गाज़ा में शांति का झूठा दावा! यूरो-मेड ने इज़राइल के ‘वॉर क्राइम्स’ पर खोला बड़ा राज़ !

गाज़ा, मंगलवार (बाज़ मीडिया इंटरनेशनल डेस्क): जिनेवा स्थित यूरो-मेडिटेरेनियन ह्यूमन राइट्स मॉनिटर (Euro-Med Monitor) ने कहा है कि युद्धविराम समझौते के बावजूद इज़राइल गाज़ा पट्टी में नरसंहार और मानवाधिकार उल्लंघन जारी रखे हुए है।
संगठन के अनुसार, 10 अक्टूबर को लागू हुए युद्धविराम के बाद से अब तक हर दिन औसतन आठ फ़िलिस्तीनी नागरिक मारे जा रहे हैं, और बीस से ज़्यादा घायल हो रहे हैं — यह दर्शाता है कि “युद्धविराम” केवल काग़ज़ पर है, ज़मीनी हकीकत नहीं।
🔹 “युद्धविराम के बाद भी मौतें जारी” — अंतरराष्ट्रीय चुप्पी पर सवाल
यूरो-मेड मॉनिटर ने अपने बयान में कहा,
“इज़राइल अब भी 20 लाख से अधिक फ़िलिस्तीनियों पर जानलेवा परिस्थितियाँ थोप रहा है। भोजन, दवा, ईंधन, और मानवीय सहायता की रोक के कारण गाज़ा की जनता 25 महीने से चल रही आपदा से उबर नहीं पा रही।”
संस्था ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चुप्पी और संयुक्त राष्ट्र की विफलता पर गहरी चिंता जताई। बयान में कहा गया कि इज़राइल की ये कार्रवाइयाँ “जानबूझकर की जा रही सामूहिक सज़ा” हैं, जो अंतरराष्ट्रीय कानून और मानवता दोनों के खिलाफ़ हैं।
🔹 भुखमरी की नीति और मानवीय आपदा का नया दौर
रिपोर्ट के मुताबिक, इज़राइल ने गाज़ा पर भुखमरी की नीति लागू कर रखी है —
- भोजन, दवा और ईंधन की आपूर्ति रोक दी गई है,
- आवाजाही पर पाबंदी है,
- और बीमारों व घायलों को इलाज से वंचित किया जा रहा है।
मॉनिटर का कहना है कि यह नीतियाँ “मानवता के ख़िलाफ़ योजनाबद्ध अपराध” की श्रेणी में आती हैं।
गाज़ा स्थित सरकारी मीडिया कार्यालय ने बताया कि युद्धविराम समझौते में तय 600 सहायता ट्रकों में से प्रतिदिन सिर्फ़ 145 ट्रक ही गाज़ा में प्रवेश कर पा रहे हैं, यानी कुल वादे का मात्र 24 प्रतिशत।
इससे यह साफ़ होता है कि इज़राइल जानबूझकर राहत सामग्री की आपूर्ति बाधित कर रहा है।
🔹 स्वास्थ्य मंत्रालय: 69,000 से अधिक फ़िलिस्तीनी मारे गए
गाज़ा के स्वास्थ्य मंत्रालय ने पुष्टि की है कि युद्धविराम के बावजूद इज़राइली हमलों और गोलीबारी में अब तक 242 फ़िलिस्तीनी मारे गए हैं और 622 घायल हुए हैं।
पिछले साल 8 अक्टूबर 2023 से अब तक कुल 69,179 फ़िलिस्तीनी मारे गए हैं, जबकि 170,693 घायल हुए हैं — यह आँकड़ा दुनिया के किसी भी आधुनिक संघर्ष में सबसे भयावह माना जा रहा है।
मंत्रालय ने यह भी कहा कि सैकड़ों शव अब भी मलबे के नीचे या सड़कों पर पड़े हैं, क्योंकि इज़राइल बचाव दलों और मशीनों को प्रवेश की अनुमति नहीं दे रहा।
🔹 9,500 लोग लापता — इज़राइल ने रेस्क्यू उपकरणों पर रोक लगाई
गाज़ा के सरकारी मीडिया कार्यालय का कहना है कि लगभग 9,500 लोग अब भी लापता हैं, जिनमें बच्चे, महिलाएँ और बुज़ुर्ग शामिल हैं।
अधिकांश नष्ट हो चुकी इमारतों के नीचे दबे हैं, लेकिन इज़राइल ने भारी रेस्क्यू उपकरणों और क्रेनों की एंट्री रोक दी है।
विडंबना यह है कि वही उपकरण अपने सैनिकों के शव निकालने के लिए सीमित रूप में अनुमति दे दी गई है, जबकि गाज़ा के नागरिकों के शव अब भी धूल और मलबे में दबे हैं।
🔹 मानवाधिकार संगठनों की चेतावनी: “यह युद्धविराम नहीं, धीमी मौत का सिलसिला है”
मानवाधिकार संगठनों ने चेतावनी दी है कि यदि यह स्थिति जारी रही तो गाज़ा में “भूख और बीमारियों से होने वाली मौतें बमों से ज़्यादा होंगी।”
रिपोर्टों के अनुसार, गाज़ा के अधिकांश इलाक़ों में पीने का पानी दूषित हो चुका है, अस्पतालों में बिजली नहीं है, और सैकड़ों ऑपरेशन रोकने पड़े हैं।
संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों ने भी चेतावनी दी है कि अगर ईंधन और दवाओं की आपूर्ति तत्काल नहीं बढ़ाई गई, तो स्वास्थ्य तंत्र “पूरी तरह ढह” जाएगा।
🔹 अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया — लेकिन कार्रवाई शून्य
अब तक न तो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और न ही प्रमुख यूरोपीय देशों ने इज़राइल पर ठोस प्रतिबंध या दबाव डाला है।
अरब लीग और तुर्की ने “कड़ी निंदा” के बयान जारी किए हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं दिखी।
गाज़ा के नागरिकों का कहना है कि यह “धीमे ज़हर से मारने जैसा युद्ध” है — जहाँ बमों की जगह अब भूख, बीमारी और डर का इस्तेमाल किया जा रहा है।
🔹 संघर्ष का निष्कर्ष: मानवता का इम्तिहान
गाज़ा की यह स्थिति अब सिर्फ़ एक राजनीतिक संघर्ष नहीं, बल्कि मानवता का वैश्विक इम्तिहान बन चुकी है।
यूरो-मेडिटेरेनियन मॉनिटर की रिपोर्ट स्पष्ट कहती है —
“जब दुनिया खामोश होती है, तब अत्याचार और बढ़ता है।”
फिलहाल गाज़ा में जंग रुकने के नाम पर एक धीमा, मगर सुनियोजित नरसंहार जारी है — और दुनिया अब भी इसे सिर्फ़ ‘संघर्ष’ कहकर भूल रही है।



