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इलाहाबाद हाई कोर्ट का बड़ा आदेश: बरेली ‘आई लव मुहम्मद’ प्रोटेस्ट के बाद मकानों पर बुलडोज़र कार्रवाई तीन महीने रोकी गई

लखनऊ/बरेली। 26 सितंबर को बरेली में हुए “आई लव मुहम्मद” प्रोटेस्ट और उसके बाद हुई पुलिस कार्रवाई के बाद जिन मुस्लिम प्रदर्शनकारियों के घरों पर कथित ‘सज़ा के तौर पर’ बुलडोज़र चलाए गए या चलाने की तैयारी थी, उस पूरी प्रक्रिया पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण हस्तक्षेप किया है। कोर्ट ने साफ आदेश दिया है कि मोहम्मद शाहिद और सात अन्य पिटीशनर्स की प्रॉपर्टीज़ पर तीन महीने तक कोई भी गिराने की कार्रवाई नहीं की जाएगी।

◆ हाई कोर्ट की दो-ज़नवरी बेंच का आदेश

जस्टिस अजीत कुमार और जस्टिस सत्यवीर सिंह की डिवीजन बेंच ने यह आदेश संविधान के आर्टिकल 226 के तहत दायर रिट पिटीशन पर सुनवाई करते हुए दिया।
पिटीशनर्स ने 9 अक्टूबर 2025 को जारी किए गए नोटिस को चुनौती दी थी—इस नोटिस में 15 दिनों के भीतर ‘गैर-कानूनी निर्माण’ हटाने का निर्देश दिया गया था।

◆ पिटीशनर्स का तर्क: “नगर पालिका टैक्स लेती रही, इमारतें असल में रेगुलर हैं”

पिटीशनर्स के वकील ने कोर्ट को बताया कि—

  • जिन घरों को ‘गैर-कानूनी’ बताया जा रहा है, उन्हीं पर नगर पालिका कई सालों से टैक्स वसूल कर रही है।
  • यह नोटिस बिना उचित सुनवाई के एक तरह से अंतिम आदेश जैसा था।
  • “नेचुरल जस्टिस” यानी उचित अवसर और प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।

◆ अधिकारियों ने कहा: मामला नियमों के अनुसार शो-कॉज़ प्रक्रिया में निपटाया जा सकता है

राज्य सरकार और म्युनिसिपल काउंसिल की ओर से पेश वकीलों ने कहा कि जवाब पहले ही दाखिल किए जा चुके हैं और मामला विधिक प्रक्रिया के अनुसार आगे बढ़ सकता है।

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◆ हाई कोर्ट का निर्णायक निर्देश

कोर्ट ने पिटीशन का निपटारा करते हुए कई महत्वपूर्ण दिशानिर्देश दिए—

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  1. पिटीशनर्स चार हफ्ते के भीतर नोटिस का जवाब फाइल करें।
  2. कॉम्पिटेंट अथॉरिटी जवाब मिलने के बाद दो महीने के भीतर पर्सनल हियरिंग दे कर ‘स्पीकिंग ऑर्डर’ पास करे।
  3. जब तक यह प्रक्रिया पूरी नहीं होती या तीन महीने पूरे नहीं हो जाते—जो भी पहले हो—कोई भी ज़बरदस्ती की कार्रवाई या ध्वस्तीकरण नहीं किया जाएगा।
  4. राज्य के वकील को निर्देश दिया गया कि वे तुरंत यह प्रोटेक्टिव ऑर्डर बरेली प्रशासन तक पहुंचाएं।

यह आदेश उन सभी लोगों के लिए अस्थायी राहत लेकर आया है जिनके घर हिंसा के बाद ‘बुलडोज़र एक्शन’ के तहत चिन्हित कर लिए गए थे।

◆ पृष्ठभूमि: क्या हुआ था बरेली में?

“आई लव मुहम्मद” प्रोटेस्ट के बाद बरेली पुलिस ने कई मुस्लिम प्रदर्शनकारियों के खिलाफ सख़्त कार्रवाई की।
इसके तुरंत बाद—

  • नगर निगम ने 27 घरों को ‘गैर-कानूनी कब्जा’ बताकर नोटिस जारी किए।
  • चेतावनी दी गई कि FIR दर्ज की जा सकती है और गिराने का खर्च भी निवासियों से वसूला जाएगा।
    आलोचकों ने इस प्रक्रिया को “बुलडोज़र जस्टिस” बताते हुए कहा था कि यह एक तरह की सामूहिक सज़ा है जो विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाती है।

◆ सुप्रीम कोर्ट ने भी समान मामले में हस्तक्षेप किया

इसी सप्ताह, सुप्रीम कोर्ट ने भी बड़ा इंटरिम ऑर्डर पास किया—

  • फरहत जहां और सरफराज वली खान की प्रॉपर्टी ऐवान-ए-फरहत को गिराने पर तुरंत रोक लगाई गई।
  • सात दिन की सुरक्षा दी गई।
  • पिटीशनर्स को निर्देश दिया गया कि वे हाई कोर्ट में अपनी चुनौती दायर करें।
  • साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि तब तक कोई और डेमोलीशन नहीं होगा।

इलाहाबाद हाई कोर्ट का यह फैसला उन परिवारों को तत्काल सुरक्षा प्रदान करता है जिनके घर बिना पूरी कानूनी प्रक्रिया के बुलडोज़र कार्रवाई का सामना कर सकते थे।
साथ ही यह आदेश यह भी सुनिश्चित करता है कि—
हर नागरिक को उचित सुनवाई मिले, और कोई भी डेमोलीशन ‘सज़ा’ के रूप में न किया जाए बल्कि कानून के दायरे में रहकर ही हो।

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