फिलीस्तीन की आवाम और बैतुल मुकद्दस की अजमत को जबलपुर के शायरों ने किया सलाम
जबलपुर: इदारा अदबे इस्लामी जबलपुर द्वारा तलैया स्थित जमाअत ए इस्लामी हिन्द के दफ्तर में एक अहम तरही मुशायरा “फिलीस्तीन के मुजाहिदीन के नाम” आयोजित किया गया। इस मुशायरे की सदारत उस्ताद शायर जनाब जमील अहमद जमील साहब ने की, जबकि निजामत की जिम्मेदारी जनाब शकील अहमद अंसारी ने निभाई।
मुशायरे में शहर के मशहूर शायरों ने अपने कलाम के जरिये फलस्तीन की जंगे आजादी और शोहदाए फलस्तीन को खिराजे अकीदत पेश किए. जिनमें उस्ताद शायर जनाब सगीर फरोग, नियाज़ मज़ाज, ग्यासुद्दीन कश्फी, निसार अहमद निसार, मुख्तार अहमद शैख निजामी, अब्दुल खालिक दानिश, मकबूल ज़फर, शकील बागी, गुलाम मुस्तफा अदना, इज़हार रज़ा ने हिस्सा लिया।
मुशायरे की विशेषता यह रही कि इसका उनवान था:
“अनोखी वज़ह है सारे ज़माने से निराले हैं ये आशिक, कौन सी बस्ती के या रब रहने वाले हैं”,
जो कि फिलीस्तीन के मुजाहिदीन की शहादत और संघर्ष की तरफ इशारा करता था। इस विषय के तहत शायरों ने फिलीस्तीन की नायाब कुर्बानियों, संघर्षों, और आज़ादी की चाहत को अपने कलाम के माध्यम से श्रोताओं तक पहुँचाया।
मुशायरे में शायरों ने भावुक, शेरो-शायरी के माध्यम से उम्मत के अजीम इतिहास की बात की, खासतौर पर उस इल्म और हुनर का जिक्र किया, जिसको भूलकर आज उम्मत अपने हक़ और अधिकार से वंचित हो रही है। एक शेर में इस भाव को बयां किया गया:
“ज़ुंज़दान में हम रखके जिसे भूल गए हैं, उम्मत का तमक्कुन है उसी इल्मो हुनर में”।
इस मुशायरे में बड़ी तादाद में लोगों ने शिरकत की, जिनमें गुलाम रसूल, अहमद मास्टर, नवाब, नईम, राशिद, लियाकत, वकार, शकील, अकरम, बाबा बेल्डर, यासिर, शाहिद, एहतेशामुलहक और नौशाद जैसे प्रमुख लोग शामिल थे। इन श्रोताओं की संख्या ने यह साबित कर दिया कि शहर में शायरी के प्रति गहरा प्रेम और रुचि मौजूद है।
जनाब जमील अहमद ने इस अवसर पर अपने समापन भाषण में कहा, “आज की शाम सिर्फ शायरी की नहीं, बल्कि एक ऐसे संघर्ष की भी शाम है, जिसे हम भूलने नहीं दे सकते। फिलीस्तीन के मुजाहिदीन की कुर्बानी और संघर्ष हमें ये सिखाता है कि इस्लाम और उम्मत के लिए जंग सिर्फ बजादुरी का प्रतीक नहीं, बल्कि यह इंसानियत की जंग है, जो इसकी जीत और हार पूरी इंसानियत की जीत और हार छुपी है. “
इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए इदारा अदबे इस्लामी और जमाअत ए इस्लामी हिन्द की पूरी टीम को धन्यवाद दिया गया। इस मुशायरे ने फिलीस्तीन के संघर्ष और शायरी के माध्यम से एक महत्वपूर्ण संदेश दिया, जिसे लंबे समय तक याद रखा जाएगा।