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मणिपुर में अब तक 360 गिरजाघर और 7,000 मकान जलाए गए! ईसाइयों पर बढ़ता हिंसा, सरकार क्यों चुप है?

नई दिल्ली, 5 जनवरी: मणिपुर में जारी जातीय दंगों में अब तक 360 गिरजाघरों और 7,000 से अधिक मकानों को आग के हवाले कर दिया गया है। 3 मई 2023 को शुरू हुए ये दंगे मेती और कोकी समुदायों के बीच झड़पों के बाद तेजी से फैल गए थे। इन दंगों का सबसे अधिक असर ईसाई अल्पसंख्यक समुदाय पर पड़ा है, विशेष रूप से कोकी जाति के लोग बेहद प्रभावित हुए हैं।

पूरे देश में ईसाई समुदाय के खिलाफ धार्मिक असहिष्णुता के मामलों में बढ़ोतरी हुई है, और मणिपुर जैसे राज्य इस बात का प्रमुख उदाहरण बने हैं।

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मणिपुर के दंगों में 360 गिरजाघरों के साथ-साथ 7,000 से अधिक मकानों को आग के हवाले किया गया, जिसके परिणामस्वरूप हजारों लोग बेघर हो गए हैं। दंगों की शुरुआत 3 मई 2023 को हुई, जब मेती समुदाय ने अपने लिए अनुसूचित जनजाति (ST) दर्जे की मांग की थी, जिससे आदिवासी समुदायों ने विरोध करना शुरू कर दिया। इसके बाद मेती और कोकी समुदायों के बीच हिंसक झड़पें हुईं, जो पूरे इलाके में फैल गईं।

इस दौरान ईसाई गिरजाघरों को जलाने के अलावा, स्थानीय लोगों के घरों पर भी हमले हुए। रिपोर्ट के मुताबिक, 7,000 से अधिक घरों को तबाह कर दिया गया है, जिससे लाखों लोग मजबूर होकर अपने घर छोड़ने पर मजबूर हो गए हैं।

समाजसेवियों और अंतरराष्ट्रीय आलोचकों ने इस स्थिति पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। सॉउथ एशिया सॉलिडैरिटी इनिशिएटिव की सदस्य सोनिया जोसेफ ने इस हिंसा की निंदा करते हुए मोदी सरकार को बढ़ते हुए ईसाइयों के खिलाफ हमलों के लिए जिम्मेदार ठहराया है।

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मणिपुर में हुए ये दंगे न केवल ईसाइयों के खिलाफ हिंसा की शर्मनाक मिसाल पेश करते हैं, बल्कि भारत के धर्मनिरपेक्षता को भी खतरे में डाल रहे हैं। हाल के दिनों में, भारत के विभिन्न राज्यों में ईसाइयों पर हमलों में वृद्धि देखी गई है। 25 दिसंबर 2024 को क्रिसमस के मौके पर देशभर में ईसाईयों पर हमलों में वृद्धि हुई।

इस चिंताजनक स्थिति को देखते हुए, 400 से अधिक ईसाई संगठनों और प्रमुख हस्तियों ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर देश में ईसाई अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए तत्काल कदम उठाने की मांग की है।

समाप्त न होने वाला संकट और उत्पीड़न का शिकार अल्पसंख्यक समुदाय

मणिपुर में जारी हिंसा और ईसाई अल्पसंख्यकों पर हमले भारत में धार्मिक असहिष्णुता के बढ़ते हुए रुझान को स्पष्ट करते हैं, जिससे न केवल देश की आंतरिक शांति पर खतरा मंडरा रहा है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत के धर्मनिरपेक्षता को लेकर सवाल उठ रहे हैं।

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