SIR वोटर आईडी कार्ड बनने की पूरी प्रक्रिया और बीएलओ की भूमिका — जानिए कैसे अपडेट होती है वोटर लिस्ट

नई दिल्ली। देशभर में यह चर्चा तेज हो गई है कि वोटर आईडी कार्ड आखिर कैसे बनता है और इस प्रक्रिया में बीएलओ (Booth Level Officer) की असली भूमिका क्या होती है।
कई बीएलओ से बात करने पर यह साफ हुआ कि वोटर लिस्ट में नाम जोड़ने, हटाने या संशोधन की पूरी जिम्मेदारी बीएलओ पर होती है। एक बीएलओ ने बताया —
“बीएलओ चुनाव आयोग की वह ज़मीनी इकाई है जो मतदाता सूची को अपडेट रखती है। हम ही तय करते हैं कि किसका नाम लिस्ट में जोड़ा जाए या हटाया जाए।”
🔹 बीएलओ कौन होता है?
बीएलओ यानी Booth Level Officer (बूथ लेवल अधिकारी) — यह सरकार के किसी विभाग में कार्यरत कर्मचारी होता है, जिसे जिला चुनाव अधिकारी द्वारा एक निश्चित मतदान क्षेत्र की जिम्मेदारी सौंपी जाती है।
हर बीएलओ को एक या अधिक भाग संख्या (Part Number) दी जाती है, जिसके तहत वह उस क्षेत्र की वोटर लिस्ट को संभालता है।
बीएलओ का काम होता है:
- नए मतदाताओं को जोड़ना,
- मृतक या स्थानांतरित मतदाताओं के नाम हटाना,
- पते या विवरण में संशोधन करना,
- और बने हुए वोटर कार्ड मतदाताओं को वितरित करना।
🔹 वोटर आईडी बनने की प्रक्रिया
वोटर आईडी बनाने की प्रक्रिया दो तरीकों से होती है — ऑनलाइन और ऑफलाइन।
🟢 1. ऑनलाइन प्रक्रिया
- कोई भी व्यक्ति राष्ट्रीय मतदाता सेवा पोर्टल (NVSP) या वोटर हेल्पलाइन ऐप के माध्यम से फॉर्म-6 भर सकता है।
- आवेदन करने के बाद संबंधित बीएलओ को अपनी BLO App पर नोटिफिकेशन मिलता है कि उनके क्षेत्र से एक नया आवेदन आया है।
- इसके बाद बीएलओ उस व्यक्ति का भौतिक सत्यापन (Field Verification) करता है — यानी पता, उम्र और पहचान की पुष्टि करता है।
- सबकुछ सही पाए जाने पर बीएलओ आवेदन को ऑनलाइन अप्रूव कर देता है, और आगे की प्रक्रिया निर्वाचन अधिकारी के माध्यम से पूरी होती है।
🟠 2. ऑफलाइन प्रक्रिया
- बीएलओ समय-समय पर मतदान केंद्रों या शिविरों में फॉर्म-6, 7, 8, 8A प्राप्त करते हैं।
- भरे हुए फॉर्म और दस्तावेज़ों को बीएलओ जिला चुनाव कार्यालय में जमा करता है।
- वहां से संबंधित अधिकारी जांच कर अंतिम स्वीकृति देते हैं और कार्ड जारी किया जाता है।
🔹 बीएलओ के काम में मुख्य जिम्मेदारियाँ
- मतदाता सूची को समय-समय पर अपडेट रखना।
- अपने क्षेत्र में नए 18 वर्ष के मतदाताओं की जानकारी एकत्र करना।
- घर-घर जाकर सत्यापन (Door to Door Verification) करना।
- मृत्यु, स्थानांतरण या शिफ्टिंग के मामलों में पुराने नाम हटाना।
- बनाए गए वोटर कार्ड मतदाताओं तक पहुँचाना।
बीएलओ के लिए यह काम काफी संवेदनशील माना जाता है, क्योंकि वही वह अधिकारी होता है जो वोटर लिस्ट में किसी नाम को जोड़ने या हटाने की अंतिम अनुमति देता है।
🔹 पारिश्रमिक और चुनौतियाँ
राजस्थान और हरियाणा के बीएलओ ने बताया कि उन्हें सालाना लगभग ₹6000 का मानदेय दिया जाता है। कई राज्यों में इसे ₹12,000 किए जाने की मांग चल रही है।
बीएलओ के अनुसार, कभी-कभी फोटो या डेटा की गलती तकनीकी कारणों से हो जाती है — जैसे गलत फोटो अपलोड होना, सर्वर त्रुटि, या समय सीमा में काम पूरा करने की जल्दबाज़ी।
🔹 वोटर लिस्ट लिंकिंग और ड्राफ्ट वेरिफिकेशन प्रक्रिया
चुनाव आयोग के अनुसार, Summary Revision (एसआईआर) के दौरान बीएलओ हर मतदाता के घर जाकर Unique Enumeration Form देता है।
- यदि मतदाता या उसके माता-पिता का नाम 2003 की मतदाता सूची में था, तो उसे किसी नए दस्तावेज़ की आवश्यकता नहीं होती।
- बीएलओ का काम होता है कि हर नाम को पुराने रिकॉर्ड से लिंक कर दे।
- इसके बाद ड्राफ्ट वोटर लिस्ट जारी होती है, जिसमें किसी का नाम छूटने पर वह दस्तावेज़ जमा कर सकता है।
🔹 बीएलए (Booth Level Agent) कौन होते हैं?
बीएलए यानी Booth Level Agent, वे व्यक्ति होते हैं जो राजनीतिक पार्टियों की ओर से नियुक्त प्रतिनिधि होते हैं।
वे बीएलओ की सहायता तो करते हैं, लेकिन ये सरकारी कर्मचारी नहीं होते। इनका काम केवल अपनी पार्टी के हित में मतदाता सूची की निगरानी करना होता है।
🔹 निष्कर्ष
बीएलओ भारत के चुनावी तंत्र की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी हैं। मतदाता सूची की सटीकता, पारदर्शिता और विश्वसनीयता इन्हीं पर निर्भर करती है।
यदि किसी क्षेत्र में वोटर लिस्ट में गड़बड़ी या फर्जी नाम पाए जाते हैं, तो उसकी जांच और सुधार का पहला कदम बीएलओ स्तर पर ही शुरू होता है।



