“…इत्तेहाद से क्या होता है, उसकी सबसे बड़ी मिसाल गाजा है। जहां छोटे से हिस्से में रहने वाले कुछ लाख गाजा के लोगों ने अमेरिका से सीधे मुकाबला किया। बदतरीन जुल्म और कत्लेआम से गुज़रे, लेकिन एक-दूसरे का हाथ नहीं छोड़ा, एक-दूसरे पर भरोसा कम नहीं होने दिया, जुबान पर शिकवा नहीं आया। आखिरकार अमेरिका और इज़राइल को शिकस्त खानी पड़ी और पीछे हटना पड़ा। यह है इत्तेहाद की ताकत, जिसके दम पर गाजा ने दुनिया की सुपर पावर को घुटनों पर ला दिया…।”
यह बात नायब अमीरे जमाअत इस्लामी एस. अमीनुलहसन ने गोहलपुर मैदान में आयोजित इत्तेहाद-ए-उम्मत कॉन्फ्रेंस में कही।
उन्होंने आगे कहा, “जब सूरज तूलू होता है तो अंधेरा छंटने लगता है, चरिंद-परिंद बाहर आते हैं, जिंदगी की लहर दौड़ पड़ती है। रौशनी ही जिंदगी की ज़मानत है।” उन्होंने कहा, “इत्तेहाद वही रौशनी है, जिसके तूलू होने से मिल्लत में मायूसी खत्म होती है। जिंदगी की लहर दौड़ पड़ती है।“
इफ्तिताही क़लमात मआविन अमीर हलका इम्तियाज अहमद ने पेश किए। इजहारे तशक्कुर और दुआ नाज़िम-ए-शहर गुलाम रसूल ने कराई। मंच पर एसआईओ प्रदेश अध्यक्ष नसीब अली, अमीरे मुकामी जमील अहमद, जान मोहम्मद, मोहम्मद साबिर मौजूद रहे। कार्यक्रम में संचालन वकार अहमद ने किया।
मुसलमान मुत्तहिद हैं…
एस. अमीनुल हसन ने आगे कहा, “यह कहना गलत है कि मुसलमान मुत्तहिद नहीं हैं। उम्मत-ए-मुस्लिमा मुत्तहिद है। अल्लाह के एक होने में पूरी उम्मत में किसी को राई बराबर शक नहीं है। हज़रत मोहम्मद सल्लललाह अलैहि वसल्लम के आखिरी रसूल होने पर इस बात में पूरी उम्मत में किसी को जर्रा बराबर इख्तिलाफ नहीं है। कुरआन पर पूरी उम्मत का इत्तेफाक है। आख़िरत पर पूरी उम्मत का यकीन है। उन्होंने कहा, इख्तिलाफ सिर्फ छोटी-छोटी बातों में हैं, जो होना एक आम बात है।”
उन्होंने कहा, “इख्तिलाफ हर दौर में रहे हैं, और हर दौर में रहेंगे। बस कुछ शराती लोग अपने फायदे के लिए छोटे-छोटे मसलों पर मिल्लत को आपस में लड़ाने की कोशिश करते हैं। हमें ऐसे लोगों को पहचानने और उनसे बचने की जरूरत है।”
इन कामों से मजबूत होगा इत्तेहाद
उन्होंने कहा, “सूद हराम है, उसपर सभी मसलक एक राय हैं। तो जबलपुर में ब्याज से आज़ाद सोसायटी सब मिलकर बनाएं। इंट्रेस्ट फ्री बैंकिंग का निजाम सब मिलकर खड़ा करें, जिससे मिल्लत में मआशी खुशहाली आएगी।”
“कुरआन की अजमत और उसके हक़ होने पर हर मकतबे फिक्र एक राय है। हर मकतब की मस्जिद में कुरआन स्टडी सेंटर या दर्से कुरआन शुरू करना चाहिए।” उन्होंने कहा, “आप जिस मसलक से हैं, उस मसलके के आलिम-ए-दीन का तर्जुमा पढ़ें, अपने मसलके के मौलाना साहब से कुरआन का दर्स हासिल करें। अगर हर मुसलमान एक साथ कुरआन पढ़ने लगेगा, तो मिल्लत में इत्तेहाद खुद मजबूत होगा।”
बड़ा दिल करें, रवादारी अपनाएं
उन्होंने कहा, “मैं सही हूं लेकिन मेरे गलत होने का इमकान है, आप गलत हैं लेकिन आपके सही होने का इमकान है।” हमें इस एप्रोच को अपनाने की जरूरत है। “जिद की जगह बड़ा दिल रखने और रवादारी की जरूरत है। इख्तिलाफी मसाइल को झगड़े की जगह साथ बैठकर समझने और हल करने की जरूरत है।”