जब ईवीएम जंगलों तक जा सकती है, तो बच्चों तक कंप्यूटर क्यों नहीं । जबलपुर सांसद सुमित्रा बाल्मीक ने उठाया बड़ा मुद्दा.. ‘वन ब्लॉक–वन डिजिटल एग्ज़ाम सेंटर की मांग’

जबलपुर (ईएमएस)। राज्यसभा में मंगलवार को मध्यप्रदेश के जबलपुर और महाकौशल क्षेत्र से जुड़ा एक अहम सामाजिक–शैक्षिक मुद्दा जोरदार तरीके से गूंजा। राज्यसभा सांसद सुमित्रा बाल्मीक ने शून्यकाल में देश के ग्रामीण, आदिवासी और आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के छात्रों की कठिनाइयों को विस्तृत रूप से रखा।
उन्होंने कहा कि डिजिटल इंडिया के दौर में भी गाँवों के होनहार बच्चे राष्ट्रीय परीक्षाएं देने के लिए 300 किलोमीटर दूर भेजे जा रहे हैं, जबकि तकनीक का सही उपयोग करके यह विषमता आसानी से समाप्त की जा सकती है।
ग्रामीण छात्रों पर भारी पड़ती दूरी
सांसद ने सदन को बताया कि महाकौशल क्षेत्र के सिहोरा, कुंडम, शहपुरा, मझौली जैसे आदिवासी और पिछड़े इलाकों के बच्चों के लिए JEE, NEET, CUET जैसी परीक्षाएं देना एक गंभीर आर्थिक बोझ बन गया है।
उन्होंने कहा—
“एक आम परिवार का बच्चा परीक्षा की रात फॉर्मूले नहीं दोहरा रहा होता… वह बसों में धक्के खा रहा होता है। उसे परीक्षा की नहीं, अनजान शहर में सस्ती धर्मशाला मिलेगी या नहीं—इसकी चिंता सताती है।”
बाल्मीक ने कहा कि कई परिवारों के माता–पिता को बच्चे को साथ ले जाने के लिए दो दिन की दिहाड़ी छोड़नी पड़ती है, जो गरीब परिवारों पर अतिरिक्त बोझ है। परीक्षा देना उनके लिए एक आर्थिक संकट बन जाता है।
डिजिटल इंडिया और जमीनी हकीकत का विरोधाभास
सांसद बाल्मीक ने सदन में यह गंभीर सवाल रखा कि—
“जब देश के गांव-गांव तक 5G पहुंच चुका है, जब हर सरकारी प्रक्रिया ऑनलाइन हो चुकी है, तो फिर राष्ट्रीय परीक्षाओं के केंद्र कुछ बड़े शहरों तक ही सीमित क्यों हैं?”
उन्होंने कहा कि फॉर्म ऑनलाइन भरना तो आसान है, पर परीक्षा देने की प्रक्रिया अभी भी अमीरों के लिए अधिक सुलभ दिखती है। यही असमानता ग्रामीण भारत के होनहार युवाओं को पीछे धकेल रही है।
बहुत बड़ा सवाल– “ईवीएम जंगलों तक पहुँच सकती है, तो कंप्यूटर क्यों नहीं?”
सांसद सुमित्रा बाल्मीक ने सदन में सबसे महत्वपूर्ण बात कही, जिसने पूरे विषय का सार स्पष्ट कर दिया—
“यदि लोकतंत्र के लिए ईवीएम मशीनें घने जंगलों तक ले जाई जा सकती हैं, तो देश का भविष्य बनाने वाले बच्चों तक कंप्यूटर क्यों नहीं पहुँच सकता?”
उन्होंने जोर देकर कहा कि जब चुनाव के समय सरकार एक अकेले मतदाता के लिए भी मशीनें जंगलों, पहाड़ी क्षेत्रों, नदी पार इलाकों तक पहुंचाती है, तो परीक्षाओं के लिए डिजिटल सेंटर हर ब्लॉक में उपलब्ध क्यों नहीं कराए जा सकते?
इस तर्क को सदन में व्यापक समर्थन मिला।
वन ब्लॉक–वन डिजिटल एग्ज़ाम सेंटर : एक व्यवहारिक समाधान
सांसद ने शिक्षा मंत्रालय और NTA को प्रस्तावित नीति—
“वन ब्लॉक, वन डिजिटल एग्ज़ाम सेंटर”
लागू करने की मांग की।
इसके समर्थन में उन्होंने तीन प्रमुख बिंदु रखे—
- हर ब्लॉक में सरकारी स्कूल, IT रूम, कॉलेज, पंचायत भवन जैसे संसाधन पहले से मौजूद हैं, जिन्हें सुरक्षित डिजिटल परीक्षा केंद्र में बदला जा सकता है।
- देश की प्रत्येक चुनाव प्रक्रिया की तरह ही छात्रों के लिए भी तकनीक को गांव तक ले जाना संभव और आवश्यक है।
- रिमोट प्रॉक्टरिंग और डिजिटल सुरक्षा तकनीक उपलब्ध है, ऐसे में 300 किमी की यात्रा कराना तर्कसंगत नहीं है।
“वंचित समाज के लिए शिक्षा ही हथियार”
अपनी बात के अंत में बाल्मीक ने भावुक अपील करते हुए कहा—
“असमानता से लड़ने का एकमात्र हथियार शिक्षा है। सरकार ऐसी व्यवस्था करे जिससे छात्र की ऊर्जा परीक्षा पास करने में लगे, परीक्षा केंद्र तक पहुंचने में नहीं।”
उन्होंने सरकार से इस दिशा में जल्द ठोस कदम उठाने, डिजिटल परीक्षा केंद्रों का विस्तार करने और ग्रामीण–आदिवासी क्षेत्रों के बच्चों को समान अवसर उपलब्ध कराने की मांग की।
सदन में उठाया गया यह मुद्दा लाखों ग्रामीण और गरीब छात्रों की वास्तविक पीड़ा को आवाज देता है। उम्मीद की जा रही है कि शिक्षा मंत्रालय इस पर गंभीरता से विचार करेगा और डिजिटल परीक्षा केंद्रों को विकेंद्रित करने की दिशा में निर्णायक कदम उठाएगा।



