मासूम फ़िलिस्तीनियों की कुर्बानी रंग लाई: ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और पुर्तगाल ने थामा फ़िलिस्तीन का हाथ

21 सितम्बर 2025, Baz News Network। फ़िलिस्तीन की सरज़मीं पर बहते ख़ून और बेक़सूरों की चीख़ों के बीच अब एक नई उम्मीद की किरण नज़र आई है। ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और पुर्तगाल ने आज फ़िलिस्तीन को एक आजाद मुल्क की मान्यता दे दी है। वहीं फ्रांस अगले महीने फलस्तीन को मान्यता देने का ऐलान कर चुका है। ये वो क़दम है जिसने पूरी दुनिया को सोचने पर मजबूर कर दिया है और इज़राइल की नीतियों के ख़िलाफ़ बड़ा संदेश दिया है। इस ऐतिहासिक कदम के बाद अब जानकार उम्मीद जता रहे हैं की अगले महीने होने वाली संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेम्बली की बैठक में फलस्तीन को आजाद देश तस्लीम कर लिया जाएगा.
दशकों से जारी ज़ुल्म
फ़िलिस्तीनी क़ौम पिछले 75 साल से अपने वजूद और अपने घरों के लिए लड़ रही है।
- ग़ाज़ा की ग़लियों में मासूम बच्चों के जनाज़े उठते हैं।
- औरतें अपने ख़ाविंद और बेटों को खोकर तन्हा हो रही हैं।
- बुज़ुर्ग अपने घरबार छोड़ने पर मजबूर हैं।
आज ग़ाज़ा दुनिया का सबसे बड़ा इंसानी तर्ज़-ए-हाल (humanitarian crisis) झेल रहा है। खाने को रोटी नहीं, पीने को पानी नहीं, दवाइयाँ ख़त्म हो चुकी हैं और अस्पताल मलबे में तब्दील हो रहे हैं।
पश्चिमी दुनिया का बदला हुआ रुख़
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री किअर स्टार्मर ने साफ़ कहा:
“फ़िलिस्तीन और इज़राइल दोनों की शांति के लिए, यूनाइटेड किंगडम अब फ़िलिस्तीन को एक आज़ाद रियासत मानता है।”
कनाडा के प्रधानमंत्रीमार्क कार्नी ने लिखा:
“हम फ़िलिस्तीन को मान्यता देते हैं और दोनों क़ौमों के लिए पुरअमन भविष्य बनाने में साझेदार बनना चाहते हैं।”
पुर्तगाल के President मार्सेलो रेबेलो डे सौसा ने भी न्यूयॉर्क से ऐलान किया:
“हम दो रियासतों की उम्मीद को ज़िंदा रखने के लिए ये क़दम उठा रहे हैं।”
ऑस्ट्रेलिया ने भी यही पैग़ाम दिया कि ये सिर्फ़ एक सिम्बॉलिक फ़ैसला नहीं, बल्कि दुनिया को ज़बरदस्त सियासी और इंसानी संदेश है।
इज़राइल और अमरीका की नाराज़गी
इस ऐलान से इज़राइल और अमरीका में बेचैनी बढ़ गई है। इज़राइल के वज़ीरे-आज़म बेन्यामिन नेतन्याहू ने कहा कि फ़िलिस्तीन को मान्यता देना “दहशतगर्दी का इनाम” है। लेकिन हक़ीक़त ये है कि आज दुनिया के 140 से ज़्यादा मुल्क पहले ही फ़िलिस्तीन को मान चुके हैं। अब बड़े पश्चिमी मुल्क भी इस सफ़ में शामिल हो रहे हैं।
मासूम फ़िलिस्तीनी – असल शिकार
हमास और इज़राइल की जंग में असल शिकार हमेशा से बेगुनाह अवाम रही है।
- यूएन के मुताबक, अब तक 65,000 से ज़्यादा फ़िलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं।
- इनमें बड़ी तादाद बच्चों और औरतों की है।
- ग़ाज़ा की ज़मीन पर हर रोज़ मलबा बढ़ रहा है और इंसानी ज़िंदगी कम हो रही है।
हिंदुस्तान से मोहब्बत और हमदर्दी
भारत की गलियों और मस्जिदों में जब लोग दुआएँ करते हैं, तो फ़िलिस्तीन का ज़िक्र लाज़मी होता है। हिंदुस्तानी मुसलमानों के दिलों में अल-अक़्सा मस्जिद और फ़िलिस्तीन की मिट्टी के लिए एक जज़्बाती रिश्ता है। यहाँ के लोग जब ग़ाज़ा की तस्वीरें देखते हैं, तो उनके आँसू रुकते नहीं।
ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और पुर्तगाल का ये फ़ैसला फ़िलिस्तीन की जंग-ए-आज़ादी में नया मोड़ साबित हो सकता है। ये सिर्फ़ सियासत नहीं, बल्कि इंसाफ़ और इंसानियत का मामला है।
फ़िलिस्तीन की क़ौम का ख़ून राईगां नहीं जाएगा। दुनिया भर से उठती आवाज़ें इस बात की गवाही हैं कि अब उनकी आज़ादी की सुबह दूर नहीं।