रीवा के ऑटो ड्राइवर ‘मुस्लिम अंसारी साहब की बेटी आयशा बनी डिप्टी कलेक्टर’, पिता का सपना किया पूरा, बढ़ाया रीवा का मान।

मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग ने शनिवार की शाम राज्य सेवा परीक्षा का फाइनल रिजल्ट घोषित किया। जिसमें प्रदेश के रीवा जिले की आयशा का चयन डिप्टी कलेक्टर पोस्ट पर हुआ। आयशा ने परीक्षा परिणामों मे 12वा स्थान प्राप्त कर अपने माता पिता का नाम रौशन कर दिया साथ ही रीवा का भी मान बढ़ाया। परिणामो मे सफलता मिलने के बाद आयशा के परिवार मे खुशी की लहर है साथ ही आयशा के घर में बधाई देने वालो का ताता लगा हुआ।
आयशा की ये सफलता कई मायनो मे अहम बन जाती है क्योकी आयशा के पिता का सपना था की उनके घर से कोई प्रशासनिक सेवाओं मे जाए। आयशा बताती है की उन्हे इसकी प्रेरणा अपने पिता से मिली वह बताती है की उनके पिता जब पुलिस लाइन कॉलोनी से होकर गुतरते थे तब वह वहां के घरो के बाहर लगी नेम प्लेट काफी गौर से देखा करते थे।
दरअसल इस इलाके मे प्रशासनिक अधिकारी के बंगले थे जिनके घरो के बाहर लगी नेम प्लेट मे कलेक्टर, डिप्टी कलेक्टर, आदि नाम व पदनाम लिखे होते थे। ये देख आयशा के पिता भी सोचा करते की काश ऐसी ही नेम प्लेट उनके घर के बाहर भी लगे आयशा के पिता ने एक दिन घर मे अपनी इस ख्वाहिश के बारे मे बताया जिसके बाद आयशा ने भी ये ठान लिया की उन्हे अपने पिता की इस ख्वाहिश को पूरी करनी है और वह अपने इस मिशन मे लग गई। और आखिरकार अपनी कड़ी मेहनत के दम पर आयशा ने ये मकाम हासिल कर अपने पिता की ख्वाहिश पूरी की व उनके सपने को साकार कर दिया। बताते चले की आयशा के पिता ऑटो ड्राइवर व मॉं ग्रहणी है आयशा एक मध्यवर्गीय परिवार से आती है।।
आयशा ने अपनी कामयाबी का श्रेय अपने माता पिता व दोस्तो को दिया है आयशा ने अपने पिता का ही अपना गुरु व मार्गदर्शक बताया उन्होने कहा की यदि मेरे माता पिता मेरा सहयोग नही करते तो यह कभी भी संभव नही हो पाता। आयशा ने आगे कहा की छोटे शहरों की लड़कियों को अमूमन घर के कामो ,चूल्हे चौके तक ही सीमित मान लिया जाता है पर मेरे माता पिता ने तालीम को जरुरी समझा और उसका ही नतीजा है की मै आज डिप्टी कलेक्टर के पद पर चयनित हुई हूं।

वही आयशा के पिता मुस्लिम अंसारी साहब भी अपनी बेटी की इस कामयाबी पर फूले नही समा रहे है बेटी को मिली इस कामयाबी पर आयशा के पिता ने कहा की “ मोहल्ले के ही एक स्कूल में आयशा की शुरुआती पढ़ाई हुई। इसमें हमारी मेहनत नही यह सब तो उसका ही है, हमने कुछ नही किया उसने हमसे कभी कुछ नही मांगा कोई जिद नही की मै यही कहना चाहूंगा कि अगर कोई बच्चा या बच्ची पढ़ने वाला हो तो उसे जरुर पढ़ने दीजिए, उनकी मेहनत एक दिन जरुर रंग लाएगी।
बताते चले की इस कामयाबी के पहले दो बार आयशा असफल रही पर उन्होने हार नही मानी और अपनी मेहनत जारी रखी और आखिर मे वह अपने मिशन मे कामयाब भी हुई। आयशा की कामयाबी ने उनके माता पिता के साथ पूरे समाज को गौरवान्वित करने का काम किया है साथ ही उनको मिली सफलता दूसरो को भी शिक्षा हासिल करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है।