Human Rights Watch: इज़राइली जेलों का काला सच! टॉर्चर, भूख और मौत! फ़िलिस्तीनी कैदियों पर इज़राइल की ‘सीक्रेट वार’ का चौंकाने वाला खुलासा!

BAZ News Network : इज़राइल के पब्लिक डिफेंडर ऑफिस द्वारा जारी की गई नई इंस्पेक्शन रिपोर्ट ने इज़राइली जेलों में बंद फ़िलिस्तीनी कैदियों की स्थिति को लेकर दुनिया को एक बार फिर झकझोर दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक, अक्टूबर 2023 में गाज़ा पर इज़राइली हमलों के बाद से जेलों में हालात पहले से कहीं अधिक भयावह हो गए हैं — कैदियों को बहुत ज़्यादा भूख, भारी भीड़, हिंसा, अपमान और साफ़-सफ़ाई की भयानक कमी का सामना करना पड़ रहा है।
यह रिपोर्ट 2023–2024 में रेमन, मेगिडो, अयालोन, शट्टा, एशेल और केट्ज़ियोट जैसे डिटेंशन सेंटरों में किए गए निरीक्षणों पर आधारित है, और इसे हारेत्ज़ सहित कई मीडिया संगठनों ने प्रकाशित किया है।
भूख से टूटते कैदी: ‘दिनों तक खाना नहीं मिलता’
रिपोर्ट के अनुसार, इज़राइल प्रिज़न सर्विस (IPS) ने कथित “सिक्योरिटी कैदियों”—जो मुख्य रूप से फ़िलिस्तीनी होते हैं—के लिए एक विशेष लेकिन बेहद कम मात्रा वाला मेन्यू लागू किया है।
इसके कारण:
- कैदियों को पर्याप्त भोजन नहीं मिल रहा
- कई दिनों तक भूखे रहना पड़ रहा
- खाने में अधपके चावल की थोड़ी-सी मात्रा, जिसे कई कैदियों में बांटा जाता है
- बड़े पैमाने पर कुपोषण, वज़न में तेज़ गिरावट और लगातार बेहोशी की शिकायतें
पब्लिक डिफेंडर की टीम ने निरीक्षण के दौरान भयानक कुपोषण, डिहाइड्रेशन और कैदियों की खतरनाक रूप से पतली हालत को दर्ज किया।
रिपोर्ट में कहा गया है—
“भूख इतनी तीव्र है कि कई कैदी खड़े नहीं रह पा रहे, जबकि कई अपने सेल में लगातार बेहोश हो रहे हैं।”
सिस्टमैटिक हिंसा: ‘बिना किसी वजह मारपीट, अपमान और क्रूरता’
रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि फ़िलिस्तीनी कैदियों को जेल स्टाफ द्वारा हिंसा का एक सुनियोजित और व्यापक पैटर्न झेलना पड़ रहा है।

कैदियों ने बताया कि उन्हें:
- विंग ट्रांसफर के दौरान
- सेल सर्चिंग के समय
- कोर्ट में पेशी पर जाते समय
- और बिना किसी कारण
नियमित रूप से पीटा जाता है।
पब्लिक डिफेंडर टीम ने यह स्पष्ट किया कि अधिकांश हिंसा किसी घटना या सुरक्षा खतरे की वजह से नहीं थी — यानी कि यह सिस्टमैटिक दमन है।
जेलों में खतरनाक भीड़भाड़: ‘कैपेसिटी 14,500 — कैदी 23,000’

अक्टूबर 2023 के बाद इज़राइली सेना द्वारा बड़े पैमाने पर गिरफ्तारी अभियान ने जेलों को ओवरफ़्लो कर दिया।
- सिर्फ़ दो महीनों में कैदियों की संख्या 3,000 बढ़ी
- 2024 के अंत तक कुल कैदी 23,000 तक पहुँच गए
- जबकि आधिकारिक क्षमता केवल 14,500 है
लगभग 90% फ़िलिस्तीनी कैदियों को 3 वर्ग मीटर से भी कम जगह मिल रही है, और हज़ारों के पास बिस्तर तक नहीं है।
उन्हें:
- 23 घंटे तक बंद अंधेरे सेल
- फ़र्श पर गद्दों पर सोना
- दमघोंटू, गंदी और हवा-रहित जगह
- टॉयलेट पेपर, साबुन, तौलिया की कमी
जैसी स्थितियों में रहना पड़ रहा है।
कई विंगों में स्केबीज़ महामारी की तरह फैल चुका है।
सीज़फ़ायर के बाद भी नहीं सुधरे हालात
फ़िलिस्तीनी कैदियों के अधिकार समूहों का कहना है कि गाज़ा सीज़फ़ायर के बाद भी जेलों की स्थिति जस की तस है।
अभी भी इज़राइली जेलों में:
- 10,800 से अधिक फ़िलिस्तीनी बंद हैं
- इनमें 450 बच्चे, 87 महिलाएँ शामिल
- और 3,629 कैदी बिना किसी चार्ज या ट्रायल के हिरासत में हैं
यह आंकड़े अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों का खुला उल्लंघन बताते हैं।
इज़राइली हिरासत में मौतों का बढ़ता आंकड़ा: ‘2023 के बाद सबसे खूनी दौर’
मानवाधिकार संगठनों ने गुरुवार को पुष्टि की कि गाज़ा नरसंहार के दौरान किडनैप किए गए तीन फ़िलिस्तीनी कैदियों की हाल ही में इज़राइली जेलों में टॉर्चर और मेडिकल नेग्लिजेंस के चलते मौत हो गई।
7 अक्टूबर 2023 के बाद से:
- कुल 84 फ़िलिस्तीनी हिरासत में मारे जा चुके हैं
- इनमें से 50 गाज़ा से हैं
- 1967 से अब तक इज़राइली कस्टडी में मरने वालों का आंकड़ा 321 तक पहुँच गया है
- कई कैदियों का रिकॉर्ड नहीं है, क्योंकि उन्हें ज़बरदस्ती गायब किया गया
संगठनों का आरोप है कि फ़िलिस्तीनी कैदी:
- टॉर्चर
- भूख
- मेडिकल लापरवाही
- भीड़भाड़
- यौन हिंसा
- और अमानवीय परिस्थितियों
की वजह से मर रहे हैं।
एक कैदी के बयान के अनुसार:
“गार्ड हमें नियमित रूप से पीटते हैं। न कोई सम्मान, न साफ़-सफ़ाई, न इंसान जैसा बर्ताव।”
निचोड़: दुनिया कब जागेगी?
इज़राइल के पब्लिक डिफेंडर की यह रिपोर्ट साफ़ करती है कि फ़िलिस्तीनी कैदी सिर्फ़ राजनीतिक संघर्ष का हिस्सा नहीं, बल्कि सिस्टमैटिक दमन, हिंसा और अमानवीय व्यवहार के शिकार हैं।
सीज़फ़ायर और अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद, हालात में कोई सुधार नहीं है — उल्टा यह दौर 1967 के बाद से सबसे क्रूर बताया जा रहा है।
मानवाधिकार संगठन, संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय समुदाय पर दबाव बढ़ रहा है कि वे:
- जेलों की स्वतंत्र जांच कराएं
- मनमानी गिरफ्तारियों को रोका जाए
- और फ़िलिस्तीनी कैदियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए
क्योंकि सवाल सिर्फ़ जेलों का नहीं —
यह इंसानियत की आख़िरी परीक्षा है।



