
गज़ा : गज़ा में हालात अब सिर्फ एक जंग नहीं, बल्के एक इंसानी क़त्लेआम और ज़ुल्म की इंतिहा बन चुके हैं। दुनिया के चार बड़े ख़बररसां इदारे — Associated Press (AP), AFP, BBC News और Reuters — ने एक मश्तरका बयान जारी करते हुए कहा है कि उनके वहां मौजूद सहाफी (पत्रकार) अब अपना और अपने घर वालों का पेट भरने के काबिल नहीं रह गए हैं।
“हमारे पत्रकार भूख से बेहाल हैं, और अब ये हालात उनकी जान ले सकते हैं। ये वही लोग हैं जो महीनों से गज़ा की सच्चाई दुनिया को दिखा रहे थे। अब वही लोग ज़िन्दा रहने की जद्दोजहद में हैं।”
– एएफपी, बीबीसी, रायटर और एसोसिएटेड प्रेस का बयान
पत्रकारों की हालत: भूख, थकावट और मौत का डर
इन एजेंसियों ने इसराईली हुकूमत से मांग की कि वो गज़ा के अंदर और बाहर पत्रकारों की आवाजाही और खाने की राहत सामग्री को रोके नहीं, क्योंकि अब हालत क़हत-काल से भी ज़्यादा खराब हो चुकी है।
दूसरी तरफ, अल जज़ीरा मीडिया नेटवर्क ने भी दुनिया के सहाफती समाज और इंसानी हुक़ूक़ की तंजीमों से “फौरन कार्रवाई” की दरख़ास्त की है, ताकि गज़ा में सहाफ़ियों पर हो रहे इसराईली “मजबूरन भुखमरी और जुल्म” को रोका जा सके।
“करीब दो करोड़ की आबादी वाले गज़ा में पिछले 21 महीनों से लगातार बमबारी और भुखमरी की साज़िश ने इंसानी जिंदगी को मौत के करीब पहुंचा दिया है। और अब सहाफ़ी खुद भी ज़िन्दा रहने के लिए लड़ रहे हैं।”
– अल जज़ीरा का बयान
एक रिपोर्टर की चिट्ठी: ‘मैं भूख से कांप रहा हूँ’
19 जुलाई को अल जज़ीरा के सहाफ़ी अनस अल शरीफ़ ने सोशल मीडिया पर लिखा:
“मैंने 21 महीने लगातार रिपोर्टिंग की, एक पल को नहीं रुका। लेकिन आज मैं खुले तौर पर कहता हूँ – मैं भूख से कांप रहा हूँ, थकावट से बेहोश होने वाला हूँ… गज़ा मर रहा है, और हम इसके साथ मर रहे हैं।”
सहाफ़ियों की भूख से मौत का ख़तरा
AFP की जर्नलिस्ट्स सोसाइटी (SDJ) ने साफ तौर पर कहा:
“हमने जंग में जख़्मी, गिरफ्तार और मारे गए सहाफ़ी देखे हैं। लेकिन अब हमें डर है कि हमारे रिपोर्टर भूख से मर जाएंगे – ये एएफपी के 80 साल के इतिहास में पहली बार है।”
इसराईल की भूख से मारने वाली पॉलिसी का असर
- 231 से ज़्यादा फिलिस्तीनी पत्रकार अक्टूबर 2023 से अब तक इसराईली हमलों में शहीद हो चुके हैं।
- पलिस्तीनी हेल्थ मिनिस्ट्री के मुताबिक 111 लोग भूख से मर चुके हैं, जिनमें 81 मासूम बच्चे भी शामिल हैं।
- Doctors Without Borders, Amnesty, Oxfam जैसी सौ से ज़्यादा NGO ने कहा कि गज़ा में “मैस स्टार्वेशन” यानी सामूहिक भुखमरी तेज़ी से फैल रही है।
“बच्चों और बुज़ुर्गों में कुपोषण का रिकॉर्ड स्तर, बदहजमी, पानी की कमी, सड़कों पर गिरते लोग, और बाजार खाली पड़े हैं। सिर्फ 28 ट्रक रोज़ाना आ रहे हैं, जबकि जरूरत हज़ारों की है।”
UNOCHA और दुनिया की नाकामी
NGO और इंसानी हुकूक संस्थाओं ने बयान में कहा:
“UN-led relief system नाकाम नहीं हुआ है, उसे काम करने ही नहीं दिया गया। अब सिर्फ बयानों से काम नहीं चलेगा। दुनिया को अब तुरंत और ठोस कदम उठाने होंगे।”
इन मांगों को उठाया गया:
- फौरन और मुकम्मल सीज़फायर
- तमाम ज़मीनी रास्तों को खोलना
- राहत सामग्री पर तमाम रोक हटाना
- इसराईल को असलहा देने पर रोक
- सैन्य कंट्रोल वाली राहत नीति को ख़ारिज करना
हमारी ज़िम्मेदारी क्या है?
“अगर आज हम चुप रहे, तो कल ये सहाफ़ी नहीं बचेंगे — और हमारी खामोशी तारीख़ में गुनाह लिखी जाएगी।”
– अल जज़ीरा के डायरेक्टर जनरल, मुस्तफा सौग
✍️ हिंदुस्तानी मुसलमानों के लिए पैग़ाम:
- गज़ा में जो हो रहा है, वो सिर्फ जंग नहीं, बल्कि इंसानों को भूख से मारने की साज़िश है।
- वहां के सहाफ़ी अपने कलम और कैमरे से सच्चाई सामने ला रहे हैं, लेकिन अब उनकी अपनी ज़िन्दगी दांव पर है।
- ये वक़्त है इंसानी हमदर्दी, दुआ, सदक़ा और सियासी आवाज़ उठाने का।