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गुजरात दंगों में पीड़ितों की आवाज ‘एडवोकेट जकिया जाफरी का इंतेकाल’: आखरी सांस तक लड़तीं रहीं इंसाफ की जंग

आंखों के सामने शौहर को जिंदा जलाया गया. आंखों के सामने घर के साथ पूरी बस्ती जला दी गई. जिस खौफनाक जुल्म को सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं. उस खौफनाक जुल्म को झेलने के बाद भी 22 साल लगातार सत्ता और शासन के खिलाफ इंसाफ की लड़ाई लड़ने वाली एडवोकेट जकिया जाफरी जी का शनिवार को इंतेकाल हो गया.  वे 86 वर्ष की थीं और उन्होंने अहमदाबाद में सुबह लगभग 11:30 बजे अंतिम सांस ली। ज़किया जाफ़री ने गुजरात के 2002 के दंगों में अपने पति, पूर्व सांसद एहसान जाफ़री, की हत्या के बाद पीड़ितों के लिए न्याय की लंबी और कठिन लड़ाई लड़ी।

सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड ने ज़किया जाफ़री के निधन की जानकारी सोशल मीडिया मंच एक्स पर साझा की। तीस्ता, जो स्वयं भी गुजरात दंगों के पीड़ितों के लिए काम करती रही हैं, ज़किया की याचिका में सह-शिकायतकर्ता थीं। इस याचिका में उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य सरकारी अधिकारियों के खिलाफ दंगों में भूमिका की जांच की मांग की थी।

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ज़किया जाफ़री के पति, एहसान जाफ़री, 2002 के गुजरात दंगों के दौरान अहमदाबाद के गुलबर्ग हाउसिंग सोसाइटी में 68 अन्य लोगों के साथ मारे गए थे। इन घटनाओं की शुरुआत एक दिन पहले गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे में आग लगने से हुई थी, जिसमें 59 लोग मारे गए थे। इसके बाद गुजरात के विभिन्न हिस्सों में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे थे, जिनमें हजारों लोग प्रभावित हुए थे।

ज़किया ने दंगों में दोषियों के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ते हुए कई अदालतों का रुख किया। 2012 में, सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एसआईटी (विशेष जांच दल) ने दंगों के मामले में नरेंद्र मोदी, सरकारी अधिकारियों, और पुलिसकर्मियों सहित 63 अन्य आरोपियों के खिलाफ जकिया की शिकायत की जांच के बाद उन्हें क्लीनचिट दे दी थी। एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं। यह रिपोर्ट बाद में मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत में भी स्वीकार की गई थी।

हालांकि, ज़किया जाफ़री ने एसआईटी की रिपोर्ट को चुनौती दी और गुजरात हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसे 2017 में खारिज कर दिया गया। इसके बाद उन्होंने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में उठाया, जहां दंगों के पीछे एक बड़ी साजिश की संभावना जताई। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका भी खारिज कर दी। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर कई लोगों ने कड़ी आलोचना की, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस मदन लोकुर भी शामिल थे।

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ज़किया जाफ़री का निधन एक ऐसी शख्सियत की विदाई है, जिन्होंने अपने जीवन को सच्चाई और न्याय के लिए समर्पित किया। उनके संघर्ष ने गुजरात दंगों के न्यायिक और सामाजिक संदर्भ में एक महत्वपूर्ण छाप छोड़ी है। उनका योगदान और साहस दंगा पीड़ितों के लिए एक प्रेरणा बने रहेंगे।

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