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धर्म नहीं, इंसानियत बड़ी! जब परिजन मुकर गए तो जबलपुर में मुस्लिम भाइयों ने उठाई हिंदू मजदूर की अर्थी

जबलपुर। इंसानियत जब मजहबी दीवारों से ऊपर उठकर खड़ी होती है, तो समाज में एक ऐसी रोशनी फैलती है जो उम्मीद, भाईचारे और एकता का नया संदेश देती है। ओल्ड गोलबाजार के फुटपाथ पर काम करने और रहने वाले एक मजदूर की मौत के बाद हिंदू-मुस्लिम सौहार्द की ऐसी ही मिसाल देखने को मिली।

45 वर्षीय लाला चौधरी, निवासी रांझी बड़ा पत्थर, कई वर्षों से गोलबाजार के एक छोटे भोजनालय में काम करते थे। बीमारी के कारण बीती रात उनकी मौत हो गई। भोजनालय संचालक और परिजन—दोनों ही उनके अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी उठाने से पीछे हट गए। अकेलेपन और बेबसी के इस क्षण में आगे बढ़ी गरीब नवाज़ कमेटी—एक ऐसी कम्युनिटी, जो वर्षों से मानव सेवा और जरूरतमंदों की मदद के लिए जानी जाती है।

कमेटी के इनायत अली ने बताया कि परिजनों को सूचना देने के बाद भी किसी ने अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी नहीं ली। ऐसे में कमेटी ने स्वयं आगे आकर लाला चौधरी के शरीर को सम्मानपूर्वक उठाया और तिलवारा घाट में पूरी हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार उनका अंतिम संस्कार कराया।

इस नेक कार्य में बाबू भाई, युसुफ मालगुजार, रियाज अली, बच्चु ननकानी, दीपक निगम और आदिल पठान सहित कई लोगों ने मिलकर सहयोग दिया। यह केवल एक अंतिम संस्कार नहीं था—यह समाज को यह बताने का संदेश था कि धर्म की असली पहचान सेवा है, और इंसानियत सबसे बड़ा धर्म।

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तिलवारा की पवित्र धरा पर हिंदू परंपराओं से किए गए संस्कार में मुस्लिम समुदाय के युवाओं की सक्रिय भागीदारी देखकर वहां मौजूद हर व्यक्ति की आंखें नम हो गईं। किसी ने कहा—“यह है असल भारत, जो एक-दूसरे के लिए खड़ा रहता है।”

यह घटना फिर एक बार साबित करती है कि जब समाज सेवा, करुणा और मानवता साथ खड़े हों, तो कोई भी मजहब, कोई भी दीवार इंसानों को अलग नहीं कर सकती।

जबलपुर की यह मिसाल पूरे देश को भाईचारे का नया पैगाम देती है।

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बाज़ मीडिया जबलपुर डेस्क 'जबलपुर बाज़' आपको जबलपुर से जुडी हर ज़रूरी खबर पहुँचाने के लिए समर्पित है.
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