
Bihar Election Result । सीवान/पटना। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने आज सीवान की सियासत में एक ऐसी हलचल पैदा कर दी, जिसे सिर्फ राजनीति की भाषा में नहीं समझा जा सकता। यह जीत भावनाओं की, यादों की, भरोसे की और एक परिवार से जुड़े उस जुड़ाव की है, जो सीवान की मिट्टी में रचा-बसा है।
आज रघुनाथपुर ने इतिहास नहीं—एक विरासत को पुनर्जीवित किया है।
राष्ट्रीय जनता दल के युवा प्रत्याशी ओसामा शहाब ने पहली बार चुनाव लड़ते हुए भव्य जीत दर्ज की।
लेकिन यह जीत सिर्फ उनका नाम दर्ज करने की बात नहीं—यह उस मोहम्मद शहाबुद्दीन की वापसी का एहसास है, जिन्हें आज भी लोग “साहब” कहकर याद करते हैं।

“साहब का बेटा जीता है”—सीवान की गलियों में गूँजती आवाज़ें
मतगणना केंद्र से लेकर गाँव की तंग गलियों तक, आज सीवान में एक ही बात सुनाई दी—
“साहब का बेटा जीत गया… आखिरकार साहब के नाम की लाज रह गई।”
बहुत से बुजुर्ग कार्यकर्ताओं की आँखें नम थीं।
कुछ युवाओं ने कहा—
“हमने आज अपनी मोहब्बत, अपनी याद और अपनी पहचान को वोट दिया है।”
यह सिर्फ एक चुनाव परिणाम नहीं—
यह उस मोहब्बत का इज़हार था जो लोग आज भी शहाबुद्दीन के लिए अपने दिल में सँजोकर रखते हैं।

9,157 वोटों की नहीं… भावनाओं की जीत
ओसामा शहाब ने 87,867 वोट हासिल किए।
लेकिन उनके समर्थकों के लिए यह सिर्फ नंबर नहीं—उनकी दुआओं की गिनती थी।
यह जीत इसलिए भी खास है क्योंकि
- पिछले कई चुनावों से परिवार लड़खड़ा रहा था
- विरोधियों को लगता था कि ‘साहब फैक्टर’ खत्म हो चुका है
- और बहुत से लोग मान बैठे थे कि अब राजनीति में उनकी कोई भूमिका नहीं बचेगी
लेकिन आज रघुनाथपुर ने दुनिया को जवाब दे दिया—
“साहब मरते नहीं, लोग उनके नाम को ज़िंदा रखते हैं।”

‘मौन रणनीति’—बेटे की शांति में पिता की गूँज
पूरे चुनाव में ओसामा ने एक शब्द तक नहीं बोला।
न कोई बयान,
न कोई विवाद,
न कोई प्रतिक्रिया।
लेकिन यह मौन किसी कमजोरी का नहीं—बल्कि एक गहरी सीख का नतीजा था।
शहाबुद्दीन के दौर को याद करने वाले कहते हैं—
“साहब बोलते कम थे, काम ज़्यादा करते थे।”
ओसामा का यही शांत स्वभाव लोगों को भीतर तक छू गया।
“बेटा वही बना है, जैसा बाप चाहता था”
मतगणना केंद्र के बाहर एक बुजुर्ग ने रोते हुए कहा—
“साहब चले गए, लेकिन उनकी दुआओं ने आज उनके बेटे को खड़ा कर दिया।”
एक युवा समर्थक बोला—
“हमने ओसामा को नहीं, अपने दिल की यादों को वोट दिया है।”
सीवान में आज सिर्फ चुनाव नहीं,
एक रिश्ते की जीत हुई है।
शहाबुद्दीन की याद और आज का दिन
ओसामा की जीत ने उन सब लोगों को फिर से भावुक कर दिया, जो शहाबुद्दीन को सिर्फ एक नेता नहीं,
बल्कि अपने हिस्से की पहचान मानते थे।
- साहब के घर के बाहर भीड़ जमा रही
- लोगों ने मिठाइयाँ बाँटी
- बच्चों ने कहा—
“अब फिर से हमारे इलाके की सुनवाई होगी।”
यह चुनावी नतीजा सीवान के लिए किसी त्यौहार से कम नहीं था।
आगे क्या?
राजनीतिक तौर पर यह जीत सिर्फ शुरुआत है।
लेकिन भावनाओं के स्तर पर—
यह वह अध्याय है जिसका इंतज़ार सीवान ने चार साल से किया था।
विशेषज्ञ मानते हैं कि:
- ओसामा अब RJD की युवा राजनीति का बड़ा चेहरा होंगे
- सीवान-सारण में “साहब फैक्टर” फिर से निर्णायक बनेगा
- यह जीत आने वाले लोकसभा चुनावों पर भी बड़ा असर डालेगी
“आज सिर्फ ओसामा नहीं जीते…
आज वो मोहब्बत जीत गई, जो साहब के नाम से सीवान की हवा में तैरती है।”**
रघुनाथपुर का यह फैसला आने वाले कई सालों तक सीवान की राजनीति का रुख तय करेगा।
और आज की तारीख याद रखी जाएगी—



