हाजी सुब्हानल्लाह शाह बाबा की हयात खिदमात और तालीमात
जबलपुर शहर और पूरा महाकौशल अहसानमंद उन बुजुर्गों का जिन्होंने हमारे शहर को आबाद और खुशहाल करने के लिये अपना घर, अपना अजीज शहर, अपना राज्य सब कुछ छोड़ दिया। जबलपुर को अपना घर बनाया। जबलपुर को अंधेरे से निकालकर रौशनी में ले जाने के लिये अपनी जिंदगी वक्फ कर दी। उन्हीं की मेहनत थी कि आज जबलपुर में इल्म ए दीन की शमा जल रही है। उन्हीं की दुआएं थीं, जो आज जबलपुर आबाद है।
यहां हम बात कर रहे हैं ऐसे ही एक अजीम सूफी बजुर्ग हाजी सुब्हानल्लाह शाह रहमतुल्लाह अलैह की जो बनारस के एक गांव में आज से 171 साल पहले पैदा हुए। आपके इस्तकबाल के लिये पूरी दुनिया खुली हुई थी। लेकिन आपने जबलपुर को अपना घर बनाया। चांदनी चौक में मुकीम हुये, सुब्हान बाग में आपकी तदफीन हुई।
जबलपुर के मुसलमान सीरीज के तीसरे भाग में आज हम बात करेंगे।
हाजी सुब्हानल्लाह शाह रह. (सुब्बा शाह बाबा) कि जिनका उर्स 22 अप्रैल और 23 अप्रैल को सुब्बाह शाह मैदान में मनाया जा रहा है।
हजरत सुब्हानल्लह शाह की तालीमात…
आपका सबसे मशहूर कौल है
आप फरमाया करते थे कि “हमेशा मशक्कत की रोजी कमाना मशक्कत की रोजी में लुत्फ है।”
आप अपने मुरीदैन से जब भी बैअत लेते थे तो उन्हें नमाज की पाबंदी, हलाल और हराम की तमीज, झूठ से परहेज और कुरआन की हर हाल में तिलावत का अहद लेते थे।
आप हमेशा तलकीन करते थे कि शरीयत की हर हाल में पाबंदी करना है। जिंदगी को नंगेपन और फिजूल कामों से बचाना है। किसी की कभी झूठी गवाही नहीं देना है। नजर जुबान और नफ्स को हमेशा काबू में रखना है।
आज जब उनकी तारीख आ रही है तो “हम खुद को जांचे की हम उनकी बताई कितनी बातों पर अमल करते हैं।”
आज जब उनकी तारीख आ रही है तो हम यह अहद करें कि हम उनकी तालीमात पर हर हाल में अमल करेंगे।”
यही हमारी, हमारे बुजुर्गों को सच्ची खिराजे अकीदत होगी।
हजरत सुब्हानल्लाह शाह की मुख्तसर सीरत….
फेहरिस्त मजामीन
आपकी पैदाईश और इस्मे गिरामी………
हजरत सुब्हानल्लाह शाह का नाम शेख मुहम्मद सुब्हान था। आपके पीर साहब ने आपको सुब्हानल्लाह का खिताब दिया था। वहीं शहर जबलपुर और इसके अतराफ में आप सुब्बाह शाह बाबा के नाम मशहूर हुये। आपके वालिद साहब का नाम शेख फौदी था।
आपकी विलादत उत्तर प्रदेश के बनारस के एक गांव भुड़की में हुई थी। आपकी पैदाईश का साल 1853 माना जाता है। वहीं 20 मई 1938 में जबलपुर के चांदनी चौक में आप इस दुनिया से रुखसत हुये। आपने करीब 85 साल की उम्र पाई।
तालीम और निकाह……
बचपन की तालीम मुकामी मदरसे में ही हासिल की। जिसके बाद इल्म में आपकी दिलचस्पी देखते हुये आपके वालिद ने आपकी आगे की तालीम का इंतजाम किया। आपने दीनी और दुनियावी दोनों उलूम में महारत हासिल की। मुकामी जुबान के साथ साथ आप उर्दू और फारसी में महारत रखते थे।
25 साल की उम्र में आपका निकाह किया गया। आपकी एक बेटी भी हुई। अहिल्या की लम्बी बीमारी के बाद मौत हो गई।
पीर साहब से मुलाकात …..
