं, तब उन खोए हुए सालों का हिसाब कौन देगा?