एडवोकेट शगुफ्ता उस्मानी बन सकती हैं नगर निगम नेता प्रतिपक्ष

जबलपुर। शहर की करीब 15 फीसद आबादी (मुस्लिम समाज) को कांग्रेस संगठन में सम्मानजनक हिस्सेदारी देने की जायज मांग पर भले ही जबलपुर कांग्रेस ने कान न धरा हो। लेकिन प्रदेश कांग्रेस ने जबलपुर में उठी इस आवाज को गंभीरता से लिया है। बताया जा रहा है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी जबलपुर के इस 15 फीसद समर्पित वोटर की सम्मानजनक प्रतिनिधित्व देने की बात और मांग को गंभीरता से ले रहे हैं।
विगत दिनों पीसीसी चीफ पटवारी ने लोकसभा प्रभारी सुखदेव पांसे को नेता प्रतिपक्ष और नगर अध्यक्ष के चयन के लिये रायशुमारी करने पर्यवेक्षक बनाकर जबलपुर भेजा था। श्री पटवारी के निर्देश पर पांसे ने जबलपुर की समदड़िया होटल में मुस्लिम समाज के सभी पार्षदों से भी अलग अलग चर्चा की थी। जिसके बाद उन्होंने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को अपनी रिपोर्ट सौंपी।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार श्री पांसे ने नेता प्रतिपक्ष के लिये तीन नाम का पैनल श्री पटवारी को सौंपा है। उसमे अमरीष मिश्रा, आयोध्या तिवारी के साथ साथ पूर्व एमआईसी सदस्य और दो बार से कांग्रेस पार्षद एडवाकेट शगुफ्ता उस्मानी का भी नाम है। यदि अंतिम समय में कोई खेल नहीं हुआ, तो इस बार जबलपुर और नगर निगम के इतिहास में पहली बार एक अल्पसंख्यक मुस्लिम महिला, विपक्ष का नेतृत्व करते नजर आएगी।
कौन हैं शगुफ्ता उस्मानी…….

एडवोकेट शगुफ्ता उस्मानी बीते दो बार से बाल गंगाधर तिलक वार्ड (नया मोहल्ला) से पार्षद हैं। वहीं वे नगर निगम में योजना विभाग जैसे महत्पूर्ण विभाग की एमआईसी भी थीं। तालीमी योग्यता की बात की जाए तो शगुफ्ता ने गे्रज्यूएशन और फिर पोस्ट ग्रेजुएशन किया है। उनकी तालीम का सफर यहीं नहीं रुका, इसके बाद उन्होंने एलएलबी की और वकालत की दुनिया में भी अपनी मजबूत पहचान बनाई।
वहीं राजनीति अनुभव की बात जाए तो शगुफ्ता बीते 20 साल से सक्रिय राजनीति में हैं। उनके अनुभव का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि जब दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे, तब तत्कालीन केबिनेट मंत्री आरिफ अकील ने उन्हें मुस्लिम एजुकेशन सोसायटी की जिम्मेदारी सौंपी थीं। वहीं वर्तमान में शगुफ्ता महिला कांग्रेस की संरक्षक हैं। इसके अलावा भी उन्होंने संगठन में कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सफलता पूर्वक निभाई हैं।
कैसे चर्चा में आया नाम…..
महापौर जगत बहादुर सिंह अन्नू के अचानक कांग्रेस से भाजपा में जाने के बाद मुस्लिम समाज में चर्चा और विमर्श का दौर शुरु हुआ। यहां के 09 वार्डों में युवाओं ने सोशल मीडिया के माध्यम से मुस्लिम समाज के लिये कांग्रेस में सम्मानजनक हिस्सेदारी मांगने की मुहिम शुरु की।
सोशल मीडिया पर चल रही इस मुहीम का असर यह हुआ कि प्रदेश कांग्रेस ने मुस्लिम समाज की वाजिब मांग पर सकारात्मक तरीके से विचार के संकेत दिये। जिसके बाद दो बार से कांग्रेस की पार्षद एडवोकेट शगुफ्ता उस्मानी का नेता प्रतिपक्ष के लिये चर्चा में आया। संगठन सूत्रों की मानें तो जिन तीन नामों का पैनल पर्यवेक्षक सुखदेव पांसे ने प्रदेश कांग्रेस को सौंपा है। उनमें अमरीष मिश्रा, आयोध्या तिवारी और शगुफ्ता उस्मानी का नाम है।
शगुफ्ता उस्मानी ही क्यों…

जबलपुर में कुल 09 पार्षद हैं जो मुस्लिम समाज से आते हैं। जिसमें 04 पार्षद हैं जो कांग्रेस की टिकिट से चुनाव लड़कर नगर निगम पहुंचे। 03 पार्षद ऐसे हैं जिन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीता, फिर कांग्रेस का हिस्सा बनें। वहीं 02 पार्षद एमआईएम के हैं, जो नगर निगम में कांग्रेस के साथ विपक्ष में बैठेंगे।
निर्दलीय पार्षदों दावेदारी तकनीकी कारण से कमजोर है। क्योेंकि किसी निर्दलीय को नेताप्रतिपक्ष बनाया गया, तो इससे शहर के दूसरे हिस्से के कांग्रेस पार्षद विरोध करेंगे। वहीं जो चार पार्षद कांग्रेस के हैं। उनमें दो पहली बार के हैं और दो दूसरी बार के हैं। दूसरी बार के दोनों पार्षदों में तालीमी योग्यता और संगठन में कार्य अनुभव में शगुफ्ता उस्मानी अव्वल हैं।
वहीं वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि यदि शगुफ्ता उस्मानी को नेता प्रतिपक्ष बनाया जाता है, तो इससे एक साथ तीन समीकरण साधे जा सकते हैं। शगुफ्ता को प्राथमिकता देने से मुस्लिम समाज, ओबीसी और महिला तीन समीकरण एक साथ संतुलित होंगे।
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