
जबलपुर। आयुध निर्माणी खमरिया (ओएफके) में वर्क्स कमेटी के नए सदस्यों के चुनाव को लेकर तैयारियां अब अंतिम चरण में पहुंच चुकी हैं। आगामी 20 दिसंबर को होने वाले इस अहम चुनाव को लेकर फैक्ट्री परिसर से लेकर कर्मचारी कॉलोनियों तक राजनीतिक सरगर्मी साफ दिखाई देने लगी है। अब तक परंपरागत रूप से कर्मचारियों की समस्याओं, सुविधाओं, प्रमोशन, ट्रांसफर और कार्यस्थल से जुड़े मुद्दों पर केंद्रित रहने वाला वर्क्स कमेटी चुनाव इस बार बिल्कुल अलग रंग में नजर आ रहा है। पहली बार यह चुनाव राजनीतिक दलों से जुड़े वैचारिक मुद्दों से प्रभावित होता दिख रहा है, जिससे माहौल लगातार गरमाता जा रहा है।
सनातन विरोध के आरोपों से गरमाया चुनावी माहौल
चुनावी माहौल उस समय और ज्यादा गर्म हो गया, जब इंटक ने अपने विरोधी खेमे की कामगार यूनियन पर सनातन विरोधी होने का आरोप लगा दिया। इसके बाद दोनों ही कर्मचारी संगठनों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर पोस्ट, वीडियो और संदेशों के जरिए दोनों पक्ष एक-दूसरे पर सनातन विरोधी होने के आरोप लगा रहे हैं। इससे फैक्ट्री परिसर के बाहर भी चुनावी बहस तेज हो गई है।
हालांकि, दोनों खेमों के कुछ वरिष्ठ कर्मचारी और जिम्मेदार पदाधिकारी लगातार मतदाता कर्मचारियों से अपील कर रहे हैं कि वे किसी भी तरह के बहकावे या भ्रम में न आएं और चुनाव को केवल कर्मचारियों के वास्तविक हितों और कार्यस्थल से जुड़े मुद्दों तक ही सीमित रखें।
संयुक्त मोर्चे की वर्क्स कमेटी, लेकिन बदले समीकरण
गौरतलब है कि वर्तमान में ओएफके में लेबर-कामगार यूनियन और एससी-एसटी यूनियन के नेतृत्व वाले संयुक्त मोर्चे की वर्क्स कमेटी कार्यरत है। लेकिन इस बार चुनावी समीकरण पूरी तरह बदल चुके हैं। एससी-एसटी यूनियन के दो फाड़ हो जाने से मुकाबला बेहद रोचक और कांटे का बन गया है।
इस बार एससी-एसटी यूनियन के अध्यक्ष ने इंटक के साथ गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरने का फैसला किया है, जबकि एससी-एसटी यूनियन के महामंत्री लेबर-कामगार यूनियन के साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। इस टूट और नए गठबंधन ने चुनाव को एकतरफा होने से रोक दिया है और मुकाबले को बेहद दिलचस्प बना दिया है।
सोशल मीडिया बना प्रचार का सबसे बड़ा हथियार
इस बार वर्क्स कमेटी चुनाव प्रचार में सोशल मीडिया सबसे बड़ा हथियार बनकर उभरा है। व्हाट्सएप ग्रुप, फेसबुक पोस्ट, वीडियो क्लिप और ऑडियो संदेशों के जरिए दोनों ही मोर्चे अपनी बात कर्मचारियों तक पहुंचाने में जुटे हैं। आरोप-प्रत्यारोप और बयानों की बाढ़ ने चुनावी माहौल को और ज्यादा तनावपूर्ण बना दिया है। जानकारों का मानना है कि ओएफके के इतिहास में यह पहला मौका है, जब वर्क्स कमेटी चुनाव में वैचारिक और राजनीतिक मुद्दे इस कदर हावी नजर आ रहे हैं।
फिलिंग सेक्शन की एंट्री से बिगड़े सारे गणित
इस बार चुनावी समीकरण उस समय पूरी तरह बदल गए, जब फिलिंग सेक्शन के कर्मचारियों ने खुद ही मैदान में उतरने का फैसला किया। बताया जा रहा है कि डीबी डब्ल्यू (DBW) कर्मचारियों को लंबे समय से प्रमोशन नहीं मिलने के कारण उनमें भारी नाराजगी है। इस नाराजगी ने अब चुनावी रूप ले लिया है।
फिलिंग सेक्शन की ओर से वर्क्स कमेटी के लिए 10 उम्मीदवार और कैंटिन कमेटी के लिए 4 उम्मीदवार मैदान में उतारे गए हैं। फैक्ट्री में फिलिंग सेक्शन के करीब 1180 कर्मचारी कार्यरत हैं, जबकि वर्क्स कमेटी चुनाव के लिए कुल मतदाताओं की संख्या लगभग 2460 बताई जा रही है। ऐसे में फिलिंग सेक्शन का वोट बैंक किसी भी मोर्चे की जीत-हार तय करने में निर्णायक भूमिका निभा सकता है।
20 दिसंबर को होगा फैसला
जैसे-जैसे मतदान की तारीख नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे प्रचार और बयानबाजी भी तेज होती जा रही है। कर्मचारी वर्ग के बीच सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या इस बार भी पारंपरिक यूनियन राजनीति अपना दबदबा बनाए रखेगी या फिर असंतोष, टूट और नए समीकरण वर्क्स कमेटी की तस्वीर बदल देंगे।
अब सभी की निगाहें 20 दिसंबर पर टिकी हैं। मतदान के बाद यह स्पष्ट हो जाएगा कि आयुध निर्माणी खमरिया की नई वर्क्स कमेटी किस मोर्चे के हाथ में जाती है और आने वाले कार्यकाल में कर्मचारियों की आवाज किस संगठन के माध्यम से प्रबंधन तक पहुंचेगी।