जिसके बाद आपने रजाए इलाही की तरफ अपनी पूरी तवज्जोह मरकूज कर ली और सफर पर निकल पड़े। अपने सफर के दौरान आप पुलगांव पहुंचे।
जहां बुजुर्ग हजरत शाह नूर रहमतुल्ला अलैहे मुकीम थे। आपकी उनसे मुलाकात हुई। आप उनकी खिदमत में रहने लगे। काफी समय साथ रहने के बाद आपने उनसे बैअत की। बैअत के बाद लम्बे समय पीर साहब की खिदमत में रहे। जहां आपने मजीद इल्मी और रूहानी फैजान हासिल किया।
अपने मुरीद की दिलचस्पी, मेहनत और रजाए इलाही का जज्बा देखकर उन्होंने आपको अपनी खिलाफत और जानीशीनी अता फरमाई।
चारों सिलसिलों में बैअत की इजाजत
हजरत शाह नूर मियां के पीर हजरत शाह अब्दुल रहमान उर्फ सैलानी बाबा रह. एक बार पुलगांव आए। यहां आपने हजरत सुब्हानल्लाह शाह को देखा। वो आपसे मुतास्सिर हुये, उन्होंने ने भी आपको अपनी खिलाफत और जानशीनी अता की।
दोनों बुजुर्गों ने आपको सिलसिला ए कादरी, चिस्ती, सोहरावर्दी, नक्सबंदी का दर्स दिया। जिसके बाद आपको चारो सिलसिलों में बैअत का हुक्म दिया गया और खिलाफत नामा लिखकर दिया गया।
आप वहां से वापस अपने आबाई शहर आ गये। अपने घर से दर्स ओ तदरीस का सिलसिला शुरु किया। आपके फैजान का चर्चा पूरे बनारस में फैलने लगा। लोग आपसे मिलने आने लगे और मुरीद होने लगे।
सात साल मदीने में कयाम
कुछ समय बाद आप पीर साहब से मिलने पुलपूर पहुंचे। जहां आपके पीर शाह नूर मियां रह. और हजरत शाह अब्दुल रहमान उर्फ सैलानी बाबा हज की तैयारी कर रहे। आप भी उनके साथ हज के लिये रवाना हो गये। मक्का मुकर्रमा में हज के बाद आप हजरात मदीना पहुंचे। जहां सात साल कयाम किया और सात हज भी किया।
7 साल के तवील कयाम के बाद आप हजरात हिंदुस्तान वापस लौटे। फिर हजरत सुब्हानल्लाह शाह अपने आबाई शहर पहुंचे। जहां दोबारा वाज ओ नसीहत का सिलसिला शुरु हो गया।
कुछ अर्से बाद आपके पीर साहब ने आपको नागपुर जाने का हुक्म दिया। आप नागपुर पहुंचे, आप हजरत बाबा ताजुद्दीन रह. की खिदमत में हाजिर हुये। फिर आप नागपुर में ही रहने वाले अपने एक भतीजे घर पहुंचे। यहां आपने लम्बे अर्से कयाम किया। आप दिन में मिल में बुनाई का काम करते। ईशा के बाद लोगों को तालीम देते और फिर इबादत में मशगूल हो जाते।
जबलपुर में आमद
… जिंदगी जारी रही। फिर वो दिन आया जब जबलपुर की आमद के हालात बनने लगे।
पीर साहब का हुक्म आया कि जबलपुर जाओ..। आप जबलपुर आ गये। यहां नबी बख्श नाम के शख्स जिनका अकीदा बिगड़ा हुआ था। उन्हें आपकी दावत और नसीहत ने सीधा रास्ता दिखाया। वो आपसे मुरीद हुये। फिर कुछ साल बाद नबी बख्श साहब की इबादत और रियाजत देखकर आपने उनको खिलाफत अता की।
आप चांदनी चौक के एक कच्चे मकान में रहने लगे, जो मकान आज भी मौजूद है।
आपने हाफिज अजीमुल्लाह को अपना दूसरा जानशीन बनाया। हजरत सलिम मियां को तीसरा और हजरत कामिल बाबा को चौथा जानशीन बनाया।
आखरी सफर
हजरत सुब्हानल्लाह शाह ने सोमवार पीर के दिन 20 रबीउल अव्वल 1357 बतारीख 12 मई 1938 को चांदनी चौक में आखरी सांस ली और दुनिया ए फानी से रुखसत हुए।
आपकी नमाजे जनाजा आपके खलीफा हाफिज अजीमुल्लाह शाह रह. ने अदा कराई।
आपने वसीयत की थी कि ठक्कर ग्राम से लगे घने जंगल के बीच एक जगह पर आपको सुपर्दे खाक किया जाए। इस जगह को आपने अपनी हयात में खरीदा था। अपकी वसीयत के मुताबिक आपको वहां सुपुर्दे खाक किया गया।
यहां एक बात यह भी कबीले गौर यह थी की हज़रत सुभानल्लाह शाह रह. ने इस जगह को 1936 में खरीदा था। इसकी रजिस्ट्री में उन्होंने अपने वालिद की जगह अपने पीर हजरत नुरुल्लाह शाह रह. का नाम दर्ज कराया था। जिसका मकसद ये था की वो अपने मानने वालों को ये पैगाम देना चाहते थे की ये निजी मिल्कियत नही होगी। ये सिलसिले की मिलकियत होगी।
जिस जगह को बाद में सुब्हान बाग और आगे चलकर सुब्बा शाह मैदान के नाम से जाना गया।