.. जिनकी दुआओं के तुफैल मोहरिया-मक्का नगर आबाद हुआ
… आज की पीढ़ी को सिर्फ इतना पता है सुब्हान शाह मैदान (सुब्बासा) में क्रिकेट टूर्नामेंट होता है। दरगाह है, जहां उर्स और मेला भरता है। इससे ज्यादा न किसी को जानने में दिलचस्पी है। न किसी को बताने की फिक्र है।
आज मोहिरया रजा चौक से लेकर बहोराबाद और इनका अतराफ आबाद है। लाखों लोग रहते हैं, हजारों दुकानें हैं, पूरा शहर यहां आ रहा है। लेकिन आज की मोहरिया रजा चौक बहोराबाग और इसके अतराफ को देखने वालों को शायद पता भी नहीं है।
… यह खुुशहाली, यह आबादी, यह कारोबार, यह रौनक.. हजरत सुब्हानल्लाह शाह रहमतुल्लाह अलैहे की मेहनत और दुआओं का नतीजा है। जिसके सबब 150 साल पहले का वीरान जंगल, आज हस्ता खेलता खुशहाल उप-नगर बन चुका है।
हाजी सुब्हानल्लाह शाह रह., फिर हजरत मुहम्मद उस्मान शाह कामिल बाबा रह. और फिर आपके खलीफा हजरत मोहम्मद हसन साधु बाबा रह. ने पूरे जबलपुर शहर को इल्म ओ अदब की रौशनी बख्शी, उनकी दुआओं और मेहनत ने मुस्लिम समाज को खुशहाली और दीन से करीब किया। उनके फैजान ने संजय गांधी वार्ड, टैगोर वार्ड, ठक्कर ग्राम वार्ड, शास्त्री वार्ड उससे लगे एरिया को वीराने से हस्ते खेलते शहर में तब्दील कर दिया।
.. आज तारीख है खानकाहे सुब्हानल्लाह शाह रह. के खलीफा हजरत मुहम्मद उस्मान अल मारूफ कामिल शाह रह के जानशीन हजरत बाबा साधू हसन शाह की आप उत्तर प्रदेश के हरीहर गंज में पैदा हुए।
लेकिन आपने अपनी जिंदगी जबलपुर के लिये वक्फ कर दी।
आज तारीख है साधू बाबा के नाम से मशहूर और हजरत सुब्हानल्लाह शाह के सामने दफ्न हजरत मोहम्मद हसन साधु बाबा रह. की। आज ही के दिन 16 रमजानुल मुबारक को साधू बाबा इस दुनिया से रुखसत हुये थे।जिन्होंने जिंदगी की आखरी सांस तक… आज के मुहरिया मक्का नगर रजा चौक तालिब शाह चौक उससे लगे एरिया को गुलजार करने के लिये वक्फ रही।
हजरत साधु बाबा की हयात और खिदमत…
फेहरिस्त उनवान
आज बात करते हजरत मोहम्मद हसन साधु बाबा रह. कि जिनकी जिंदगी हम सबके लिये एक मिसाल और रहनुमाई है। जबलपुर के मुसलमान सीरीज के दूसरे हिस्से में आज बात करते हैं, साधू बाबा रहमतुल्लाह अलैह की।
हरीहर गंज में पैदाइश
हजरत सुब्हानल्ला शाह रह. के चौथे खलीफा हजरत मुहम्मद उस्मान कामिल शाह रह. के जानशीन और खलीफा हजरत मोहम्मद हसन साधु बाबा रह. की पैदाईश 10 मुहर्रम 1321 (08 अप्रैल 1903) में उत्तर प्रदेश के रानी गंज के हरीहर गंज में हुई।
बचपन में ही माँ बाप के साय से महरूम हुए
बचपन में आपके वालिद का इंतकाल हो गया। आपकी वालिदा आपको और आपके बड़े भाई अब्दुल गफूर को लेकर प्रतापढ़ के अंतू में आकर बस गईं। लेकिन अल्लाह को कुछ और मंजूर था।
महज दो साल के अंदर आपकी अम्मी भी अल्लाह को प्यारी हो गई।
मां और बाप दोनों का साया सिर से उठ गया। आपकी परवरिश की जिम्मेदारी आपके बड़े भाई अब्दुल गफूर साहब के जिम्मे आई।
जिंदगी का सफर जारी रहा।
अंतू के प्रायमरी स्कूल में आपका दाखिला हुआ। इब्तेदाई तालीम के बाद मदरसा में दाखिला कराया गया। जहां आपने अरबी उर्दू फारसी दीनयात की तालीम हासिल की।
जबलपुर में आमद
रोजगार के बिगड़ते हालात के चलते बड़े भाई अब्दुल गफूर साहब आपको लेकर जबलपुर आ गये।
.. या यूं कहें कि कुदरत ने वो हालात बना दिये कि आप उस जगह से करीब होने लगे, जिस जगह की जहाबानी की जिम्मेदारी के लिये आप मुंतखिब किये गये थे।
बनने लगे रास्ते…
जबलपुर आने पर जबलपुर के गोराबाजार में रहने लगे। मिलेटरी छावनी में बड़े अब्दुल गफूर साहब को खानसामा की नौकरी मिल गई। कुछ दिन बाद आप भी खानसामा की नौकरी करने लगे।
कुदरत आपको खानकाहे सुब्बानल्लाह शाह (रह.) से करीब कर रही थी।
पीर साहब से पहली मुलाकात
फारिग वक्त में हजरत साधू बाबा रह. गोराबाजार में उनके मकान के पास रहने वाले हाफिज मिन्ना साहब के पास जाते थे। जहां दीन और दुनिया की सालेह गुफ्तुगू होती थी।
एक बार तजकिरा ए औलिया छिड़ गया और आपकी दिलचस्पी देखते हुये हाफिज मिन्ना साहब ने आपको सुब्हान बाग जाने का मशविरा दिया।
बस फिर क्या था, क्या जिंदगी उस तरफ मुड़ने लगी, जिसके लिये आप इस दुनिया में आए थे।
कुछ दिन बाद सुब्हान बाग पहुंचे
तो यहां,
हजरत सुब्हान अल्लाह शाह के रौजे के शुमाल में एक कच्चे मकान में हजरत मुहम्मद उस्मान शाह कामिल बाबा रह. बैठे हुये थे। तालीम ओ तरबियत में मशरूफ थे।
आप भी बैठ गये और बातों को ब-गौर सुनने लगे
पहली ही मुलाकात में बातों का असर इतना गहरा हुआ कि फिर हर रोज सुब्हान बाग आने लगे।
बैअत और खिलाफत..
