
जबलपुर। जिन वार्डों में संक्रमण का नाम भर मरीज की जान पर भारी पड़ सकता है, वहां अगर चूहे खुलेआम घूमते नजर आएं, तो इसे महज लापरवाही नहीं बल्कि आपराधिक उदासीनता क्यों न माना जाए? आईसीयू जैसे अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र में जहां स्वच्छता, पेस्ट कंट्रोल और निगरानी के लिए सख्त प्रोटोकॉल होते हैं, वहां चूहों की मौजूदगी यह सवाल खड़ा करती है कि आखिर जिम्मेदार अधिकारी किस बात का वेतन और किस काम का बजट ले रहे हैं।
मेडिकल कॉलेज के बाद अब जबलपुर जिला अस्पताल विक्टोरिया के आईसीयू और अस्थि (हड्डी) वार्ड में चूहों के आतंक का मामला सामने आया है। चूहे न केवल फर्श और कोनों में, बल्कि मरीजों के बेड और खाने के टिफिन तक के आसपास बेखौफ घूमते दिखे। यह वही चूहे हैं जिनसे प्लेग जैसी घातक बीमारियों का इतिहास जुड़ा है। इसके बावजूद अस्पताल प्रबंधन की आंखें क्यों मूंदी रहीं—यह बड़ा प्रश्न है।
टेंडर, बजट और दावे—फिर भी बदतर हालात क्यों?
सरकारी अस्पतालों में हर साल सफाई व्यवस्था और पेस्ट कंट्रोल के लिए अलग-अलग टेंडर जारी होते हैं। करोड़ों के भुगतान, सैकड़ों कर्मचारियों का अमला और लंबी-चौड़ी फाइलों के बावजूद जमीनी हकीकत यह है कि हालात सुधरने के बजाय और भयावह होते जा रहे हैं। इंदौर के एमवाय अस्पताल और जबलपुर मेडिकल कॉलेज के बाद अब जिला अस्पताल से भी ऐसा ही मामला सामने आना बताता है कि समस्या किसी एक संस्थान तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की है।
आईसीयू से वार्ड में आते ही बढ़ा डर
शाहपुरा निवासी 10 वर्षीय मदन चौधरी हाथ के इलाज के लिए पिछले एक सप्ताह से जिला अस्पताल में भर्ती है। ऑपरेशन के बाद दो दिन पहले उसे आईसीयू से अस्थि वार्ड में शिफ्ट किया गया था। हालत में सुधार के बाद परिजन राहत महसूस कर ही रहे थे कि वार्ड में गंदगी और चूहों की मौजूदगी ने उनकी चिंता कई गुना बढ़ा दी।
मदन के पिता मनोज चौधरी का कहना है कि वार्ड में चूहे बार-बार बेड पर चढ़ते और इधर-उधर दौड़ते दिखे। कुछ मौकों पर ऊपर से गिरने जैसी स्थिति भी बनी। बच्चे में डर बैठ गया और परिजनों को संक्रमण फैलने का खतरा सताने लगा। सवाल यह है कि क्या मरीजों और बच्चों की सुरक्षा से बड़ा कोई मुद्दा अस्पताल प्रशासन के लिए है?
रात 3 बजे रिकॉर्ड हुआ वीडियो, फिर भी कार्रवाई क्यों नहीं?
लगातार शिकायतों के बावजूद जब हालात नहीं बदले, तो परिजनों ने रविवार देर रात करीब 3 बजे मोबाइल से वीडियो रिकॉर्ड किया। वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि हड्डी वार्ड में चूहे मरीजों के बेड, फर्श और टिफिन के आसपास घूम रहे हैं। यह वीडियो अस्पताल की सफाई और पेस्ट कंट्रोल व्यवस्था पर सीधा तमाचा है। फिर भी सवाल बना हुआ है—क्या कार्रवाई सिर्फ वीडियो वायरल होने के बाद ही होती है?
सोशल मीडिया पर हड़कंप, राजनीतिक प्रतिक्रिया
वीडियो समाजवादी पार्टी के प्रदेश सचिव आशीष मिश्रा ने सोशल मीडिया पर साझा किया। उन्होंने अस्पताल प्रशासन पर गंभीर लापरवाही का आरोप लगाते हुए कहा कि सरकारी अस्पतालों में इलाज कराने आए मरीजों को ऐसे हालात झेलने पड़ें, तो यह शर्मनाक है। उन्होंने चेताया कि चूहों से फैलने वाली बीमारियां, खासकर बच्चों के लिए, जानलेवा साबित हो सकती हैं।
पहले भी चेतावनी मिल चुकी, फिर भी सबक क्यों नहीं?
यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले इंदौर के एमवाय अस्पताल और जबलपुर मेडिकल कॉलेज से भी चूहों की समस्या को लेकर वीडियो और शिकायतें सामने आ चुकी हैं। बावजूद इसके न तो पेस्ट कंट्रोल व्यवस्था दुरुस्त की गई और न ही जिम्मेदार एजेंसियों पर ठोस कार्रवाई हुई। आखिर कितनी बार चेतावनी चाहिए? क्या किसी बड़े हादसे का इंतजार किया जा रहा है?
प्रशासन की चुप्पी—जवाबदेही कब तय होगी?
मामले पर देर शाम तक अस्पताल प्रशासन की ओर से कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया। वार्ड में भर्ती अन्य मरीज और उनके परिजन भय और असंतोष में हैं। लोगों का साफ कहना है कि अगर समय रहते कठोर कदम नहीं उठाए गए, तो किसी गंभीर संक्रमण या दुर्घटना से इनकार नहीं किया जा सकता।
अब सवाल यह नहीं कि वीडियो वायरल हुआ या नहीं—सवाल यह है कि जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग कब जिम्मेदारी तय करेगा? सफाई और पेस्ट कंट्रोल के नाम पर जारी टेंडरों की वास्तविकता की जांच कब होगी? और सबसे अहम, क्या मरीजों की जान की कीमत पर चल रही इस लापरवाही पर किसी अफसर से जवाब मांगा जाएगा या मामला हमेशा की तरह ठंडे बस्ते में चला जाएगा?



