
पटना, (BAZ News Network)। बिहार चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, सियासी पारा तेजी से चढ़ रहा है। जाति और धर्म आधारित समीकरणों पर सभी राजनीतिक दलों की निगाहें टिकी हैं। एनडीए हो या महागठबंधन — हर दल अपने उम्मीदवारों का चयन सामाजिक संतुलन को ध्यान में रखकर कर रहा है। लेकिन इस बार सबसे ज्यादा चर्चा में है मुस्लिम वोट बैंक, जो लगभग हर सीट पर निर्णायक असर डाल सकता है।
🔹 मुस्लिम-यादव समीकरण की जड़ें और नई चुनौती
लालू प्रसाद यादव ने कभी “मुस्लिम-यादव” (MY) समीकरण के बूते आरजेडी को बिहार की सत्ता तक पहुंचाया था। वर्षों तक यह फॉर्मूला कारगर साबित हुआ, लेकिन समय के साथ इस गठजोड़ में दरारें पड़ती रहीं। आरजेडी सत्ता में आती-जाती रही, जबकि एनडीए ने ज्यादातर वक्त सरकार की बागडोर अपने हाथ में रखी।
फिर आया साल 2020 — जब एक नया खिलाड़ी मैदान में उतरा: असदुद्दीन ओवैसी। उनकी पार्टी एआईएमआईएम ने सीमांचल में प्रवेश करते हुए पांच सीटें जीत लीं और पहली बार आरजेडी के “M-Y समीकरण” में सेंध लगा दी।

🔹 सीमांचल बना “मिनी असम” — मुस्लिम वोटर हैं निर्णायक
बिहार का सीमांचल इलाका (कटिहार, किशनगंज, अररिया, पूर्णिया) लंबे समय से मुस्लिम बहुल इलाका माना जाता है। यहां पर कई सीटों पर मुस्लिम आबादी 40% से भी अधिक है। यही वजह है कि इस बार सभी दलों की निगाहें इस बेल्ट पर टिकी हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि एआईएमआईएम अगर यहां अच्छा प्रदर्शन करती है, तो वह सीधे तौर पर आरजेडी को नुकसान पहुंचाएगी। वहीं बीजेपी और जदयू के लिए यह अप्रत्यक्ष रूप से फायदेमंद हो सकता है।
🔹 2020 में दिखाया था “ट्रेलर”
2020 के विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम ने 20 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से 5 सीटें पार्टी ने जीतीं —
- अमौर – अख्तरुल ईमान
- बहादुरगंज – मोहम्मद अंजार नइमी
- बायसी – सैयद रुकनुद्दीन
- कोचाधामन – इजहार असर्फी
- जोकीहाट – शाहनवाज आलम
हालांकि 2022 में पार्टी को झटका लगा जब चार विधायक आरजेडी में शामिल हो गए। केवल अख्तरुल ईमान पार्टी में बने रहे, जो अब एआईएमआईएम के बिहार प्रदेश अध्यक्ष हैं।
🔹 “हम विकल्प बनकर आए हैं” — अख्तरुल ईमान
अख्तरुल ईमान का कहना है, “हम बिहार में जनता को नया विकल्प देना चाहते हैं। हमने महागठबंधन से सीटों के बंटवारे को लेकर बात की थी, लेकिन कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली। अब हम 100 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं।”
उनके अनुसार, एआईएमआईएम इस बार सीमांचल के साथ-साथ राज्य के अन्य हिस्सों में भी मुस्लिम और पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को अपने पक्ष में लाने की रणनीति पर काम कर रही है।
🔹 आंकड़े क्या कहते हैं
बिहार में मुसलमानों की आबादी 17.7% से ज्यादा है।
राज्य की 47 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं:
- 11 सीटों पर मुस्लिम आबादी 40% से ज्यादा
- 7 सीटों पर 30% से ज्यादा
- 29 सीटों पर 20-30% के बीच
इनमें से ज्यादातर सीटें सीमांचल, मिथिलांचल और मगध क्षेत्र में हैं।
🔹 ओवैसी का फोकस: सीमांचल से आगे
ओवैसी अब सिर्फ सीमांचल में सीमित नहीं रहना चाहते। उन्होंने हाल ही में कहा था कि उनकी पार्टी बिहार के अन्य जिलों में भी “मजबूत स्थानीय नेतृत्व” तैयार करेगी। उन्होंने यह भी संकेत दिया है कि पार्टी सामाजिक न्याय के मुद्दों पर भी फोकस करेगी, ताकि वह सिर्फ मुस्लिम वोटों तक सीमित न रहे।
🔹 राजनीतिक निहितार्थ
राजनीतिक जानकारों के अनुसार, अगर एआईएमआईएम 2020 जैसी परफॉर्मेंस दोहराने में सफल रहती है, तो यह आरजेडी-नेतृत्व वाले महागठबंधन के लिए बड़ा सिरदर्द साबित हो सकता है। वहीं एनडीए इस बंटवारे का फायदा उठाकर सीमांचल में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश करेगा।
बिहार का चुनावी रण इस बार भी जातीय और धार्मिक समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमता दिख रहा है — और इस बार मुस्लिम मतदाता उस “किंगमेकर” की भूमिका में हो सकते हैं, जो सरकार की दिशा तय करेगा।