कुछ वक्त बाद आपने बैअत की इजाजत हज़रत मुहम्मद उस्मान कामिल शाह बाबा से मांगी इजाजत मिल गई। आपने बैअत लेकर हमेशा के लिये अपने पीर कामिल शाह बाबा की इताअत में आगे की जिंदगी वक्फ कर दी।
1940 में आपके पीर कामिल शाह बाबा ने अजमेर के सफर का इरादा किया। आप भी उनके साथ जियारत के लिए गए।
अजमेर के सफ़र के दौरान कामिल शाह बाबा रह.ने यह जान लिया था कि अब साधु बाबा रह. को आगे की जिम्मेदारी देने का वक्त आ रहा है।
अजमेर से लौटने पर उन्होंने साधु बाबा को नौकरी छोड़ने का हुक्म दिया। इसके बाद साधु बाबा दर्स तदरीस नसीहत दावत के काम में वक्फ हो गए।
उसी साल 1940 में हज़रत मुहम्मद उस्मान कामिल शाह बाबा रह. ने उर्स के मौके पर साधु बाबा रह. को खिलाफत अता कर अपना खलीफा बनाया। इस वक्त हजरत सलीमुल्लाह शाह जौनपुरी, हाफिज अजीमुल्लाह शाह और हजरत करीमुल्लाह शाह भी मौजूद थे। हजरत सलीमुल्लाह शाह जौनपुरी ने भी आपको अपनी खिलाफत अता की।
पीर सहाब से जुदाई..
जौनपुर के एक सफर के दौरान रास्ते में एक सड़क हादसे में कामिल शाह बाबा रह. की कूल्हे की हड्डी टूटी गई।
आप वापस आए और आस्ताना सुब्हानिया में सब की मौजूदगी में
अपने खलीफा मुहम्मद हसन साधू बाबा रह को सज्जादा नशीन मुकर्रर किया।
कभी आराम मिलता, कभी तकलीफ बढ़ती ... इलाज जारी रहा।
लेकिन 03 अक्टबूर 1982 को बाबा कामिल शाह रेहलत फरमा गए। उन्हें उनके पीर हाजी सुब्हानल्लाह शाह से लगी हुई जगह में पैताने की तरफ दफ्न किया गया।
गुड्डू बाबा की जानशीनी…
जिसके बाद मुर्शिद बाबा कामिल शाह रह. और दादा पीर हाजी सुब्हान्नला शाह रह. दोनों ऐरास (खानकाह) की जिम्मेदारी साधू बाबा रह. पर आ गई। जिस जिम्मेदारी को आप आखरी सांस तक अदा करते रहे।
1990 में मुहम्मद बदरुद्दीन गुड्डू बाबा ने मुहम्मद हसन साधू बाबा के हाथ पर बैअत की। 25 अक्टूबर 1996 में साधू बाबा ने गुड्डू बाबा को खिलाफत और सज्जादानशीन बनाया।
साधू बाबा का आखरी सफर…
1998 के आखिर में साधू बाबा की पसलियों में दर्द हुआ। जबलपुर हास्पिटल पहुंचे। आराम मिला और वापस आए। रुश्दो हिदायत का सिलसिला जारी रहा। इस दौरान आपने सिलसिले के सभी मुरीदों को मिलने आने की खबर पहुंचा दी।
05 जनवरी 1999, 16 रमजानुल मुबारक 1419 को साधु बाबा इस दुनिया से रुखसत हो गए। और अपने पीछे छोड़ गए इल्म अदब रूहानियत का वो फैजान जो ता-कयामत गुलशने जबलपुर को महकाता रहेगा।
आपके पीर कामिल शाह बाबा ने कहा था “साधू हसन को मेरे सामने रखना।”
.. इत्तेफाक राय से आस्ताना सुब्हानिया के सामने मशरिक की जानिब 7 जनवरी 1999 जुमेरात 18 रमजान 1419 आपको सुपुर्दे खाक किया गया।
14 फरवरी 1999 को अकीदत मंदों की मौजूदगी में हज़रत मुहम्मद बदरुद्दीन गुड्डू बाबा की दस्तारबंदी व जानशीनी का ऐलान हुआ।
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Bhai Assalamu Alikum