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मुसलमानों ने इस देश की आज़ादी के लिए लड़ाई लड़ी… और अगर हक छीने गए, तो अपनी आज़ादी के लिए फिर लड़ेंगे”— लोकसभा में गरजे सांसद रूहुल्लाह मेहदी

श्रीनगर में MP रूहुल्लाह मेहदी का केंद्र पर तीखा हमला, “देशभक्ति को हथियार बनाने” का आरोप

BNN, श्रीनगर। वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ पर आयोजित चर्चा के दौरान नेशनल कॉन्फ्रेंस के सांसद आगा सैयद रूहुल्लाह मेहदी ने केंद्र सरकार पर करारा हमला बोला। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार देशभक्ति और राष्ट्रवाद को एक “पॉलिटिकल टूल” की तरह इस्तेमाल कर रही है और खासतौर पर मुस्लिम समुदाय की पहचान को निशाना बनाया जा रहा है।

रूहुल्लाह ने कहा कि सरकार की ओर से सांस्कृतिक प्रतीकों और धार्मिक इमेजरी को देशभक्ति से जोड़ने की कोशिश एक खतरनाक प्रवृत्ति है, जो न सिर्फ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बल्कि धार्मिक आज़ादी पर भी सीधा आघात है।

“देशभक्ति को ज़बरदस्ती साबित नहीं कराया जा सकता”

कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने कहा कि नागरिकों को गाना गाने या किसी विशेष सांस्कृतिक रिवाज़ का पालन करने के लिए बाध्य करना लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन है।
रूहुल्लाह ने कहा—
“देशभक्ति को सांस्कृतिक रीति-रिवाजों के ज़रिए रेगुलेट या वेरिफाई नहीं किया जा सकता। धार्मिक इमेजरी वाले गानों को वफ़ादारी की कसौटी बना देना अल्पसंख्यकों को हाशिए पर धकेलने जैसा है।”

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उन्होंने स्पष्ट कहा कि राष्ट्रवाद के नाम पर किसी से पूजा की मांग करना न संविधान सम्मत है, न ही नैतिक।

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संविधान और व्यक्तिगत आस्था का अधिकार

रूहुल्लाह ने अपने संबोधन में यह भी जोड़ा कि भारत का संविधान हर नागरिक को ज़मीर, धर्म और विश्वास की स्वतंत्रता देता है। ऐसे में कोई भी सरकार सांस्कृतिक एकरूपता थोपकर देशभक्ति की नई परिभाषा तय नहीं कर सकती।
उन्होंने कहा—
“राष्ट्रीयताएँ बदल सकती हैं, सरकारें बदल सकती हैं, लेकिन मेरा विश्वास नहीं बदलता। कोई मुझे यह नहीं बता सकता कि किस देवता की पूजा करुँ या कौन सा गीत गाकर अपनी देशभक्ति साबित करूँ।”

“हम सम्मान करते हैं, लेकिन मजबूरी स्वीकार नहीं”

सांसद ने राष्ट्रीय गीत को लेकर भी अपना रुख स्पष्ट किया।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय गीत का सम्मान भारतीय नागरिक के नाते सब करते हैं, लेकिन सम्मान और बाध्यता में फर्क होता है।
“हम सम्मान में खड़े हो सकते हैं, लेकिन इसे गाने के लिए मजबूर करना ज़बरदस्ती है और यह संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ है।”

“ज़रूरत पड़ी तो अपनी आज़ादी के लिए संघर्ष करेंगे”

अपने भाषण के एक तीखे हिस्से में रूहुल्लाह ने चेतावनी दी—
“हमने इस देश की आज़ादी के लिए बाहरी ताकतों से लड़ाई लड़ी थी। अगर जरूरत पड़ी तो अपने ही देश में, अपनी आज़ादी और अधिकारों के लिए किसी भी दमनकारी ताकत के खिलाफ लड़ेंगे।”

‘कल्चरल नेशनलिज़्म’ को कार्रवाई का औज़ार बताया

रूहुल्लाह ने आगे कहा कि देश के कई राज्यों में हाल की तोड़फोड़, पुलिस कार्रवाई और एकतरफा प्रबंधन इस बात का संकेत हैं कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को मुस्लिम समुदाय के खिलाफ हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है।
उन्होंने AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी की बातों को भी उद्धृत किया, लेकिन कहा कि उनका इंटरवेंशन इसलिए अहम है क्योंकि “यह दिखाता है कि कैसे प्रतीकात्मक राष्ट्रवाद को मुसलमानों को हमेशा संदिग्ध दिखाने के लिए प्रयोग किया जा रहा है।”

बेरोज़गारी और महंगाई से ध्यान हटाने का आरोप

रूहुल्लाह ने केंद्र सरकार पर तीखा प्रहार करते हुए कहा कि वंदे मातरम को लागू करने के प्रयास और साथ-साथ चल रही तोड़फोड़ व पुलिस कार्रवाई एक बड़े राजनीतिक नैरेटिव का हिस्सा हैं।
उन्होंने कहा—
“यह कोई अलग-अलग घटनाएँ नहीं हैं। यह एक स्ट्रैटेजी है—बेरोज़गारी से ध्यान हटाना, महंगाई के मुद्दों को दबाना, मुसलमानों को ‘हमेशा बाहरी’ बनाना और असहमति को देशद्रोह से जोड़ देना।”

स्पीच के अंत में कड़ी चेतावनी

अपनी बात खत्म करते हुए उन्होंने कहा—
“जब सरकारें नौकरियों और महंगाई जैसे असली मुद्दों पर जवाब नहीं दे पातीं, तब पहचान की राजनीति को बढ़ावा देती हैं। गाने टेस्ट बन जाते हैं, तोड़फोड़ इंसाफ़ बन जाती है, और मुसलमान सस्पेक्ट बना दिए जाते हैं।”

रूहुल्लाह की इस टिप्पणी ने घाटी और केंद्र दोनों राजनीतिक हलकों में नई चर्चा छेड़ दी है। उनकी स्पीच को विपक्षी दलों ने केंद्र की नीतियों पर सीधा हमला मानकर इसका समर्थन किया है, जबकि सत्तारूढ़ दल से प्रतिक्रिया का इंतज़ार है।

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