गाजी बाग इज्तिमा ए आम में पैग़ाम – अल्लाह की मोहब्बत और सुन्नत की पाबंदी से बदलेगा हर मुसलमान का हाल

जबलपुर। “हमारी हर मुसीबत का हल अल्लाह की मोहब्बत है. हमारे हर मसाईब का हल कुरआन और सुन्नत की तालीम है. हमारी बिखरी हुई जिंदगी को संवारने की वाहिद कूंजी नमाज है. हमारा हुस्न किरदार और बेहतरीन अख्लाक आज के हालात को बदलने का जरिया है.“
.. यह पैगाम गाजी बाग मैदान में मुनक्किद किये गये, तब्लीग जमाअत के दो रोजा इज्तिमा ए आम में उलेमाए किराम ने दिये. इज्तिम में जबलपुर, कटनी और आसपास के जिलों से बड़ी तादाद में उलमा-ए-कराम, बुजुर्गान और आम लोग शरीक हुए। पूरे इज्तेमा के दौरान ईमान की इस्लाह, सुन्नत की पाबंदी, नेक अख़्लाक और दीन की दावत जैसे अहम उनवान पर बयानात पेश किए गए।

पहले दिन मुफ्ती सलमान क़ासमी साहब ने अपने बयान में सुन्नत की अहमियत पर रोशनी डालते हुए कहा कि हज़रत पैगंबर-ए-करीम ﷺ का हर अमल और हर कलाम हमारे लिए रहनुमाई है। उन्होंने उम्मत को सब्र व इस्तिक़ामत के साथ दीन पर डटे रहने और सामूहिक इस्लाह की ताकीद की।

दूसरे दिन नमाज़-ए-अस्र के बाद नागपुर से तशरीफ लाए हजरत इफ्तिखार साहब ने अख़्लाक-ए-हसना की अहमियत पर बयान दिया। उन्होंने कहा कि “एक अच्छा मुसलमान अपने अख़्लाक और व्यवहार से इस्लाम की खूबसूरती दुनिया के सामने पेश कर सकता है।” उन्होंने लोगों से अपील की कि दीन की दावत सिर्फ ज़बानी नहीं बल्कि अमली ज़िंदगी से भी पेश की जाए।
क़यामत की तैयारी और दीन की दावत..
सनिचर नमाज़-ए-मगरिब के बाद भोपाल से तफशरीफ लाए मौलाना ज़कारिया हफ़ीज़ साहब ने कहा कि दुनिया की हर चीज़ फानी है और असली कामयाबी सिर्फ क़यामत के दिन की तैयारी है। उन्होंने कुरआन और हदीस की रोशनी में तीन बातें वाज़ेह कीं:
- दीन की समझ (फिक्र): उन्होंने कहा कि अगर इंसान अपने वक्त का एक हिस्सा दीन सीखने में लगाए तो दुनिया और आख़िरत दोनों आसान हो सकते हैं।
- अमल की पाबंदी: सिर्फ जानकारी हासिल करना काफी नहीं, बल्कि नमाज़, रोज़ा और फराइज पर अमल करना असल ईमान की पहचान है।
- दावत और तबलीग: उन्होंने खासकर नौजवानों से कहा कि अपने गाँव-कस्बों में दीन का पैग़ाम पहुँचाना और इसके लिए वक्त निकालना सदक़ा-ए-जारिया है, जिसका सवाब क़यामत तक जारी रहेगा।

दीन की रौशनी की तशहीर…
इज्तेमा का समापन हजारों लोगों की मौजूदगी में हुई सामूहिक दुआ से हुआ। इस दुआ में मुल्क की सलामती, गुनाहों की माफी, उम्मत में भाईचारा, अमन, रहमत और तरक्की की दुआएं मांगी गईं।
इज्तेमा की समाप्ति के बाद विभिन्न जमातें आसपास के गांवों और कस्बों में रवाना हुईं ताकि दीन का पैग़ाम और रौशनी ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचाई जा सके। आखिर में सबने अल्लाह तआला से दुआ की कि वह इस इज्तेमा को कबूल करे और पूरी उम्मत को सीरत-ए-मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमाए।