
जबलपुर। मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण और भविष्य में मार्गदर्शक माने जाने वाले फैसले में स्पष्ट किया है कि गंभीर बीमारी को छिपाकर विवाह करना पति या पत्नी—किसी भी पक्ष के साथ ‘क्रूरता’ के समान है। इसी सिद्धांत को आधार बनाते हुए न्यायमूर्ति विशाल धगट और न्यायमूर्ति बी.पी. शर्मा की युगलपीठ ने मंडला निवासी डॉ. महेंद्र कुशवाहा की विवाह-विच्छेद याचिका स्वीकार कर ली।
क्या था मामला?
डॉ. महेंद्र कुशवाहा ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर बताया कि—
- विवाह के बाद यह तथ्य सामने आया कि उनकी पत्नी मिर्गी (Epilepsy) की गंभीर बीमारी से पीड़ित है।
- यह बात विवाह के समय लड़की पक्ष ने पूरी तरह छिपाई थी।
- विवाह के कुछ दिनों बाद लगातार मिर्गी के दौरे पड़ने लगे, जिससे स्थिति गंभीर होती गई।
- पति-पक्ष द्वारा पूछताछ करने पर भी पत्नी और मायके वाले बीमारी को मानने के लिए तैयार नहीं हुए।
याचिकाकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि—
- पत्नी द्वारा बेहद मीठा भोजन खिला-खिलाकर पति, सास और परिवार के अन्य सदस्यों को बीमार करने तक का प्रयास किया गया।
- स्थिति असहनीय होने पर उन्होंने कुटुंब न्यायालय में विवाह-विच्छेद की मांग की थी, लेकिन वहां याचिका खारिज कर दी गई।
हाई कोर्ट ने क्या कहा?
युगलपीठ ने सुनवाई के दौरान यह माना कि—
- गंभीर बीमारी को जानबूझकर छिपाना विश्वासघात है।
- वैवाहिक जीवन में विश्वास सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ है, जिसे तोड़ना मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है।
- पति द्वारा प्रस्तुत सबूत पर्याप्त और विश्वसनीय हैं।
इन तथ्यात्मक और कानूनी आधारों पर कोर्ट ने कहा कि पति को विवाह-विच्छेद का अधिकार मिलता है और कुटुंब न्यायालय का फैसला निरस्त करते हुए तलाक की याचिका स्वीकार की जाती है।
कानूनी जगत में क्यों महत्वपूर्ण है यह फैसला?
कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार यह फैसला उन मामलों में मिसाल का काम करेगा जहां—
- किसी पक्ष द्वारा बीमारी, मानसिक समस्या, या गंभीर चिकित्सकीय स्थितियों को जानबूझकर शादी से पहले छिपाया जाता है।
- ऐसी जानकारी वैवाहिक निर्णय पर सीधा प्रभाव डालती है।
इस आदेश के बाद अब ऐसे मामलों में अदालतें और अधिक स्पष्ट रूप से बीमारी छिपाने को ‘क्रूरता’ के तहत मूल्यांकित कर सकेंगी।



